कोरोना काल में रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर

Silk made self-sufficient during the Corona period
कोरोना काल में रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर
कोरोना काल में रेशम ने बनाया आत्मनिर्भर
हाईलाइट
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भोपाल, 21 जुलाई (आईएएनएस)। देश और दुनिया पर गहराए कोरोना संकट ने बड़े वर्ग के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। इस संकट से उबरने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में नवाचार किए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में भी रोजगार के संकट से जूझ रहे आदिवासी वर्ग के सैकड़ों परिवारों ने रेशम के जरिए आय का जरिया न केवल खोजा है, बल्कि अपने को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाया है।

कोरोना के कारण अन्य हिस्सों की तरह होशंगाबाद के बड़े वर्ग के सामने भी रोजगार का संकट था। इस स्थिति में यहां के सैकड़ों आदिवासियों ने रोजगार के लिए रेशम को चुना। यहां के सैकड़ों आदिवासी परिवारों ने रोजगार की खातिर 25 किलो ककून इकट्ठा कर अपने को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया।

बताया गया है कि कोरोना काल में जिले के लगभग 20 गांवों के 700 किसान परिवारों ने रेशम के कारोबार को अपनाया है। इन परिवारों ने 60 लाख रुपये से ज्यादा की रकम कमाने में सफलता पाई है। साथ ही उन्हें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

जिले के रेशम अधिकारी शरद श्रीवास्तव के अनुसार, रेशम फायदे की खेती है, विभाग द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा किसान रेशम कृमि पालन योजना को अपनाकर अपने को आर्थिक तौर पर समृद्ध बनाने में सफल होंगे।

रेशम की खेती करने वाली उषा कुशवाहा बताती हैं कि इस खेती के जरिए उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। रेशम विभाग द्वारा समय पर भुगतान कर दिया जाता है, जिससे उनके सामने कोई आर्थिक समस्या नहीं आई है। साथ ही मार्गदर्शन उनकी हर समस्या का निदान भी कर रहा है।

इसी तरह विकास कुमार बताते हैं कि वे पिछले छह साल से रेशम की खेती करते आ रहे हैं। एक एकड़ जमीन पर रेशम की खेती से उन्हें हर साल लगभग एक से दो लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है। इसके चलते उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है।

मध्यप्रदेश के अलावा कर्नाटक, बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्ताीसगढ़, बिहार और झारखंड में सिल्क की साड़ी और अन्य परिधान बनाने वाले संस्थान होशंगाबाद से रेशम का धागा खरीदकर ले जाते हैं। रेशम की खेती से इस इलाके के किसानों की आर्थिक स्थिति में न केवल तेजी से बदलाव आ रहा है, बल्कि वे आत्मनिर्भर होने की दिशा में भी बढ़ रहे हैं।

राज्य में रेशम विभाग किसानों से साल में लगभग पांच करोड़ रुपये के ककून खरीदता है और धागा तैयार करता है। विभाग की पहल सार्थक हो और किसानों में भरोसा पैदा हो जाए तो देश को रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में यह बड़ी पहल साबित हो सकती है।

Created On :   21 July 2020 8:30 AM GMT

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