टूटते-टूटते बनी बात : सपा-रालोद कैराना-नूरपुर सीटों पर गठबंधन को राजी

SP-RLD agreed to form a political alliance for Kairana-Noorpur seats
टूटते-टूटते बनी बात : सपा-रालोद कैराना-नूरपुर सीटों पर गठबंधन को राजी
टूटते-टूटते बनी बात : सपा-रालोद कैराना-नूरपुर सीटों पर गठबंधन को राजी

 

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। यूपी के कैराना और नूरपुर उप-चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और आरएलडी के बीच गठबंधन हो गया है। हिंदुओं के पलायन को लेकर पिछले दिनों चर्चा में आए कैराना को लेकर दोनों दलों के बीच काफी समय से मतभेद चल रहे थे। कैराना लोकसभा उप-चुनाव में आरएलडी ने दावेदारी ठोक रखी थी, उसे कांग्रेस ने भी समर्थन देने की घोषणा की थी। दूसरी ओर सपा इस सीट को किसी भी स्थिति में छोड़ने को तैयार नहीं थी। इस वजह से दोनों पार्टियों के सालों पुराने रिश्तों में दरार पैदा हो गई थी। कैराना सीट पर भाजपा का अच्छा प्रभाव है। विपक्षी दल जानते हैं कि अगर वे एकजुट हो कर मैदान में नहीं उतरे तो भाजपा को पराजित करना मुश्किल होगा। 

 

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कैराना पर आरएलडी कर रही थी दावा 

 

अखिलेश यादव रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को शुक्रवार को हुई बैठक में यह समझाने में सफल रहे कि विपक्ष अगर एकजुट हो कर चुनाव नहीं लड़ा, तो भाजपा का जीतना तय है। सपा और बसपा का पहले ही गठबंधन हो चुका है, अगर रालोद भी इस गठबंधन में आ जाता है तो इस सीट पर उनका दावा पक्का हो जाएगा। कैराना संसदीय सीट के 16 लाख मतदाताओँ में लगभग पौने दो लाख जाट मतदाता हैं, जिन पर रालोद का अच्छा प्रभाव माना जाता है। इसी वजह से वह इस सीट पर वह अब तक अखिलेश से समझौता करने को राजी नहीं थी। इस सीट पर सवा दो लाख दलित, सवा लाख गुर्जर, सवा पांच लाख मुस्लिम मतदाता हैं। सपा बसपा गठबंधन के बाद अखिलेश अपने आपको इस सीट पर कमजोर नहीं मान रहे थे। रालोद से गठबंधन के बाद अब वह और अधिक निश्चिंत हो सकते हैं।    

 

गठबंधन में शामिल होगा आरएलडी

 

सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं के बीच बातचीत में 2019 में होने वाले आम चुनाव के लिए होने वाले सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने पर भी सहमति बनी है। जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव से बातचीत में कहा कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए वह ऐसे किसी गठबंधन का हिस्सा बनने को राजी हैं। सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं के बीच इस मुद्दे पर सहमति बन गई है, लेकिन इस बारे में अंतिम निर्णय बसपा प्रमुख मायावती से बातचीत के बाद ही लिया जाएगा। इस गठबंधन में कांग्रेस शामिल होगी या नहीं, इस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस मसले को अंतिम रूप देने के लिेए जल्दी ही दूसरे दौर की बातचीत शुरू होगी। 

 

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एक-एक सीट पर हुआ समझौता 

अखिलेश यादव से मिलने जब जयंत चौधरी उनके घर पहुंचे तभी इस बात के कयास लगने शुरू हो गए थे कि इस उपचुनाव में दोनों के बीच कोई न कोई समझौता होने जा रहा है। गठबंधन को लेकर दोनों दलों के बीच काफी समय सेा बातचीत चल रही ती। आरएलडी जयंत चौधरी के लिए कैराना सीट मांग रही थी, लेकिन समाजवादी पार्टी ने यह ऐलान कर दिया था कि वह न सिर्फ कैराना बल्कि नूरपुर में भी अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी। इस मुद्दे पर दोनों दलों के बीच चला आ रहा गठबंधन टूट के कगार पर जा पहुंचा था। लेकिन फिर दोनों के बीच एक-एक सीट के लिए सहमति हो गई। आरएलडी ने कैराना संसदीय सीट पर अपना दावा छोड़ दिया तो बदले में समाजवादी पार्टी ने नूरपुर विधानसभा सीट आरएलडी के लिए छोड़ दी। इन सीटों पर दोनों ने ही अब तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। 

 

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कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी के हुए हालात

सपा और रालोद के बीच हुए इस गठबंधन के बीच कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। कैराना में कांग्रेस ने आरएलडी उम्मीदवार को समर्थन देने का पहले ही ऐलान कर दिया था। अब जबकि, आरएलडी ने कैराना संसदीय सीट को सपा के लिए छोड़ दी है, तो कांग्रेस के लिए स्थिति बिल्कुल बदल गई है। कांग्रेस के सामने इस गठबंधन को स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। हालांक, इस बारे में उसने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। 

 

मायावती के इशारे पर हुई मुलाकात

दूसरी ओर, बसपा प्रमुख मायावती ने कैराना संसदीय सीट पर चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा पहले ही कर दी थी। सूत्रों के अनुसार बीएसपी की मुहर लगने के बाद ही अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की मुलाकात हुई है। इस मुद्दे पर मायावती का समर्थन है। अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की मुलाकात के पीछे वास्तव में मायावती की ही परोक्ष भूमिका है। 

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28 मई को होना है मतदान 

कैराना लोकसभा और बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया गुरुवार से शुरू हो गयी। 3 मई से शुरू हुई नामांकन प्रक्रिया 14 मई तक चलेगी। मतदान 28 मई को होगा जबकि मतगणना 31 मई को होगी। इस उपचुनाव में कुल 1094 मतदान केंद्र व 2056 मतदान बूथ बनाए गए हैं। उपचुनाव को लेकर इन जिलों में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं।

 

अब से अखिलेश बन जाएंगे आम राजनीतिक कार्यकर्ता

साल 2000 में कन्नौज से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शनिवार को आधी रात के बाद से किसी भी सदन के सदस्य नहीं रह जाएंगे। यूपी विधान परिषद में उनका कार्यकाल 5 मई को समाप्त हो रहा है। यानी आज आधीरात के बाद अखिलेश यादव एक आम राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह हो जाएंगे। 17 साल बाद ऐसा पहली बार होगा जब अखिलेश यादव किसी सदन के सदस्य नहीं होंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव में वह कन्नौज सीट से चुनाव लड़ेंगे। इस सीट से वर्तमान में उनकी पत्नी डिंपल सांसद हैं।

Created On :   5 May 2018 9:28 AM IST

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