24 साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला- मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं
- नमाज के लिए मस्जिद में जरूरी या नहीं सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा नमाज के लिए मस्जिद जरूर नहीं
- 1994 के फैसले का किया जिक्र
- मस्जिद में नमाज का मुद्दा 7 जजों की संविधान पीठ को नहीं सौंपा जाएगा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मस्जिद में नमाज की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, कोर्ट ने कहा, कि ये फैसला 7 जजों की वाली संविधान पीठ को नहीं सौंपा जाएगा। कोर्ट ने इस मामले में पुराने फैसले को जारी रखा है। कोर्ट 24 साल पुराने फैसले पर अडिग है। बता दें की 1994 के फैसले में कोर्ट ने कहा था कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद जरूरी नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला पढ़ते हुए कहा,अयोध्या मामले की सुनवाई में फारूकी फैसले की टिप्पणी से कोई फर्क नहीं पडे़गा। ये केस राम जन्मभूमि मामले से बिल्कुल अलग है। इस फैसले पर जस्टिस नजीर दोनों जजों की राय से सहमत नहीं है।
मस्जिद में नमाज की अनिवार्यता से जुड़े अहम बिंदु
- मस्जिद में नमाज का मुद्दा संविधान पीठ को नहीं सौंपा जाएगा
- फारूकी का केस राम जन्मभूमि विवाद से अलग
- मस्जिद में नमाज केस में जस्टिस भूषण ने कहा- हर फैसला अलग हालात में होता है।
- 1994 के इस्माइल फारूकी के केस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है।
- सुप्रीम कोर्ट में अब अयोध्या मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर, 2018 से शुरू होगी।
हिन्दू तालिबानी शब्द पर रोक
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिमों पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहाई थी वे हिन्दू तालिबानी थे, जैसे बमियान में मुस्लिम तालिबान ने बुद्ध की मूर्ति गिराई थी। मैं अपनी इस बात पर आज भी कायम हूं। धवन द्वारा हिन्दू तालिबानी शब्द का प्रयोग करने पर अधिवक्ताओं ने आपत्ति जताई थी और कहा था कि कोर्ट ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या की जमीन को तीन हिस्सों में हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच बांटा था। इनमें 2/3 हिस्सा हिंदुओं और 1/3 हिस्सा मुस्लिम पक्ष के हवाले किया गया था। हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उस वक्त कोर्ट का फैसला उनके साथ अन्याय था और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन बंटवारे के 2010 के फैसले को प्रभावित करने में इसका बड़ा किरदार था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का जमीन बंटवारे के मुख्य मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस मामले को निपटाना चाहिए।
बता दें कि दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मुद्दे पर 20 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सीधे अयोध्या के जमीन विवाद मामले पर पड़ सकता है। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस मामले का जन्मभूमि विवाद पर कोई फर्क नहीं पढ़ेगा। बता दें कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो जिस हिस्से पर मस्जिद है उसे अपने कब्जे में ले सकती है।
Created On :   27 Sept 2018 9:39 AM IST