15 अगस्त स्पेशल : आजादी की लड़ाई से जुड़ी इन तस्वीरों को देखना चाहेंगे आप
- उस समय भारत और पाकिस्तान के लोग अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर को नहीं मानते थे।
- क्रांतिकारियों से जुड़े कई अहम दस्तावेज देशभर के म्यूजियम में रखे हुए हैं।
- भारत और पाकिस्तान के बीच सामान बंटवारे को लेकर काफी तनाव था।
डिजिटल डेस्क, भोपाल। भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी, लेकिन कई ऐसे मसले थे, जिनका सुलझना बाकी था। मसलन, भारत के साथ ही आजाद हुए पाकिस्तान के बीच सामान बंटवारे को लेकर काफी तनाव था। भारत और पाकिस्तान का एक ही पासपोर्ट, जिसके कारण उस समय अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर का कोई महत्व नहीं था। इसके अलावा देश को आजाद कराने में अपनी प्राणों की आहूति देने वाले अमर शहीदों से जुड़े कई ऐसे दस्तावेज हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है। ये दस्तावेज या तो किसी म्यूजियम में रखे हुए हैं या वीर क्रांतिकारियों के परिजनों ने इन्हें सहेजकर रखा है। आइए जानते हैं, ऐसे ही कुछ दस्तावेजों के बारे में।
Photo Credit : India History Pic
इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने 18 मार्च 1919 को रॉलेट एक्ट पास किया था। इस एक्ट के तहत किसी भी क्रांतिकारी को ब्रटिश पुलिस बिना किसी जुर्म के भी गिरफ्तार कर सकती है। इसमें गिरफ्तार किए गए शख्स को बिना सुनवाई सजा देने का भी प्रवाधान था। एक्ट पास होने के बाद मुंबई में आयोजित ब्लैक संडे प्रदर्शन की खबर का चित्र।
क्रांतिकारी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1881 में केसरी नामक समाचार पत्र प्रकाशित करना शुरू किया था। इस अखबार में देशभक्ति से ओत-प्रोत लेख और कविताएं प्रकाशित की जाती थीं। तिलक के परिवार के सदस्य आज भी केसरी मराठा ट्रस्ट के माध्यम से इस अखबार का प्रकाशन करते हैं।
एक सैनिक की तरह जीवन जीने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आर्मी ड्रेस बहुत पसंद थी। आजाद हिंद फौज का गठन करने वाले नेताजी को जापान का सहयोग भी हासिल था। वे जापन के सहयोग के साथ ही भारत से ब्रिटिश आर्मी को हटाना और देश को आजाद कराना चाहते थे। उन्होंने जापान में करीब 40 हजार भारतीयों को सैन्य प्रशिक्षण भी दिलवाया था। चित्र में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आर्मी यूनिफॉर्म।
महात्मा गांधी का जीवन बहुत ही सादा एवं सरल था। सादगी पसंद होने के कारण वह दिनचर्या में सामान्य चीजों का ही उपयोग करते थे। चित्र में महात्मा गांधी की खड़ाऊ, चप्पलें, डायरी, कटोरी, चम्मच और चश्मे को सहेजकर एक स्थान पर रखा गया है।
आजादी के 40 साल पहले 22 अगस्त 1907 को महान महिला क्रांतिकारी भीकाजी रुस्तम कामा ने भारत का ऱाष्ट्रीय ध्वज जर्मनी के संसद भवन में लहरा दिया था। वह पहली महिला हैं, जिन्होंने भारतीय ध्वज विदेश में फहराया था। उनकी याद में भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी की थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पास 40 हजार भारतीयों की आजाद हिंद फौज थी, इसलिए उन्होंने देश आजाद होने के 4 साल पहले ही 1943 को प्रांतीय सरकार का गठन कर लिया था। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने कभी उनके इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। नेताजी के सरकार गठन करने के बाद अगले दिन प्रकाशित द ट्रिब्यून अखबार का कतरा।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जेल में एक साथ फांसी दी गई थी। उनकी मौत से पहले उनके परिजनों को भी उनसे मिलने नहीं दिया गया था। अंग्रेज जानते थे कि तीनों के शवों का जब अंतिम संस्कार किया जाएगा तो उनकी मौत से आहत भारतीय भड़क भी सकते हैं, इसलिए उनके शवों को किसी अज्ञात स्थान पर ठिकाने लगा दिया गया। ये चित्र उनकी फांसी के अगले दिन प्रकाशित द ट्रिब्यून न्यूज पेपर का है।
शहीदों को याद करने के लिए देशभर के कई म्यूजियम में उनके अवशेष रखे हुए हैं। ये चित्र भगत सिंह की शर्ट का है, जिसे सहेजकर रखा गया है। भगत सिंह की शर्ट के कॉलर में भगत सिंह भी लिखा हुआ है।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। ये चित्र भगत सिंह की मौत के बाद जेल सुपरिंटेंडेट से जारी डेथ सर्टिफिकेट का है। पत्र में जेस सुपरिंटेंडेंट ने लिखा है, ' मैं यह घोषणा करता हूं, कि भगत सिंह को फांसी दे दी गई है। उन्हें गर्दन के बल मौत होने तक फंदे पर लटकाया गया। डॉक्टर से उनकी मौत सुनिश्चित करने के बाद ही ही भगत सिंह को फंदे से उतारा गया और इसमें किसी तरह की कोई लापरवाही नहीं बरती गई।
आजादी के लिए हमारे वीर सपूतों ने कितने बलिदान दिए ये बात इस पत्र को पढ़कर समझी जा सकती है। चंद्र शेखर आजाद ने बनारस कांग्रेस कमेटी के मंत्री को एक पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने लिखा मंत्री महोदय आपके यहां से जो धोती व लंगोट दिए गए थे, वो कपड़े जिला जेल बनारस में मुंसी हरनारायण लाला जिला बस्ती तहसील बस्ती को दे दिए गए हैं।
राजस्थान के मारवाड़ इलाके के कराड़ी में नमक सत्याग्रह के दौरान 5 मई 1930 को रात 12.45 बजे महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनकी गिरफ्तारी के विरोध में देशव्यापी हड़ताल शुरू हो गई। गांधीजी की गिरफ्तारी के अगले दिन सत्याग्रह समाचार नामक अखबार में प्रकाशित देशव्यापी हड़ताल की खबर।
जापान में बंदी 40 हजार लोगों को छुड़ाकर क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। 4 जुलाई 1943 को रास बिहारी बोस ने फौज की कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी। इसका मुख्यालय मलेशिया के कुआलालम्पुर में बनाया गया था। ज नेताजी आजाद हिंद फौज के मुख्यालय पहुंचे तो स्वागत पत्र देकर उनका अभिनंदन किया गया।
इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद पार्क है, जिसे आजादी (1947) के अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था। यहां अंग्रेजों और चंद्रशेखर आजाद के बीच 27 फरवरी सन 1931 को लंबी मुठभेड़ चली थी। आजाद के पास 22 दिसंबर को 1903 में अमेरिका में बनी कोल्ट मॉडल की 32 बोर की पिस्टल थी। अंग्रेजों ने आजाद को चारों तरफ से घेर लिया था और उनकी पिस्टल में सिर्फ 1 गोली बची थी। आजाद जानते थे कि अगर अंग्रजों ने उन्हें पकड़ लिया तो वो उनसे कई राज उगलवाने की कोशिश करेंगे। यही सोचकर उन्होंने आखिरी गोली से खुद को शूट कर लिया। ये पिस्टल इलाहाबाद म्यूजियम में रखी है, जिसे टिकट लेकर देखा जा सकता है।
कहने के लिए तो 1947 में भारत और पाकिस्तान अलग हो गए थे, लेकिन कई व्यवस्था में दोनों देशों ने अपने नागरिकों को सुविधाएं दी हुई थीं। उदाहरण के तौर पर ये चित्र 1947 से 1950 तक जारी किए गए भारत और पाकिस्तान के मिलेजुले पासपोर्ट का है। 1950 तक भारत और पाकिस्तान की अंतराष्ट्रीय बॉर्डर को क्रॉस करना बेहद आसान हुआ करता था और इसके लिए किसी दस्तावेज की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी, बढ़ती घुसपैठ रोकने के लिए भारत को वीजा जरूरी करना पड़ा।
भारत और पाकिस्तान दोनों एक साथ ही आजाद हुए। देश में उस वक्त मौजूद सामान का बंटवारा किया जाना था। ये चित्र 1947 में बंटवारे के समय का है, जब दिल्ली की इंपीरियल सेक्रेट्रीयल लाइब्रेरी में रखी किताबों को भारत और पाकिस्तान में बांटा जा रहा था।
Created On :   14 Aug 2018 10:26 AM IST