चीतों की सात दशक बाद भारत में फिर सुनाई देगी दहाड़
- भारत में चीतों का इतिहास हजारों वर्ष पुराना
डिजिटल डेस्क, भोपाल। वन्य प्राणी जगत के लिए 17 सितंबर का दिन सुखद और उत्साहवर्धक रहने वाला है, ऐसा इसलिए क्योंकि देश में लुप्त हो चुके धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाले वन्य प्राणी चीता की आमद होने वाली है। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म दिन है और वे उस दिन मध्य प्रदेश के प्रवास पर रहेंगे। प्रधानमंत्री अपने जन्मदिन पर अफ्रीका से आ रहे चीतों के दल को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश कराएंगे।
चीता धरती का सबसे तेज दौड़ने वाला वन्य-प्राणी है और भारत में विलुप्त श्रेणी में आ चुका है। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत में चीतों का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। हमारे पूर्वजों द्वारा गांधीसागर अभयारण्य के चतुर्भुज नाला एवं रायसेन जिले के खरबई में मिले शैल चित्रों में चीतों के चित्र पाये गये हैं। माना जाता है कि मध्य भारत के कोरिया (वर्तमान में छत्तीसगढ़ में स्थित) के पूर्व महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव द्वारा 1948 में भारत में अंतिम चीते का शिकार किया गया था। अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों एवं भारत के राजाओं द्वारा किये गये अत्याधिक शिकार से 19वीं शताब्दी में इनकी संख्या में अत्यधिक गिरावट आई। अंतत: 1952 में भारत सरकार ने अधिकारिक तौर पर देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया।
भारत में चीतों के पुनर्स्थापना की लंबे अरसे से कोशिश हो रही है और इसी क्रम में केन्द्र एवं राज्य सरकार के साथ अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों की बैठक वर्ष 2009 में हुई। वर्ष 2010 में भारतीय वन्य-जीव संस्थान द्वारा चीता पुनर्स्थापना हेतु संपूर्ण भारत में संभावित 10 क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया गया। इन संभावित 10 स्थलों में से कूनो अभयारण्य (वर्तमान कूनो राष्ट्रीय उद्यान, श्योपुर) को सबसे उपयुक्त पाया गया। चीतों की पुनर्स्थापना के संबंध में पर्याप्त अध्ययन न होने से वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चीता को भारत लाये जाने पर रोक लगा दी गई।
बताया गया है कि चीतों के पुनर्स्थापना हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 28 जनवरी 2020 को अनुमति मिलने के बाद चीता परियोजना हेतु मॉनीटरिंग के लिये तीन सदस्यीय विशेषज्ञ दल का गठन किया गया।
तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद अफ्रीकी चीते के आने का रास्ता साफ हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 17 सितंबर को चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पुनर्स्थापित करेंगे। इसी के साथ प्रदेश के इतिहास में एक नया कीर्तिमान जुड़ जायेगा और 70 वर्षों के बाद चीता एक बार पुन: अपने रहवास में विचरण कर सकेंगे। साथ ही कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास स्थित श्योपुर, मुरैना एवं शिवपुरी जिले की जनता भी पर्यटन गतिविधियों में वृद्धि से अतिरिक्त लाभ अर्जित कर बेहतर जीवन यापन कर सकेगी। पर्यटन में वृद्धि होने से स्थानीय समुदाय के लिये रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
बताया गया है कि नामीबिया (अफ्रीका) से आने वाले वन्य-जीवों के लिये कूनो राष्ट्रीय उद्यान में क्वारेंटाइन हेतु छोटे बाड़ों का भी निर्माण किया गया है। चीतों को एक माह के लिये क्वारेंटाइन बाड़ों में रखा जाएगा। एक माह बाद इन्हें बड़े बाड़ों में स्थानांतरित किया जाएगा। नर चीते दो या दो से अधिक के समूह में रहते हैं। नर चीतों के समूह को एक साथ रखा जाएगा। प्रत्येक मादा चीता अलग-अलग बाड़ों में रखी जाएंगी। विशेषज्ञों द्वारा बड़े बाड़ों में चीतों के अनुकूलन संबंधी आंकलन उपरांत पहले नर चीतों को तथा उसके पश्चात मादा चीतों को खुले में छोड़ा जाएगा।
मध्यप्रदेश में कूनो राष्ट्रीय उद्यान, श्योपुर में अफ्रीका से लाकर चीतों की पुनर्स्थापना हेतु तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। चीतों के अनुकूल रहवास हेतु घास के मैदान विकसित किये गये हैं। चीतों को शिकार के लिए शाकाहारी वन्य-प्राणियों को अन्य संरक्षित क्षेत्रों से लाकर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े गये हैं, जिससे चीतों के लिये पर्याप्त प्रे-बेस उपलब्ध हो सके । कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों एवं अन्य सभी वन्य-प्राणियों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की गई है।
चीता परियोजना के लिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एकीकृत प्रबंधन में 750 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र चीतों के सॉफ्ट रिलीज हेतु चयनित किया गया है। इसके अतिरिक्त लगभग तीन हजार वर्ग कि.मी. वनक्षेत्र श्योपुर एवं शिवपुरी जिले में चीतों के स्वछंद विचरण हेतु उपलब्ध होगा।
आईएएनएस
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Created On :   14 Sept 2022 12:00 PM IST