वॉटरएड ने जारी की रिपोर्ट, कहा- खतरनाक पानी के संकट से जूझ रहा भारत

The State of the Worlds Water 2019 released by Water Aid on World Water Day
वॉटरएड ने जारी की रिपोर्ट, कहा- खतरनाक पानी के संकट से जूझ रहा भारत
वॉटरएड ने जारी की रिपोर्ट, कहा- खतरनाक पानी के संकट से जूझ रहा भारत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल के कम से कम एक अंतराल में पानी की कमी झेल रहे 100 करोड़ लोग और पानी  की गंभीर कमी  का सामना करने वाले इलाकों में रहने वाले 60 करोड़ लोगों के साथ भारत अपने इतिहास के अब तक के सबसे खतरनाक पानी के संकट से जूझ रहा है। 

वॉटरएड ने अपनी नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी है कि खाना और कपड़ों का निर्यात जहां आय का अहम स्रोत है, वहीं अगर टिकाऊ ढंग से उत्पादन नहीं किया जाए तो निर्यात पानी के संकट को और बढ़ा देता है जिससे गरीब और वंचित समुदायों तक पानी की आपूर्ति पहुंच पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। विश्व जल दिवस (मार्च 22) के मौके पर वॉटरएड इंडिया इस उत्पादन के लिए बेहतर और टिकाऊ तरीके अपनाने और उपभोक्ताओं से खरीदारी से जुड़े अपने फैसले सोच समझकर करने की अपील करता है। 

निरंतर उपभोग किए जाने वाले कुछ उत्पादों में बड़ी संख्या में ‘वॉटर फुटप्रिंट’ पाया जाता है, जैसे - आपकी सुबह की एक कप कॉफी में 200 मिलीलीटर पानी शामिल होता है, इसके बावजूद ग्राउंड कॉफी को बनने में 140 लीटर पानी लगता है। गेहूं में 22% भूमिगत जल खर्च होता है. इसमें 1,827 लीटर प्रति किलोग्राम वैश्विक औसत वॉटर फुट प्रिंट होता है, हालांकि ये क्षेत्र के हिसाब से बदलता रहता है। उदाहरण के लिए फ्रांस के गेहूं की बनी 300 ग्राम ब्रेड में 155 लीटर वॉटर फुटप्रिंट होता है जो कि वैश्विक औसत से काफी कम है. भारत में गेहूं का औसत वॉटर फुटप्रिंट 1,654 लीटर प्रति किलोग्राम होता है (जो कि भूगोल और मौसम के हिसाब से बदलता है)। 

चावल में वैश्विक सिंचाई का 40 फीसदी हिस्सा होता है और वैश्विक भूमिगत जल का 17% खर्च होता है और इसका औसत वॉटर फुटप्रिंट 2,500 लीटर पानी प्रति किलोग्राम है। भारत में औसत वॉटर फुटप्रिंट 2,800 लीटर प्रति किलोग्राम है जो कि भूगोल और मौसम के हिसाब से बदलता है। उद्योग और कृषि में पानी का इस्तेमाल लोगों की बुनियादी ज़रूरतों की कीमत पर नहीं होना चाहिए। कई इलाकों में सिंचाई के लिए अंडरग्राउंड एक्वीफर्स (भूमिगत जलभर) से निकाले जाने वाले पानी की तादाद उस पानी की मात्रा से ज्यादा है जो प्राकृतिक तरीके से फिर से भर जाते हैं – परिणाम स्वरूप कुएं और हैंडपंप सूख जाते हैं।

वी.के. माधवन, वॉटरएड इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कहना है – “साफ पानी तक पहुंच की कमी ने वंचित और गरीब समुदाय को गरीबी के और बड़े कुचक्र में फंसा दिया है। रोजमर्रा की जरूरत के लिए पानी तक पहुंच के इनके संघर्ष ने इन्हें शिक्षा, सेहत और आजीविका से जुड़े मौकों का पूरा उपयोग करने से वंचित कर दिया है।

साफ पानी की हर जगह और हर एक व्यक्ति तक पहुंच के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है. भारत के नागरिकों की साफ पानी तक पहुंच, उन वैश्विक लक्ष्यों की सफलता में बड़े स्तर पर असर डालेगी जिसके प्रति सरकार प्रतिबद्ध है। साथ ही, खरीदारी से जुड़े हमारे फैसलों से देश और दुनिया में पानी के संकट झेल रहे समुदायों पर पड़ने वाले असर को कम करने में बतौर नागरिक हमारी भी अहम भूमिका है।”

दुनिया की दो तिहाई जनसंख्या यानी 400 करोड़ लोग पानी की कमी वाले इलाके में रह रहे हैं जहां साल के कम से कम एक अंतराल में मांग, आपूर्ति से ज्यादा बढ़ जाती है। यह आंकड़ा 2050 तक 500 करोड़ तक पहुंच सकता है। वर्तमान में दुनिया भर में 9 में से 1 व्यक्ति के घर के पास साफ पानी उपलब्ध नहीं है। भारत में यह आंकड़ा और चौंकाने वाला है - विश्व स्तर पर निकाले जाने वाले भूमिगत जल का एक चौथाई हिस्सा भारत के खाते में जाता है जो कि चीन और अमेरिका के हिस्से के जोड़ से ज्यादा है। इसके साथ ही भारत सबसे ज्यादा भूमिगत जल का इस्तेमाल करता है जो कि वैश्विक कुल का 24% है। 

भारत में भूमिगत जल के इस्तेमाल का दर 2000 से 2010 के बीच 23% बढ़ गया है। भारत भूमिगत जल का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है – वैश्विक कुल का 12%। 75% घरों के भीतर पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। पानी की गुणवत्ता की सूची में 122 देशो में भारत 120 वें स्थान पर है।

2015 में भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र विकास लक्ष्य 6 के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का वादा किया है कि 2030 तक हर एक व्यक्ति की पहुंच साफ पानी, बेहतर शौचालय और अच्छी सफाई तक होगी। इसलिए पानी के मानवाधिकार को अन्य मांगों से पहले प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

Created On :   22 March 2019 7:19 PM GMT

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