विपक्ष साथ आए तो रुक सकता है नरेंद्र मोदी का विजय रथ : शौरी
जिडिटल डेस्क, बेंगलुरु। लेखक, पत्रकार, अर्थशास्त्री और पूर्व कैबिनेट मंत्री अरुण शौरी का मानना है कि अगर विपक्ष अपने छोटे-छोटे मतभेदों को दूर कर साथ आ जाए तो 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार को रोका जा सकता है। अपनी नई किताब "अनीता गेट्स बेल" में शौरी ने भारतीय ज्युडिशियरी पर तीखा प्रहार किया है और इससे उबरने के लिए उपाय भी बताए हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में कर्नाटक चुनाव, विपक्ष की एकता और 2019 चुनाव को लेकर अपनी राय जाहिर की है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन की जीत और इसके सफल होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कोई गठबंधन अच्छा या बुरा नहीं होता है। यह गठबंधन के नेताओं पर निर्भर करता है। इसी तरह की स्थित कर्नाटक में भी है।
उन्होंने कहा, "इसे पढ़कर खेद होता है कि कर्नाटक में अब भी विभागों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और जेडीएस में असहमतियां हैं। वाकई उनकी दूरदर्शिता बहुत कमजोर है। वह यह नहीं देख रहे कि अगर प्रदर्शन नहीं करेंगे तो उनके गठबंधन को नकार दिया जाएगा।
विफल रही हमारी विदेश नीति
अरुण शौरी ने कहा कि आज मोदी सरकार उसी मोड़ पर है जहां यूपीए थी लेकिन वह देश को विभाजित कर रहे हैं और यह देश की सुरक्षा व्यवस्था को खतरे में डाल रहा है, जबकि हमारी विदेश नीतियां पूरी तरह विफल रही हैं लेकिन इसे अनदेखा किया जा रहा है। इसके उलट जनता तक यह संदेश भेजा जा रहा है कि उन्हें मोदी को वापस लाने की जरूरत है। यह देश और उसके निजी हितों का एक बड़ा विश्वासघात होगा अगर विपक्ष अपने ऊपर गिरने वाले इस "हिमस्खलन" को नहीं देख पा रहा है।
भाजपा के खिलाफ खड़ा हो सिर्फ एक प्रत्याशी
उन्होंने कहा कि यह ऐसा है जिसे टाला नहीं जा सकता। मुझे लगता है कि मोदी को रोका जा सकता है। आखिरकार उनकी इतनी लोकप्रियता के बाद भी भाजपा को केवल 31 फीसदी वोट ही मिले हैं। विपक्ष को नसीहत देते हुए अरुण शौरी ने कहा विपक्षी दलों को साथ आकर प्रतिज्ञा करनी होगी कि हर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ सिर्फ एक ही उम्मीदवार उतारा जाए। कई उम्मीदवार उतारने का खामियाजा विपक्षी दलों को गुजरात और यूपी में भुगतना पड़ा था।
असहमतियां खत्म करने का समय
अरुण शौरी ने कहा कि संयुक्त विपक्ष एक प्रयास हो सकता है, लेकिन हर दिन नेता नई तरह की बयानबाजी करते रहते हैं। हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि अगर उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं, तो वह सन 2019 में होने वाला आम चुनाव अकेले लड़ सकती हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर मायावती और शरद पवार ने अपने वह उम्मीदवार नहीं उतारे होते जो गुजरात में नहीं जीत पाए तो शायद बीजेपी वहां सरकार बनाने में सक्षम नहीं होती। इसलिए निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। मोदी की जीत भी निश्चित नहीं है। मुझे लगता है कि यह चुनावों से पहले चुनावी मौसम को पढ़ने का समय है।
सीटों का बंटवारा किसी एक पर छोड़ना होगा
अरुण शौरी कहते हैं कि एक राज्य में वहां के क्षेत्रीय दल या नेता पर ही यकीन करना होगा। वह कहते हैं मैं पहले भी कह चुका हूं कि विपक्ष को किसी राज्य में वहां के क्षेत्रीय दल पर यकीन करना होगा जो अपने किले को नियंत्रित कर सके और सीटों का बंटवारा भी उसी के हवाले छोड़ देना चाहिए। बंगाल में ममता बनर्जी को तय करने दीजिए कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिलनी चाहिए। इसी तरह बिहार और अन्य राज्य में भी। वरना दो-तीन सीटों के लिए अलगाव होने लगेगा। वह कहते हैं विपक्ष को एक-दूसरे के बारे में बोलने के लिए अनुशासित होना होगा। अभी कर्नाटक में मंत्रालय बंटे नहीं हैं और आप एक-दूसरे के बारे में बोलने लगे। फिर जनता आप पर यकीन क्यों करेगी?
नीतीश भी महसूस कर रहे हैं घुटन
वह कहते हैं, "मुझे भरोसा है कि आज नीतीश खुद भी घुटन महसूस रहे हैं। शिवसेना के बयानों पर नजर डालिए तो साफ दिखाई देता है वहां बीजेपी से अलग होने की बेचैनी है। लगभग यही स्थिति अकाली दल की भी है। वह भी भावना के स्तर पर बीजेपी से दूर गई है। हाल के दिनों में देखिए तो अकाली दल की ओर से पीएम मोदी के पक्ष में बहुत कम बयान आ रहे हैं। इसका अर्थ यही है कि मोदी लहर का अब वैसा प्रभाव नहीं रह गया जैसा कि समझा जा रहा है।
Created On :   29 May 2018 9:48 AM IST