कंप्यूटर में ताक झांक वाले गृह मंत्रालय के आदेश का क्या है मतलब? पढ़े यहां
- केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने देश में चल रहे किसी भी कंप्यूटर में घुसकर डाटा एक्सेस करने करने की इजाजत दे दी है।
- गृह मंत्रालय के इस आदेश का चौतरफा विरोध हो रहा है।
- सरकार के इस कदम के बाद आपकी निजता पर क्या फर्क पढ़ेगा?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को 10 केन्द्रीय एजेंसियों को देश में चल रहे किसी भी कंप्यूटर में घुसकर डाटा एक्सेस करने करने की इजाजत दे दी है। गृह मंत्रालय के इस आदेश का चौतरफा विरोध हो रहा है। विपक्षी दल मोदी सरकार के इस कदम को देश की जनता की प्राइवेसी पर हमला बता रहे हैं। हमारी इस रिपोर्ट में पढिए सरकार के इस कदम के बाद आपकी निजता पर क्या फर्क पढ़ेगा और देश की सुरक्षा का हवाला देकर उठाया गया ये कदम सरकार के लिए कितना मददगार साबित हो सकता है?
UPA ने 2008 मुंबई अटैक के बाद शुरू किया था प्रोजेक्ट
जिस तरह से अमेरिका में निगरानी रखने के लिए PRISM प्रोजेक्ट शुरू किया गया था उसी तरह भारत में भी यूपीए सरकार ने निगरानी के लिए सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम (CMS) नाम के एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इस प्रोजेक्ट को लॉफुल इंटरसेप्शन के लिए प्लान किया गया था जिसके तहत फोन और इंटरनेट को इंटरसेप्ट किया जा सकता था। नवंबर 2009 में सरकार ने राज्यसभा में कहा, ‘सरकार देश में मोबाइल फोन्स, लैंडलाइन और इंटरनेट कम्यूनिकेशन को मॉनिटर करने के लिए सेंट्रलाइज्ड सिस्टम प्रोपोज करती है। CMS को DoT द्वारा लागू किया जाएगा ताकि सिक्योरिटी बनी रहे।’
ऐसे समझे इंक्रिपशन और डिक्रिप्शन?
इंटरनेट पर, मोबाइल या कंप्यूटर में रखे जरूरी और सेंसिटिव डाटा को सिक्योर बनाने के लिए एक ख़ास तकनीक का उपयोग किया जाता हैं जिसे इंक्रिपशन कहते हैं। वहीं इंक्रिपटेड डाटा को पढ़ने के लिए पहले इस डिक्रिप्ट करना जरूरी है। इसी प्रोसेस डिक्रिपशन कहा जाता है। सरकार ने जिन एजेंसियों को निगरानी का अधिकार दिया है वो एजेंसियों कभी भी आपके इंक्रिपटेड डाटा को डिक्रिप्ट कर पढ़ सकती है। इसके पीछे सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी का हवाला दिया है।
क्या है इस आदेश का मतलब?
गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए इसे आदेश का मतलब है कि किसी भी कंप्यूटर' में तैयार, ट्रांसमिट, प्राप्त या संग्रहित 'किसी भी सूचना' को इंटरसेप्ट करने, निरीक्षण करने और डिक्रिप्ट करने का अधिकार इन दस एजेंसियों के पास होगा। सीधे तौर पर कहा जाए तो आपकी गुप्त सूचना जिसे इंक्रिप्ट कर आपने रखा है या किसी को भेजा है। इस सूचना को भी सरकार चाहे तो कभी भी डिक्रिप्ट कर पढ़ सकती है। हालांकि इसके लिए एजेंसियों को गृह मंत्रालय से पहले परमिशन लेना होगा।
किन-किन एजेंसियों को निगरानी का अधिकार?
इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो (NCB) , प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT), राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI), सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI), नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA), कैबिनेट सचिवालय (RAW), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की निगरानी करने का अधिकार होगा।
क्या कहा गया है सरकारी आदेश में?
गृह मंत्रालय की ओर से आईटी एक्ट, 2000 के 69 (1) के तहत दिए गए आदेश में कहा गया है कि किसी भी कम्प्यूटर, मोबाइल या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में रखी, प्राप्त हुई या उससे भेजी गयी सूचना पर निगरानी रख सकती है। निगरानी रखने का अधिकार 10 एजेंसियों को दिया गया है। अधिसूचना में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि किसी भी कंप्यूटर संसाधन के प्रभारी सेवा प्रदाता या सब्सक्राइबर इन एजेंसियों को सभी सुविधाएं और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य होंगे। इस संबंध में कोई भी व्यक्ति या संस्थान ऐसा करने से मना करता है तो 'उसे सात वर्ष की सजा भुगतनी पड़ेगी।'
Created On :   21 Dec 2018 9:57 PM IST