हाईकोर्ट के आदेश पर पिता को सौंपी गई 17 माह की बच्ची, नाना-नानी के पास थी 

17-month-old daughter handed over to father on order of High Court
हाईकोर्ट के आदेश पर पिता को सौंपी गई 17 माह की बच्ची, नाना-नानी के पास थी 
हाईकोर्ट के आदेश पर पिता को सौंपी गई 17 माह की बच्ची, नाना-नानी के पास थी 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक 17 महीने की बच्ची को उसके पिता को सौपा दिया गया है। इससे पहले बच्ची अपने नाना-नानी के घर में रह रही थी। बच्ची को सौपने की मांग को लेकर पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। पिछले दिनों ब्रेस्ट कैंसर के चलते बच्ची कि मां की मौत हो गई थी। मौत से पहले बच्ची की मां ने इच्छा जाहिर कि थी बच्ची की ठीक तरह से देखभाल के लिए उसके पति की बजाय उसके मां-पिता को सौपा जाए। न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हिंदु अल्पसंख्यक एवं संरक्षक कानून की धारा 6 के तहत पिता बच्चे का नैसर्गिक संरक्षक होता है। वर्तमान में अभिभावक के रुप में सिर्फ बच्ची का पिता मौजूद है। जिसने भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर से पढाई की है। इस लिहाज से बच्ची का पिता उच्च शिक्षित है और अच्छी साफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत है। बच्ची को अपने पिता के स्नेह व प्रेम की भी जरुरत है। ऐसे में इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि यदि बच्ची को पिता को सौपा जाएगा तो उसका पालन-पोषण ठीक ढंग से नहीं होगा और बच्ची के हित प्रभावित होंगे। 

इससे पहले बच्ची के पिता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुभाष झा ने कहा कि मेरे मुवक्किल के ससुराल वालों को बच्ची को अपने पास रखने का अधिकार नहीं है। फिर भी यदि वे बच्ची को अपने पास रखते हैं तो यह एक तरह से बच्ची की अवैध हिरासत मानी जाएगी। जबकि बच्ची की ननिहाल वालों की ओर से पैरवी कर रही अधिवक्ता फ्लैविया एग्नेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले व बच्ची के हित का हवाला देते हुए कहा कि बच्ची को उसकी मां के परिवारवालों के पास ही रहने देना चाहिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि बच्ची का पिता उच्च शिक्षित है और अच्छे वेतन पर साफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत है। ऐसे में इस बात को नहीं माना जा सकता है कि यदि बच्ची पिता के पास रहेगी तो उसके हित गंभीर रुप से प्रभावित होंगे। हमारे सामने ऐसा कोई कारण नहीं है जिसके आधार पर पिता को उसकी बच्ची से दूर किया जाए। हालांकि खंडपीठ ने ननिहाल के परिवार के दो सदस्यों को हफ्ते में एक बार बच्ची से मिलने की इजाजत दी है। 

Created On :   9 Feb 2019 2:02 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story