दो खिलाड़ी : एक का सीधा हाथ गायब तो दूसरे के पास पैसे नहीं, पर छू लिया आसमां

2 Table Tennis player beat physical disability or economic weakness
दो खिलाड़ी : एक का सीधा हाथ गायब तो दूसरे के पास पैसे नहीं, पर छू लिया आसमां
दो खिलाड़ी : एक का सीधा हाथ गायब तो दूसरे के पास पैसे नहीं, पर छू लिया आसमां

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हमने बचपन से ऐसी कई कहानियां पढ़ी हैं, जिनमें अपनी योग्यता से परे जाकर लोगों ने सफलताएं हासिल की हैं।  ऐसे ढेरों उदाहरण हमने हमारे आसपास भी देखे होंगे, जो बताते हैं कि सफलता पाने के लिए योग्यता से ज्यादा मायने इच्छाशक्ति के होते हैं। कई सक्षम लोग अपनी क्षमताओं को सीमित करने के बहाने ढूंढ़ते हैं तो कई अपनी सीमित क्षमताओं को चुनौती देते हुए अपने सपने पूरे करते हैं। ऐसे ही दो उदाहरण भारत में चल रही अल्टीमेट टेबल टेनिस लीग में देखने को मिले हैं।

टेबल टेनिस खिलाड़ी नताली पार्टक्या और कादरी अरुना ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में झंडे गाड़ यह साबित कर दिया कि शारीरिक विकलांगता हो या आर्थिक कमजोरी, अगर जज्बा हो तो आपको कोई हरा नहीं सकता। दोनों ही खिलाड़ियों की अलग-अलग कहानियां हैं। तमाम आपत्तियों से लड़ते हुए खेल के प्रति उनके जज्बे ने उन्हें इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से वे हर उस खिलाड़ी के लिए आदर्श बन गए हैं जो विकलांगता और खस्ता आर्थिक हालात के बावजूद मन में कुछ सपने लिए हुए है।

बिना हाथ के जन्मी सितारा खिलाड़ी

सबसे पहले बात करते हैं नताली की। नताली पौलेंड की हैं। जन्म से ही उनका सीधा हाथ नहीं है। 10 साल की उम्र में उन्होंने विकलांग वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था। यहीं से उनका सफर शुरू हुआ। आज वे 28 साल की हैं और चार बार पैरालंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं। इसके साथ ही वे 3 बार ओलम्पिक में भी भाग ले चुकी हैं।

नताली ने 7 साल की उम्र से टेबल टेनिस खेलना शुरू किया। बचपन में उनका पहला लक्ष्य अपनी बड़ी बहन सेंड्रा को हराना था। 11 साल की उम्र तक वे इस खेल में इतनी पारंगत हो गई कि उन्हें छोटी सी उम्र में ही पैरालंपिक खेलने का मौका मिल गया। इसके 4 साल बाद अपने दूसरे ही पैराओलम्पक में उन्होंने गोल्ड मेडल जीत लिया। तब उनकी उम्र महज 15 साल थी।

नताली कहती हैं, "जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, बेहद मुश्किल पलों का भी सामना हुआ, लेकिन मैं डटी रही। मैं टेबल टेनिस के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती।" वे कहती हैं, "जब आपकी पीठ के पीछे दीवार हो तो आप पीछ मुड़ के नहीं देख सकते, आपको पता होता है कि बस यह चीज है जो करनी है और जिसे और सुधारा जा सकता है।"

नताली अभी खेलना जारी रखना चाहती हैं और 2020 के पैरालंपिक में एक और गोल्ड हासिल करना उनका अगला लक्ष्य है। साथ ही वे 2020 के ओलम्पिक में भी भाग लेने के लिए जमकर पसीना बहाने के लिए तैयार है।

कादरी अरुना : खेल इसलिए चुना क्योंकि यह सस्ता था

अरुना ने 2016 के रियो ओलम्पिक में वर्ल्ड नं-1 टेबल टेनिस खिलाड़ी टिमो बोल को हराया था। वे पहले अफ्रीकन थे जो ओलम्पिक में टेटे के क्वार्टर फाइनल में पहुंचे थे। इसके साथ ही विश्व में 29वीं वरीयता प्राप्त कादरी पहले अफ्रीकन प्लेयर थे जिन्हें 2015 में इंटरनेशनल टेबल टेनिस प्लेयर ऑफ द ईयर से नवाजा गया था।

कादरी के लिए यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। वे एक गरीब परिवार से थे और सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।अजीब बात तो यह है कि उन्होंने खेल मे अपना करियर बनाने का इसलिए सोचा था, क्योंकि यह अन्य प्रोफेशन के मुकाबले सस्ता था। 

कादरी कहते हैं, "मैंने यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। हर जरूरी चीज को खुद से जुटाया है। अपने खर्चे पर सफर किया है।" वे कहते हैं कि मैं कोच अफोर्ड नहीं कर सकता और ना ही नाइजीरिया सरकार मुझे इसके लिए स्पांसर करती हैं। कादरी आगे कहते हैं, "बिना किसी सहारे के आगे बढ़ना बहुत मुश्किल होता है। जब मैं जीतता हूं तो मेरे देश के लोग मेरी पीठ थपथपाते हैं लेकिन अफसोस कि कोई मदद के लिए आगे नहीं आता।"

तमाम परेशानियों के बावजूद 28 वर्षीय कादरी खेल के प्रति अपने जज्बे के चलते मैदान में डटे हुए हैं और एक के बाद एक रिकॉर्ड अपने नाम करते जा रहे हैं। साथ ही वे उन लोगों के लिए एक उदाहरण भी बनते जा रहे हैं जो अपनी गरीबी को अपने लक्ष्यों की आढ़ में सबसे बड़ा रोड़ा मानते हैं।

Created On :   31 July 2017 12:31 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story