जंगलों और जंगली जानवरों से छेड़छाड़ से बिगड़ा पर्यावरण चक्र, महाराष्ट्र में है सिर्फ 20.06 % फारेस्ट

जंगलों और जंगली जानवरों से छेड़छाड़ से बिगड़ा पर्यावरण चक्र, महाराष्ट्र में है सिर्फ 20.06 % फारेस्ट
जंगलों और जंगली जानवरों से छेड़छाड़ से बिगड़ा पर्यावरण चक्र, महाराष्ट्र में है सिर्फ 20.06 % फारेस्ट
हाईलाइट
  • भौगोलिक क्षेत्र के अनुपात में वैसे तो 33 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित होना चाहिए
  • लेकिन महाराष्ट्र में 20.06 प्रतिशत भूमि ही फारेस्ट रेंज है।
  • राज्य के कोल्हापुर व रायगढ़ को छोड़ दें तो विदर्भ के अलावा कहीं भी अपेक्षित घना जंगल नहीं है।

लिमेश कुमार जंगम ,नागपुर। जंगलों न जंगली जानवरों से छेड़छाड़ से पर्यावरण चक्र बिगड़ता जा रहा है। भौगोलिक क्षेत्र के अनुपात में वैसे तो 33 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित होना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में 20.06 प्रतिशत भूमि ही फारेस्ट रेंज  है। राज्य के कोल्हापुर व रायगढ़ को छोड़ दें तो विदर्भ के अलावा कहीं भी अपेक्षित घना जंगल नहीं है। वनों को बचाने, सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नागपुर में बैठे आला अफसरों व जनप्रतिनिधियों की है। इसके बावजूद बीते 5 वर्षों में वनों में आग लगने के 18 हजार मामले दर्ज किए जा चुके हैं। डेढ़ लाख हेक्टेयर से अधिक का वन क्षेत्र इस आग में जलकर खाक हो चुका है। सरकारी आकलन के मुताबिक 135.34 लाख रुपए का नुकसान हुआ है। विविध प्रजाति के 80 हजार 679 पेड़ अवैध रूप से काट दिए गए, इससे सरकार को 501.30 लाख रुपए की क्षति हुई। लगातार हो रही इस प्रकार की घटनाओं के कारण ही वन्यजीव आबादी वाले इलाकों में पहुंच रहे हैं। वन्यजीवों के साथ होने वाली मुठभेड़ मानव को क्षति पहुंचा रही है, वहीं यह हालात वन व पर्यावरण के चक्र को बर्बाद कर इंसानों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रही है।

तस्करों के अटैक में 236 घायल 
वनों की सुरक्षा के लिए गश्त लगाने वाले एवं तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले अधिकारी-कर्मचारी खुद असुरक्षित महसूस करते हैं। अपेक्षा के अनुरूप उन्हें सुरक्षा के साधन उपलब्ध नहीं हो पाते। वनों में भटकने वाले तस्कर इन कर्मचारियों पर अचानक हमला कर देते हैं। वर्ष 2013 से अब  तक तस्करों द्वारा हमले की 77 वारदातें दर्ज हुई हैं। इसमें 236 अधिकारी-कर्मचारी घायल हुए हैं। एक कर्मचारी शहीद हुआ है, जबकि तस्करी के लिए उपयोग में लाए जाने वाले कुल 131 ट्रक, 24 ट्रैक्टर, 18 मेटाडोर, 180 चौपहिया वाहन, 2,312 साइकिलें तथा 2,061 अन्य वाहनों को जब्त किया गया है। उल्लेखनीय है कि वन कर्मचारियों पर हमलों की संख्या को देखते हुए आत्मसुरक्षा के लिए 720 पिस्तौल व 514 एसएलआर राइफल की आपूर्ति की गई है।

वन्यजीवों के अटैक से 232 घायल, 24 की मौत
वन क्षेत्र घटने का खामियाजा न केवल वन्यजीवों को भुगतना पड़ता है, बल्कि मानव को भी भुगतना पड़ रहा है। जंगली जानवर बड़ी संख्या में वनों से सटे आबादी इलाकों में पहुंच रहे हैं। वर्ष 2008 से अब तक वन्यजीव व मानव संघर्ष में कुल 24 व्यक्तियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 232 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। प्रशासन ने संबंधितों को 176 लाख रुपए मुआवजा दिया है। इसके अलावा वन्यजीवों के हमलों में 3,655 मवेशियों की भी मौत हुई। 13,888 मामलों में जानवरों ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है। 

जमा होता है 400 करोड़ राजस्व
जंगलों से होने वाली आय से सरकार की तिजोरी में हर साल करीब 400 करोड़ रुपए का राजस्व जमा होता है। इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, बांस, तेंदूपत्ता, गोंद आदि गौण वन उपज से सरकार के कोष में काफी धन पहुंचता है। बावजूद वनों को हो रही क्षति में कमी नहीं आ रही है।

85 बाघ व 538 तेंदुओं ने गंवाई जान
प्राकृतिक मौत, आपसी द्वंद्व तथा शिकार की घटनाओं के कारण वर्ष 2010 से अब तक कुल 85 बाघों की मौत दर्ज की जा चुकी है। वहीं 538 तेंदुए विविध कारणों से अपनी जान गंवा चुके हैं। बीते कुछ वर्षों में बाघों की संख्या बढ़ने का दावा किया जा रहा है। कैमरे ट्रैपिंग प्रणाली की सहायता से की गई बाघ गणना में राज्य में कुल 203 बाघों की मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है। बाघ संरक्षण व संवर्धन के लिए राष्ट्रीय व्याघ्र संवर्धन प्राधिकरण ने व्याघ्र प्रकल्पों में व्याघ्र संरक्षण दल का गठन किया है।

जंगलों को बचाने की जद्दोजहद
दिक्कत पैदा करने वाले 82 गांवों का पुनर्वास किया जा चुका है। 55 प्रस्तावित।
11 फायर फायटिंग यूनिट, 1,276 पोर्टेबल फायर ब्लोअर उपलब्ध कराए गए।
वनरक्षकों को 6,629, वनपालों को 1,552 व 421 अधिकारियों को 8602 स्मार्ट फोन।
पुलिस विभाग की तर्ज पर खबरियों का नेटवर्क बनाने 42.5 लाख खर्च।
राज्य में वन तस्करी रोकने 366 स्थाई, 96 अस्थाई, कुल 462 जांच नाकों का निर्माण।
शिकार व अन्य मामलों पर प्रतिबंध व निगरानी के लिए 193 मचान बनाए।
महाराष्ट्र में कुल 80 उड़न दस्ता (फ्लाइंग स्क्वॉड) से गश्त।
अवैध पेड़ कटाई एवं तस्करी रोकने कुल 251 वन सरंक्षण कुटियों का निर्माण।
ग्रामीणों के सहयोग से 12,595 संयुक्त वन व्यवस्थापन समितियों का गठन।
आपदा से निपटने राज्य आरक्षित पुलिस दल की 3 बटालियन की सहायता।
आधुनिक प्रणाली से आग पर नियंत्रण के लिए प्रतिवर्ष करीब 30 करोड़ का प्रावधान।

Created On :   21 March 2018 8:26 AM GMT

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