शिवराज सरकार पर 3000 करोड़ के ई-टेंडर घोटाले की आंच, जानिए क्या है पूरा मामला

3000 crore E-tender scam in madhya pradesh
शिवराज सरकार पर 3000 करोड़ के ई-टेंडर घोटाले की आंच, जानिए क्या है पूरा मामला
शिवराज सरकार पर 3000 करोड़ के ई-टेंडर घोटाले की आंच, जानिए क्या है पूरा मामला
हाईलाइट
  • एक मीडिया समूह के इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ है कि ये घोटाला करीब 3000 करोड़ रुपए का है।
  • ई-टेंडर के जरिए सरकार पर कुछ प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप है।
  • व्यापमं घोटाले की आग अभी बुझी भी नहीं है कि मध्य प्रदेश में एक और बड़े घोटाले ने शिवराज सरकार की नींद उड़ा दी है।

डिजिटल डेस्क, भोपाल। व्यापमं घोटाले की आग अभी बुझी भी नहीं है कि मध्य प्रदेश में एक और बड़े घोटाले ने शिवराज सरकार की नींद उड़ा दी है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सामने आया ये घोटाला बीजेपी के लिए चुनावों में दिक्कत पैदा कर सकता है। इस घोटाले में ई-टेंडर के जरिए सरकार पर कुछ प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप है। ई-टेंडर स्कैम में बड़े स्तर पर ऑनलाइन प्रक्रिया से छेड़छाड़ करने की बात सामने आई है। बताया जा रहा है कि कई सालों से ये घोटाला चलता आ रहा था लेकिन सबसे पहले मई में इसका खुलासा हुआ। अब एक मीडिया समूह की इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ है कि ये घोटाला करीब 3000 करोड़ रुपए का है।

इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट के मुताबिक, मध्‍य प्रदेश जल निगम ने मार्च में तीन कांट्रैक्‍ट के लिए निविदा आमंत्रित की थी। इसके लिए आवेदन देने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद मध्य प्रदेश जल निगम को आगाह किया गया था कि टेंडर के इनक्रिप्टेड डॉक्यूमेंट में फेरबदल किया जा रहा है और इसे प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए उनके हिसाब से बदला जा रहा है। बोली में भाग लेने वाली एक बड़ी टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी ने जब बेहद कम मार्जिन से अपने टेंडर गंवाए तो कंपनी ने इसका इंटरनल असेसमेंट किया और इसकी शिकायत की। इसके बाद जल निगम के एक अधिकारी ने स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MPSEDC) से यह पता लगाने के लिए मदद मांगी कि ऐसा कैसे हुआ आखिर कैसे सुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चर में सेंध लगी। यहां हम आपको ये भी बता दें कि MPSEDC ही उस पोर्टल को चलाता है।

कंप्यूटर साइंस बैकग्राउंड वाले 1994 बैच के अधिकारी मनीष रास्तोगी जो अभी MPSEDC के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, उन्होंने इस मामले की आंतरिक जांच की और पाया कि बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना से जुड़े तीन टेंडर हैदराबाद और मुंबई की कंपनियों को दिलाने के लिए इससे छेड़छाड़ की गई। इन तीनों की कीमत 2,322 करोड़ रुपये थी। जांच में पता चला कि अंदर के लोगों की मदद से इन कंपनियों ने पहले ही दूसरी कंपनियों की बोलियां देख लीं और फिर उनसे कम बोली लगाकर टेंडर हासिल कर लिया। इसी तरह, लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, राज्य सड़क विकास प्राधिकरण और प्रॉजेक्ट इंप्लिमेंटेशन यूनिट के 6 कॉन्ट्रैक्ट की ई-बोली में भी गड़बड़ी हुई। इसके लिए रस्तोगी ने टीसीएम और एंटारेस सिस्टम को 6 जून को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। दोनों ने नोटिस का जवाब देते हुए यह माना है कि साइबर फ्रॉड हुआ है। हालांकि, दोनों ने पोर्टल में सेंध लगने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।

बाद में रस्तोगी ने MPSEDC को पत्र लिखकर 6 और टेंडर रद्द करने को कहा। MPSEDC की आंतरिक जांच में OSMO IT साल्यूशन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए। साल 2016 में पोर्टल के खराब प्रदर्शन के बाद इस कंपनी से संपर्क किया गया था। बताया गया है कि OSMO को उन्हीं आईडी के पासवर्ड दिए गए थे, जिनसे बोली को कम करने के लिए ऑनलाइन सिस्टम में सेंध लगाई गई। हालांकि, OSMO के निदेशक वरुण चतुर्वेदी ने घोटाले में अपनी कंपनी की किसी भी भूमिका से इनकार कर दिया। चतुर्वेदी ने कहा कि उन्हें 2016 के मध्य में निविदाएं बनाने और देखने के लिए सीमित विशेषाधिकारों के लिए पासवर्ड दिए गए थे। उन्हें पता नहीं है कि इन पासवर्डों का इस्तेमाल निविदाओं के लिए कैसे किया गया। MPSEDC के ऑफिस में उन्होंने परफॉर्मेंस टेस्टिंग की और उसकी रिपोर्ट उनके साथ शेयर की। बाद में आगे टेस्ट नहीं कराए गए और उन्हें 2016 के मध्य में काम से हटा दिया गया।

इस बीच सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि रस्तोगी को पहले तीन केस की इंटर ऑडिट रिपोर्ट जिसमें यह स्पष्ट हो गया था कि ई-खरीद प्रणाली पर बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ था के आने के बाद अचानक प्रिंसिपल सेक्रटरी साइंस ऐंड आईटी के अतिरिक्त चार्ज से हटा दिया गया। उनकी जगह प्रमोद अग्रवाल को दे दी गई। हालांकि रस्तोगी ने इस घोटाले के खुलासे और बीजेपी सरकार के उन्हें हटाने के फैसल पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। रस्तोगी ने कहा "मुझे जो भी करना था वह मैं कर चुका हूं और अब मैं आगे बढ़ गया हूं। मैं अपने पिछले असाइनमेंट के बारे में बात नहीं करना चाहता,"

मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी बीपी सिंह के आदेश के बाद सभी 9 टेंडर मध्य प्रदेश पुलिस की इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) को आईटी अधिनियम, 2000 के तहत जांच के लिए सौंपी गईं, क्योंकि आर्थिक धोखाधड़ी के लिए ई-पोर्टल से छेड़छाड़ की गई थी। EOW के एक अधिकारी के मुताबिक, यह घोटाला 3000 करोड़ रुपये का है। रस्तोगी के ट्रांसफर को लेकर बीपी सिंह ने कहा कि वह छुट्टी पर गए हुए थे और वह फोन नहीं उठा रहे थे। हमें तत्काल कुछ जानकारी चाहिए थे, इसीलिए हमने प्रमोद अग्रवाल को साइंस एंड आईटी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी का चार्ज दे दिया। प्रमोद अग्रवाल ने ही इस मामले को सबसे पहले उठाया था।

हालांकि, टीसीएस और ऐंटरेस की आंतरिक जांच में यह बात साफ हो गई थी कि तीनों कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए डेटा के साथ छेड़छाड़ की गई, लेकिन EOW ने प्राथमिक जांच ही दर्ज की है, FIR नहीं। EOW के एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस मधु कुमार ने कहा कि ये मामला अभी जांच के गंभीर चरण में है। कुमार ने कहा कि टेक्निकल इश्यू के कारण अभी PE (preliminary enquiry) दर्ज की गई है। इसके बाद अगले चरण में आगे बढ़ा जाएगा। EOW के सूत्रों ने कहा कि पुलिस ने MPSEDC का 2013 से मई तक का करीब 9 टेराबाइट का डाटा सीज किया है। EOW के डेप्यूटी सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस राजेश गुरू ने जांच के दायरे में आने वाले सभी विभागों के दस्तावेज भी लिए हैं। सॉफ्टवेयर कंपनियों के अधिकारियों से भी पूछताछ की गई है। EOW के एक अधिकारी ने बताया कि 9 टेंडर्स का फॉरेंसिक ऑडिट किया जाएगा, जिससे जिम्मेदारी तय की जा सके।

उधर, सरकारी सूत्रों का कहना है कि आगामी चुनाव को देखते हुए पुलिस जांच में नरमी बरत रही है। एक ओर जहां रस्तोगी को पद से हटा दिया गया है, वहीं जांच के घेरे में मौजूद अधिकारी अभी भी अपनी जगह पर बने हुए हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच होने पर सवाल उठने लगे हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपत्र अजय सिंह ने भी 2 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर मामले की जांच सीबीआई या सुप्रीम कोर्ट के निरीक्षण में कराने की मांग की है। अजय सिंह ने कहा कि उन्हें अब तक पीएम मोदी की तरफ से किसी तरह का रिस्पोंस नहीं मिला है।

Created On :   6 Sep 2018 5:09 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story