भोपाल गैस कांड : उस खता की सजा कब तक भुगतेगा भोपाल ?

33 Years of bhopal gas disaster
भोपाल गैस कांड : उस खता की सजा कब तक भुगतेगा भोपाल ?
भोपाल गैस कांड : उस खता की सजा कब तक भुगतेगा भोपाल ?

डिजिटल डेस्क, भोपाल। 2-3 दिसंबर की दरमियानी वो रात बिल्कुल आम दिनों जैसी ही थी। लोग सर्द रातों के चलते घरों में चैन की नींद सो रहे थे। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये रात इतिहास के पन्नों में काली स्याही से दर्ज हो जाएगी। हर रोज शाम को सूरज डूबने के साथ ही इंतजार होता है एक नई सुबह का, लेकिन आज से ठीक 33 साल पहले की रात का वो अंधेरा अभी तक नहीं छंट पाया है। वक्त गुजरता जा रहा है। 33 साल बाद भी भोपाल के कई लोगों के लिए वो रात आज भी वैसी है क्योंकि आज भी उस रात के बाद सुबह नहीं हो पाई है।

साल 1984...2-3 दिसंबर की दरमियानी रात...यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री। तकनीकी खामियों की वजह से फैक्ट्री के 610 नंबर टैंक से जहरीली मिथाइल आइसोसायनाइड (MIC) का रिसाव शुरू हुआ। रिसाव के साथ ही शुरू हुआ मौत का तांडव। यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली इस जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। फैक्ट्री में मौजूद सुपरवाइजर्स को काफी देर पहले ही अनहोनी का अंदेशा हो गया था। जैसे-जैसे टैंक का तापमान बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे फैक्ट्री में मौजूद सुपरवाइजर्स के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थी। 

bhopal gas tragedy

सुपरवाइजर्स ने टैंक से जुड़ने वाली पाइप लाइनों को काट कर इस त्रासदी को रोकने की कोशिश की। मगर टैंक नंबर 610 में बन रही जहरीली गैस का दबाव इस कदर बढ़ा कि टैंक का सेफ्टी वॉल्व फूट गया। उस अनहोनी को रोकने के लिए काफी मशक्कत के बाद सभी ने हार मान ली क्योंकि उन्हें अहसास हो गया था कि उनके हाथ में अब कुछ नहीं। रात 12 बजे के करीब खतरे का अलार्म बजाया गया, लेकिन जब तक लोगों को कुछ समझ आता, उससे पहले ही नींद में सोए हुए लोग जहरीली गैस के संपर्क में आने से मौत की नींद सो गए। 

भोपाल गैस कांड के लिए इमेज परिणाम

 

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जहरीली मिथाइल आईसोसायनाइड गैस हवा के संपर्क में आने के साथ ही पूरे शहर में तेजी से फैल गई। इस गैस का असर इस कदर हुआ कि लोगों का दम घुटने लगा। आंखें खोलते ही मिर्ची का धुआं सा लगने लगा। चारों तरफ चीख-पुकार मच गई। भोपाल की सड़कों पर लाशों के ढेर लगने शुरू हो गए। हर तरफ मौत का तांडव दिख रहा था। लोग उसी रात अस्पतालों की ओर दौड़े। कुछ ही देर में सारे अस्पताल मरीजों से भरे गए। इधर, मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टरों को इस बारे में कोई अंदाजा नहीं था कि आखिर हुआ क्या है।

 

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भोपाल गैस कांड रेलवे स्टेशन के लिए इमेज परिणाम

3 दिसंबर की वो सुबह


धीरे-धीरे सुबह हो रही थी और सामने आ रही थी रात की भयानक तस्वीर, जिसे देखकर हर किसी की रूह कांप जाए। सड़कों के अलावा भोपाल के रेलवे स्टेशन लाशों से पटे पड़े थे। हर तरफ लाश ही लाश नजर आ रही थी। उस वक्त भोपाल के कलेक्टर रहे मोती सिंह शहर के हालात को बयां करते हुए सिहर उठे। इंसानी लाशों को कचरे की तरह गाड़ियों में लादा जा रहा था।  

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क्या था कारण ?


भोपाल में हुई भयंकर त्रासदी की चारों तरफ चर्चा होने लगी। घटना की जांच के लिए CISR डॉयरेक्टर त्यागराजन को जिम्मा सौंपा गया। बारीकी से जांच करने पर पता चला कि आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है। रिसाव कैसे हुआ ? जांच में पाया कि MIC गैस के ई-610 टैंक में लोहे की अशुद्धियों वाले पानी के मिलने से यह दुर्घटना हुई थी।

भोपाल गैस कांड 610 टैंक के लिए इमेज परिणाम


सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी रिसर्चर माइकल राइट ने भारत सरकार के इनकार के बाद  गुप्त रुप से जांच की। माइकल ने अपनी जांच के दौरान प्लांट के कई गोपनीय नक्शों व दस्तावेजों को खंगाला। माइकल की जांच के मुताबिक यूनियन कार्बन फैक्ट्री में लगे सभी सुरक्षा उपकरण खराब थे। उन्होंने बताया कि जिस दिन यह हादसा हुआ, उस दिन करीब साढ़े 9 बजे तक केमिकल प्रोसेसिंग का काम हुआ था। इसके तहत प्लांट की सभी प्रोसेसिंग पाइप्स में पानी का प्रेशर मार कर उन्हें साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया में दूसरी तरफ से पानी का निकलना जरुरी होता है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पानी पाइप्स में रह गया और हादसे का बड़ा कारण बना।


मौतों का आंकड़ा आज भी अनसुलझा


इस त्रासदी में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5 लाख 58 हजार 125 लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरे जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आ गए। इस हादसे में तकरीबन 25 हजार लोगों की जान गई, लेकिन कुछ आंकड़े कभी सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खा पाए। त्रासदी का असर आज भी बदस्तूर जारी है। भोपाल में जिन बच्चों ने उस वक्त जन्म लिया उनमें से कईं विकलांग पैदा हुए तो कईं किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए।

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डॉक्टर डेथ
त्रासदी में मारे गए लोगों की लाशों की फिक्र सिर्फ एक व्यक्ति को थी। जिसका नाम डॉ. डी के सत्पथी है। जिसने एक दिन में 876 पोस्टमॉर्टम किए। 3 दिसंबर 1984 के बाद सारा भोपाल इन्हें "डॉक्टर डेथ" के नाम से जानता है।

डॉ डीके सत्पथी डॉक्टर डेथ के लिए इमेज परिणाम

मुआवजा राशि, प्रदर्शन और इंसाफ


यूनियन कार्बाइड ऑफ इंडिया लिमिटेड को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 1989 में निर्देश दिया था कि वह गैस पीड़ितों के लिए 47 करोड़ डॉलर की मुआवजा राशि का भुगतान करे। अमेरिकी कंपनी ने यह बात मानते हुए राशि भारत सरकार को दे दी थी, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक में जमा करा दिया गया। इसके बाद भारत सरकार के कल्याण आयुक्त की ओर से गैस पीड़ितों को मुआवजा दिया गया।

विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदियों में शामिल भोपाल गैस कांड के 33 साल गुजर जाने के बाद भी इससे प्रभावित लोग और उनकी आगे की पीढियां स्वास्थ्य सुविधाओं, मुआवजा, राहत और पुनर्वास के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसके साथ ही पीड़ितों को इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों और यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन (जिसकी मृत्यु हो चुकी है) को कथित रुप से भगाने वाले लोगों को सजा दिलाने के लिए लड़ना पड रहा है। 

 

भोपाल गैस कांड के लिए इमेज परिणाम

हादसे का जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन 
भोपाल में हुए गैस कांड को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी माना जाता है। यूनियन कार्बाइड का प्रमुख वारेन एंडरसन था। घटना के 4 दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन जमानत मिलने के बाद वह अमेरिका लौट गया। इसके बाद वह शिकंजे में नहीं आया। एंडरसन को ही हादसे में मारे गए लोगों का कातिल माना जाता है। गुमनामी में जी रहे एंडरनसन की 92 साल की उम्र में 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में मौत हो गई। एंडरसन की मौत पर लोगों ने खुशी तो मनाई, लेकिन वो त्रासदी में मिले जख्मों को कम करने के लिए नाकाफी ही रहेगी।

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उस रात जो हुआ वो आज तक कोई नही भूला पाया। वो रात जिसने एक झटके में औद्योगिकीकरण के चेहरे का नकाब उतार फेंका। 33 साल पहले कुछ लम्हों की लापरवाही की खता लोग सदियों तक भुगतते रहेंगे।

 

Created On :   1 Dec 2017 1:29 PM GMT

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