असम में थे पिता, जब जन्मे 10वें गुरू गोबिंद सिंह, जानें ये खास बातें...
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सिखों के 10वें गुरू गोबिंद सिंह को इससे पूर्व हुए संतों में सबसे विलक्षण थे। वे एक संत के साथ ही धर्मरक्षक, महान कर्मप्रेणता और वीर योद्धा के रूप में भी जाने जाते हैं। भक्ति और ज्ञान के साथ ही समाज के उत्थान के लिए भी उन्होंने मार्ग बताए। त्याग और बलिदान के साथ ही दृढ़ संकल्प का अद्भुत रूप गुरू गोबिंद सिंह में देखने मिला।
माता-पिता की एकमात्र संतान
गुरू गोबिंद सिंह में गुरू नानक देव जी की दसवीं ज्याेति प्रकाशमयी हुई। जिस वजह से इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है। इनका जन्म बिहार की राजधानी पटना में 1666 ई. में सिख धर्म के नौवे गुरु तेगबहादुर साहब और माता गुजरी के घर हुआ। ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे और बचपन से ही इनमें विलक्षण और अद्भुत गुण देखने मिले।
लंबे समय तक रुकने की प्रार्थना
गुरू गोबिंद सिंह के पिता गुरू तेगबहादुर भी गुरू नानक की ही भांति दुनिया देश की यात्रा पर निकले थे। बताया जाता है कि पटना में पहुंचने पर वहां के लोगों ने उन्हें वहां लंबे समय तक रुकने की प्रार्थना की, किंतु उनके लिए ऐसा करना संभव नही था। अतः वे अपने परिवार को वहीं छोड़कर असम चले गए। इनमें उनकी मां नानकी, पत्नी गुजरी और साले कृपालचंद शामिल थे।
चरम पर था गुरू पुत्र के अवतरण का उत्साह
गुरू के परिवार के लिए पटना की संगत ने सुंदर भवन का निर्माण कराया, यहीं प्रकाश की नवीन ज्योति गुरू गोबिंद सिंह का जन्म हुआ। बताया जाता है कि उस वक्त गुरू पुत्र के अवतरण का उत्साह चरम पर देखने मिला था। इस नवजात शिशु को ईश्वर का रूप माना गया। इस स्थान को लोग आज पटना साहिब के रूप में जानते हैं। प्रकाश प्रर्व पर गुरू गोबिंद सिंह का जन्मदिवस पूरे देश में ही नही विदेशों में भी सिख धर्मावलंबियाें द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
Created On :   23 Dec 2017 4:29 AM GMT