मंदसौर में मारे गए 'किसान' नहीं थे !

5 killed madhya pradesh shooting not farmers
मंदसौर में मारे गए 'किसान' नहीं थे !
मंदसौर में मारे गए 'किसान' नहीं थे !
टीम डिजिटल, मंदसौर. मंदसौर में पुलिस फायरिंग में मारे गए पांचों लोग दरअसल 'किसान' नहीं थे. न तो उनकी अपनी जमीन थी और न वो अपनी जमीन पर खेती करते थे.
 
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मरने वालों में कोई भी व्यक्ति भूमि-मालिक यानि किसान नहीं था. मरने वालों में एक कक्षा 11वीं का 19 वर्षीय छात्र था. दूसरा 23 वर्षीय बेरोजगार था और सेना में शामिल होना चाहता था. तीसरा 30 वर्षीय जो बटाई की खेती पर काम करके अपना घर चलाता था और शेष दो - एक 22 वर्षीय और 44 वर्षीय अपने परिवार के साथ बटाई की जमीन पर काम किया करते थे.
 
इन सभी के परिवार मंदसौर शहर से 25 किलोमीटर की दूरी के भीतर वाले गांवों में रहते हैं. इस घटना के बाद परिवार के सदस्य सदमे में है और एक ही बात कह रहा है कि उनके इस दुख की भरपाई कोई कैसे कर सकता है. 
 
यें है वो 5 बेगुनाह लोग
 
अभिषेक दिनेश पाटीदार
बारखेड़ा पंथ गांव का अभिषेक कक्षा 11 का विज्ञान का छात्र था, वो अपने चार भाइयों में  सबसे छोटे था. अभिषेक के पिता  दिनेश का कहना है "कि उनका बेटा विरोध के दौरान सिर्फ नारे लगा रहा था वो किसी भी हिंसा में शामिल नहीं था. एक बच्चा पुलिस को क्या नुकसान पहुंचा सकता था जो पुलिस ने सीधे सीने पर गोली मारी. इस बात से खफा परिवार ने मंगलवार को हाईवे पर प्रर्दशन किया और जिला कलेक्टर के साथ भी मारपीट की, जिसके बाद पुलिस ने प्रर्दशनकारियों को 'तितर-बितर' कर दिया.
 
पूनमचंद उर्फ ​​बबलू जगदीश पाटीदार
 
पूनमचंद पीपलिया मंडी पुलिस स्टेशन से 25 किलोमीटर दूर टेकराड़ गांव के निवासी था. उसने बीएससी की पढ़ाई अपने पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारियों के कारण छोड़ दी थी.वह घर में अकेला लड़का था. वह बटाई पर खेती करता था उसने विरोध में हिस्सा इसलिए लिया, क्योंकि उसको सोयाबीन, लहसुन और गेहूं पर लगाई गयी, उसकी कीमत का आधा हिस्सी भी नहीं मिल पाता था. कांडिलल पाटीदार, जो इस घटना के साक्षी है. उनका कहना है कि "वह पानी पीने गया था" और पुलिस ने उसे छाती में गोली मार दी, साथ ही "पुलिस ने किसी भी प्रकार कोई चेतावनी नहीं दी थी. रिश्तेदार सुभाष पाटीदार का कहना है,कि अब पता नहीं " कौन ख्याल रखेगा उसकी पत्नी और बीमार मां का है."
 
चेनराम गणपत पाटीदार
नायखेड़ा गांव निवासी चैन्नम का विवाह 29 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. वो बटाई की जमीन पर काम करता था. चैन्नम के पिता का कहना है कि, "मेरे बेटे का सपना सेना में जाने का था". उसने महू, भोपाल और ग्वालियर में भर्ती शिविरों में भाग लिया लेकिन हर बार उसे खारिज कर दिया गया. एक समय परिवार के पास एक बड़ा जमीन का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 1970 के अंत में एक बांध के लिए इसे सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया था. रिश्तेदारों का कहना है कि सरकार द्वारा दिया मुआवजा इतना कम था कि परिवार कहीं और जमीन नहीं खरीद सका. परिवार को उम्मीद है कि चैनराम के छोटे भाई, जो कक्षा 12वी में पढ़ रहे हैं उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी, क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार ने वादा किया है.
 
सत्यनारायण मंगिलला धनगर
लोढ़ गांव के निवासी सत्यनारायण, जो कक्षा 7वीं में पढ़ाई करता था, वह परिवार को  मदद करने के लिए रोजाना 200 रुपये कमाता था. बड़े भाई राजू धनगर का कहना हैं वह अकेला था जो रोजाना कमाकर लाता था. सत्यनारायण चार भाईयों में सबसे छोटे थे. बड़े भाई का कहना है कि "अगर वो मुझे बताता कि वह विरोध रैली में शामिल होने जा रहा है, तो मैं उसे रोक लेता. पर वो सिर्फ रैली को देखने गया था, मैं नहीं जानता कि वह वहां कैसे खत्म हो गया''. अब पिता मांगीलाल चिंतित हैं कि उनके पास आधार कार्ड नहीं है क्योंकि बैंक खाता खोलने की आवश्यकता होगी. सरकार ने प्रत्येक मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपये देने का वादा किया है.
 
कन्हैयाल धुरिलाल पाटीदार
चिलोद पिपलिया के निवासी और दो बच्चों के पिता कन्हैयाल खुद कक्षा आठवीं तक पढ़े थे, लेकिन उनकी 16 साल की बेटी और 11 साल का बेटा स्कूल जाते हैं. कन्हैयाल अपने तीन भाइयों के साथ मिलकर बटाई पर खेती करता था. पड़ोसी सुरेश चंद्र पाटीदार के अनुसार, उसने सोचा कि पुलिस उसे बात करने के लिए बुला रही है, लेकिन उन्होंने उसे गोली मार दी, 

Created On :   11 Jun 2017 1:43 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story