साहस को सलाम: मां के संघर्ष ने दी बेटे को नई जिंदगी, थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित है मासूम

A Mother bravely saves the life of her thalassemia patient son
साहस को सलाम: मां के संघर्ष ने दी बेटे को नई जिंदगी, थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित है मासूम
साहस को सलाम: मां के संघर्ष ने दी बेटे को नई जिंदगी, थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित है मासूम

डिजिटल डेस्क, सतना। थैलेसीमिया मेजर, यानि मौत का दूसरा नाम और अंतत: बोनमैरो ट्रांसप्लांट में कामयाबी यानि-पुनर्जन्म। साहस-समझ और ऐसे ही परस्पर सहयोग की नजीर बन चुकी मैहर की माही आर्तानी अब औरों के लिए बड़ी प्रेरणा हैं। मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखने वाली माही के पति अविनाश मध्यम दर्जे के कारोबारी हैं।

छोटे से इस खुशहाल परिवार पर वक्त का कहर तब टूटा जब पता चला कि महज 4 माह का बेटा आदर्श लाइलाज हो चुके थैलेसीमिया (मेजर) से पीड़ित है। सतना से जबलपुर-नागपुर और इंदौर तक डॉक्टरों के पास सिर्फ एक ही सलाह थी  आजीवन ब्लड ट्रांसफ्यूजन। मगर, पीड़ित को सिर्फ जिंदा रखने की इस कामचलाऊ कवायद से माही संतुष्ट नहीं थीं। उन्होंने नेट पर सर्चिंग शुरू कर दी। इसी ऑनलाइन खोज में उन्हें तमिलनाडु के वेल्लूर स्थित सीएमसी में बोनमैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) का पता चला, लेकिन इतना ही काफी नहीं था। एक तो स्थाई राहत की गारंटी नहीं होने का रिस्क, उस पर 60 दिन के ट्रीटमेंट पर 14 लाख की एकमुश्त रकम का भारी भरकम खर्च। एक मिडिल क्लास फैमिली के सामने पहाड़ जैसा एक और संकट सामने था।

पीएम से लेकर सीएम तक: अमेरिका से भी मिली आर्थिक मदद
मगर, आदर्श की मां माही निराश होने वालों में नहीं थीं। मासूम बेटे की जिंदगी के लिए मौत से भिड़ जाने का समझदारी भरा साहस जुटा चुकी थीं। उन्होंने केंद्र-राज्य सरकार से आर्थिक मदद के लिए नेट पर सर्चिंग और भी तेज कर दी। इसी बीच माही ने डाक्यूमेंट्स के साथ अलग-अलग तकरीबन 40 लिफाफे पोस्ट किए। वर्ष 2015 की 29 सितंबर को बड़ी कामयाबी तब मिली जब प्रधानमंत्री के फंड से उन्होंने 3 लाख रुपए की वित्तीय मदद मिली।

तकरीबन 10 दिन बाद अमेरिका की मैरी मैरीसल से 1 लाख 50 हजार रुपए की मदद आने के साथ ही मानो आर्थिक मदद का सिलसिला शुरू हो गया। मुख्यमंत्री कोष से 2 लाख और मिलाप आर्गेनाइजेशन फंड को ऑनलाइन लिंक करने पर 2 लाख 50 हजार रुपए की मदद आई। सतना-मैहर के सिंधी समाज ने मिलकर 1 लाख और रीवा से भी 1 लाख का सामाजिक सहयोग मिला। रिश्तेदारों ने मिल कर 3 लाख रुपए जुटाए और इस तरह से माही जैसे-तैसे अपने बेटे आदर्श के बोनमैरो ट्रासंप्लांट के लिए 14 लाख रुपए जुटाने में कामयाब हो गईं।

संकट के 60 दिन
दृढ़ इच्छा शक्ति की दम पर माही इससे पहले 8 माह की उम्र में ही थैलेसीमिया पीड़ित बेटे का HLA टेस्ट करा चुकी थीं। ये भी रेयर था, मगर भाग्य से बतौर डोनर उनके बड़े बेटे रोमिल का ब्लड ग्रुप मैच कर जाने से कामयाबी की पहली सीढ़ी मिल चुकी थी। अंतत: आदर्श को अप्रैल 2017 में बोनमैरो ट्रासंप्लांट के लिए सीएनसी में भर्ती कराया गया। तब सीएनसी में भर्ती आदर्श सबसे कम उम्र का पेशेंट था।

डॉक्टरों के मुताबिक बोनमैरो ट्रासंप्लांट का प्रॉसेस बेहद रिस्की था, लेकिन, आखिरी सांस तक हर संभव कोशिश पर अडिग मां माही पीछे हटने को तैयार नहीं थी। बॉडी चेकअप के बाद आदर्श को बेहोश कर उसके शरीर में सेंट्रललाइन डाली गई। डीएमटी रूम में जहां मासूम का 12 दिन कीमो चला। वहीं आदर्श के बड़े भाई रोमिल को बतौर डोनर आईसीयू में रखा गया। 60 दिन तक चले इस मेडिकल प्रासेस के दौरान हालात ये रहे कि महज 2 साल के पेशेंट को कोई छू तक नहीं सकता था। खाना तक उसे स्वयं ही खाना होता था।

 

Created On :   11 Aug 2018 8:21 AM GMT

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