आधार : SC का सवाल- क्या पहचान मांगने का अधिकार सरकार को नहीं?

Aadhaar Case Supreme Court asks Is Government not entitled to seek ID proof from citizens
आधार : SC का सवाल- क्या पहचान मांगने का अधिकार सरकार को नहीं?
आधार : SC का सवाल- क्या पहचान मांगने का अधिकार सरकार को नहीं?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। "आधार कार्ड" की वैलिडिटी को चुनौती देने वाली पिटीशंस पर मंगलवार को फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "क्या सरकार उन लोगों से पहचान पत्र मांगने का अधिकार नहीं रखती, जिन्हें पहचान के आधार पर कुछ तय फायदे मिलने हैं।" चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा ने कहा कि "अगर आपको किसी योजना का फायदा मिलना है, तो क्या सरकार उसके लिए आपकी पहचान नहीं मांग सकती?" इस पर दलील देते हुए कहा कि "लोगों को उनके स्टेटस के हिसाब से फायदा मिलता है, तो ऐसे में पहचान साबित करने का कोई दूसरा ऑप्शन भी होना चाहिए।" बता दें कि अब इस मामले पर अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी?


फायदा मिल रहा है, तो उसके लिए पहचान नहीं मांग सकते

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को आधार कार्ड पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि "सरकार की आधार योजना के पीछे ये मंशा हो सकती है कि कुछ लोगों के पास एक से ज्यादा राशन कार्ड या पासपोर्ट बने हुए हैं। अगर आपको किसी योजना का फायदा मिलना है, तो क्या सरकार उसके लिए पहचान नहीं मांग सकती? क्या ये तार्किक शर्त नहीं है?" कोर्ट ने कहा कि "अगर किसी शख्स किसी योजना का फायदा मिलना है, तो आप कौन हैं इसकी पहचान करने के लिए रास्ता तो निकालना ही होगा।" हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि "किसी के मौलिक अधिकार को किसी शर्त के कारण खत्म नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा होता है तो ये शर्त असंवैधानिक होगी।"

व्यक्ति को स्टेटस के हिसाब से मिलता है फायदा : सिब्बल

वहीं वेस्ट बंगाल सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि "आधार को किसी व्यक्ति का क्या स्टेटस है, उससे लिंक किया गया है। इसी स्टेटस के हिसाब से उस व्यक्ति को फायदा मिलता है। ऐसे में लोगों को पहचान साबित करने का दूसरा ऑप्शन भी होना चाहिए।" सिब्बल ने उदाहरण देते हुए कहा कि "अगर कोई महिला विधवा है, तो उसके स्टेटस से वो विधवा पेंशन की हकदार है और उसके लिए सरकार उसे आधार के जरिए ही पहचान देने के लिए बांध नहीं सकती। बतौर नागरिक मुझे मेरी पहचान साबित करने के कई सारे तरीके हैं, लेकिन आधार ही मेरे स्टेटस को कैसे साबित कर सकता है। जबकि देश की सबसे बड़ी पहचान तो सिटीजनशिप है।" कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि "आजादी के बाद आधार देश का सबसे जरूरी मामला है, क्योंकि इस पर दिए गए जजमेंट से ही देश का भविष्य तय होगा। आधार पर दिया गया फैसला ही तय करेगा कि हमें अपनी पहचान देने का ऑप्शन होगा या फिर सरकार तय करेगी कि हमारी चॉइस क्या होगी?" सिब्बल ने कहा कि अब कोर्ट को तय करना है कि देश का भविष्य क्या होगा?

देश की सबसे बड़ी पहचान सिटीजनशिप है : सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि "हमारी सबसे बड़ी पहचान यही है कि हम भारत के नागरिक हैं। आधार के साथ स्टेटस को लिंक करने में दिक्कत नहीं है, लेकिन स्टेटस ऊपर होना चाहिए, आधार नहीं।" सिब्बल ने कहा कि "कोई भी कानून इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकता कि आप अपने मौलिक अधिकारों का सरेंडर कर दें। आज रेलवे और फ्लाइट की टिकट तक के लिए आधार मांगा जा रहा है।" सिब्बल ने आधार के लिए मांगे जाने वाले डेटा को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि "हमारी सिटीजनशिप ही मौलिक पहचान है और ऐसे में आधार के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता।" उन्होंने आगे कहा कि "जीवन जीने का अधिकार है, मौलिक अधिकार है और वो सुरक्षित है, लेकिन सरकारी योजनाओं के फायदे के लिए पहचान को उजागर किया जा रहा है।"

स्टेटस के हिसाब से फायदे देना कानूनी बाध्यता : CJI

कपिल सिब्बल की दलीलों पर जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि "किसी भी फायदे के लिए मिला स्टेटस और पहचान दो अलग-अलग चीजें हैं। सरकार से अपने स्टेटस के हिसाब से ही फायदा मिलता है, जो कानूनी बाध्यता है और ये संविधान के आर्टिकल-21 के तहत सेफ है।" इस पर सिब्बल ने दलील दी कि "अगर पसंद-नापसंद का कोई ऑप्शन न हो तो फिर ये संविधान का उल्लंघन है।" इस पर जस्टिस एके सीकरी ने सवाल किया कि "अगर एक आदमी के पास एक से ज्यादा पासपोर्ट और राशन कार्ड है, तो ऐसे में अगर आधार कार्ड बनवाया जा रहा है और इसके लिए बायोमैट्रिक डेटा मांगा जा रहा है तो इसमें क्या परेशानी हो सकती है?" तो सिब्बल ने जवाब देते हुए कहा कि "अगर कुछ लोगों ने गलत किया है तो इसके लिए 130 करोड़ लोग परेशान क्यों हों?"

क्यों हो रही है आधार पर सुनवाई? 

दरअसल, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में आधार की अनिवार्यता के खिलाफ सुनवाई की गई थी, जिसपर फैसला देते हुए कोर्ट ने इसे संविधान के तहत निजता का अधिकार माना था। कोर्ट ने कहा था कि ये व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। उस वक्त पिटीशनर्स का कहना था कि आधार को हर चीज से लिंक कराना निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) का उल्लंघन है। पिटीशन में कहा गया था कि इससे संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंच ने इसे निजता का अधिकार माना था।

Created On :   14 Feb 2018 3:10 AM GMT

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