आदिवाली बहुल ग्रामों में कुपोषण से निपटने बनाया एक्शन प्लान

Action plan designed to deal with malnutrition in tribal dominated villages
आदिवाली बहुल ग्रामों में कुपोषण से निपटने बनाया एक्शन प्लान
आदिवाली बहुल ग्रामों में कुपोषण से निपटने बनाया एक्शन प्लान

डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली।  आदिवासी बहुल गड़चिरोली जिले में कुपोषण समेत बाल मृत्यु की समस्या वर्षों से जस की तस बनी हुई है। इस गंभीर समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने  एक अहम निर्णय लेते हुए एक्शन प्लान तैयार किया है। इस संदर्भ में  सरकार ने एक अधिकृत परिपत्रक  भी जारी किया है। साथ ही कुपोषण के लिए संवेदनशील जिलों के जिला महिला एवं बाल कल्याण अधिकारियों को एक पत्र भेजकर बगैर आदिवासी क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्र की जानकारी मंगवायी गयी है।

बता दें कि, सरकार ने ग्राम बाल विकास केंद्र निर्माण करने के लिए पहले चरण में 14 करोड़ 44 लाख 44 हजार रुपयों की निधि का प्रावधान किया है। इस निधि के माध्यम से बगैर आदिवासी क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं के आवंटन के साथ अतितीव्र कुपोषित बालकों के स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए विशेष उपाययोजना की जाएगी। उल्लेखनीय है कि, आदिवासी बहुल गड़चिरोली जिले में 1 हजार 500  से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र होकर 800  से अधिक मिनी आंगनवाड़ी कार्यरत है। इनमें से 45  फीसदी से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र बगैर आदिवासी क्षेत्र में शामिल हैं। इन केंद्रों में बरसों से बुनियादी सुविधओं का अभाव है। सरकार द्वारा प्रति माह उपलब्ध किए जा रहें पोषाहार से ही कुपोषण के प्रमाण को कम करने का प्रयास यहां हो रहा है। साथ ही इन केंद्रों में नौनिहालों की नियमित स्वास्थ्य जांच भी नहीं हो पा रही है। नतीजतन, जिले में कुपोषण का प्रमाण कम नहीं हो रहा है। जिला परिषद के महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जिले में11 हजार 400  से अधिक बालक कुपोषण की श्रेणी में हैं  जिसमें 500  से अधिक बच्चे अतितीव्र श्रेणी में समाविष्ट होने की जानकारी रिपोर्ट में दी गयी है। इन बच्चों को तत्काल प्रभावी उपचार की आवश्यकता होने की जानकारी रिपोर्ट में बतायी गयी है। 

 सनद रहें कि, गड़चिरोली जिला पूरी तरह आदिवासी बहुल है। यहां पर जीवनयापन कर रहे अधिकांश आदिवासी नागरिक अशिक्षित होने के कारण किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज अस्पतालों में करवाने के बजाए गांव के  तांत्रिक-मांत्रिक का शरण में जाते हैं । कम उम्र में विवाह, गर्भधारणा के समय महिलाओं द्वारा शराब का सेवन, पोषाहार का अभाव आदि कारणों के चलते कुपोषण समेत बाल मृत्यु का प्रमाण बढऩे लगा है। इस समस्या से निपटने के लिए आदिवासी ग्रामीण अस्पतालों का दरवाजा खटखटाने के बजाए मांत्रिकों के शरण में जाने से यह समस्या जटिल बनी हुई है। सरकार द्वारा प्रति माह लाखों रुपयों की निधि खर्च कर आंगनवाड़ी केंद्रों में पोषाहार  उपलब्ध कराया जा रहा है। केंद्रों के माध्यम से नौनिहालों बालकों समेत गर्भवती माताओं व किशोरियों को पोषाहार का वितरण किया जा रहा है। साथ ही वैद्यकीय टीम के माध्यम से संबंधितों की स्वास्थ्य जांच  करायी जा रही है। मात्र इस कार्य में जनजागृति का अभाव होने से कुपोषण का प्रमाण कम होता नजर नहीं आ रहा है। इसी समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा आंगनवाड़ी केंद्रों को और अधिक मजबूत करने का प्रयास आरंभ किया गया है। 

कम हो रहा कुपोषण का प्रमाण 

जिले में कार्यरत आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से प्रति माह पोषाहार के वितरण के साथ नौनिहाल बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच करायी जा रही हंै। गर्भवती माताओं के अलावा किशोरियों की स्वास्थ्य जांच भी वैद्यकीय टीम द्वारा की जा रही है। बगैर आदिवासी क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्रों में ग्राम बाल विकास केंद्र निर्माण करने का निर्णय सराहनीय है। इस केंद्र से यकीनन कुपोषण के प्रमाण में कमी लायी जा सकती है। - ए. आर. लामतुरे .उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी (बाल कल्याण) जिप गड़चिरोली

Created On :   1 Aug 2019 7:19 AM GMT

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