इस लाईब्रेरी की उम्र 155, मौजूद हैं 23 हजार किताबें और 1200 दुर्लभ ग्रंथ

Age of library is 155, includes 23000 books and 1200 rare texts
इस लाईब्रेरी की उम्र 155, मौजूद हैं 23 हजार किताबें और 1200 दुर्लभ ग्रंथ
इस लाईब्रेरी की उम्र 155, मौजूद हैं 23 हजार किताबें और 1200 दुर्लभ ग्रंथ

डिजिटल डेस्क, नागपुर। यहां अनेक विरासतें यहां के ऐतिहासिक महत्व की साक्षी हैं। भले ही यह धरोहर समय की मार सह रही हो, लेकिन अपनी जड़ें नहीं छोड़ी हैं। वहां कदम रखते ही इतिहास की यादें ताजा हो जाती हैं। इस बात का विश्वास हो जाता है कि प्राचीनकाल में इन विरासतों का काफी महत्व रहा होगा। मुगलों और अंगरेजों के समय में यहां के राजा-महाराजाओं द्वारा बनायी गई कुछ इमारतें आज भी खड़ी हैं। भले ही इन इमारतों का उपयोग अन्य प्रयोजन के लिए हो रहा हो मगर यह आज भी शहर का गौरवगान करती हैं। शहर के मध्य में स्थित राष्ट्रीय वाचनालय की इमारत बीते इतिहास का सुनहरा पन्ना है। 250 साल पुरानी यह इमारत एक समय में भोसले राजमहल की निगरानी के लिए बनाया गया बुर्ज है।

तीन मंजिला यह इमारत उस समय की वास्तुकला और भव्यता का उत्तम उदाहरण है। सन 1768 में नागपुर में भोसले राजाओं का साम्राज्य था। उस समय उनका राजमहल वर्तमान महल परिसर में था। भोसले राजा ने राजमहल और आसपास के परिसर की निगरानी करने के लिए एक बुर्ज बनाया था। इस तीन मंजिला इमारत की ऊंचाई जमीन से 100 फीट है। राजपाठ समाप्ति के बाद प्रशासन ने इस बुर्ज के तीनों माले अलग-अलग प्रयोजन के लिए दे दिए। तल माले पर सब रजिस्ट्रार कार्यालय और पोस्ट ऑफिस है। दूसरे माले पर राष्ट्रीय वाचनालय और तीसरे माले पर राष्ट्रीय वाचनालय की खुली जगह है। इस वाचनालय से आज भी ज्ञान की गंगा बह रही है। यह इमारत हेरिटेज सूची में शामिल है।

यहां से होती थी राजमहल की निगाहबानी
भोसले राजाओं द्वारा बनायी गई इमारत वर्तमान में दूसरे प्रयोजन के लिए इस्तेमाल हो रही है। पहले जिस इमारत से राजमहल की निगरानी हुआ करती थी अब वहां वाचनालय है। यह विदर्भ का 155 साल पुराना राष्ट्रीय वाचनालय है। इसकी स्थापना 1863 में की गई थी। महल के डीडी नगर विद्यालय से इसकी शुरुआत हुई। उस समय इसका नाम नेटिव लाइब्रेरी था। ब्रिटिशकाल में इसका नाम बदलकर नेशनल लाइब्रेरी कर दिया गया था। 1942 में इसका स्थानांतरण भोसले के बुर्ज में हुआ। उस समय इस परिसर को मैक्डोनल टाऊन हॉल परिसर कहा जाता था। इसी परिसर में बुर्ज था।

इस इमारत के पहले माले पर वाचनालय काे स्थानांतरित कर दिया गया। इसी समय इसका नाम राष्ट्रीय वाचनालय रखा गया। इस समय राष्ट्रीय वाचनालय के पास पहले माले पर 3500 वर्ग फीट और दूसरे माले पर 2100 वर्ग फीट जगह है। 5600 वर्ग फीट जगह में से पहले माले की 3500 फीट जगह की वाचनालय के उपयोग की है। दूसरे माले की जगह खुली होने से यहां कार्यक्रम आदि किये जाते हैं। पहले माले पर स्थित कमरों में ही अलमारी, कार्यालयीन फर्नीचर, पाठकों के लिए बैठने की व्यवस्था आदि की गई है।

यहां है दुर्लभ ग्रंथों का खजाना
इस समय राष्ट्रीय वाचनालय के पास 23 हजार किताबें, 1200 दुर्लभ ग्रंथ, 150 समाचार पत्र, मासिक, पाक्षिक और साप्ताहिक की कुल संख्या है। यहां की सदस्य संख्या 950 से अधिक है। यहां इसवी सन 1600 एवं अंगरेजकालीन पुराने ग्रंथ और किताबों का खजाना है। सीपी एंड बरार प्रांत से संबंधित संदर्भ ग्रंथ कमर्शियल एंड जनरल डायरेक्टरी 1941, संशोधनांजलि, नागपुर का सांस्कृतिक इतिहास, देश-दुनिया के तानाशाह, राजा-महाराजा आदि की जानकारी देने वाली किताबें, रजिया सुल्तान से टीपू सुल्तान तक पठनीय सामग्री इस वाचनालय में है। इस वाचनालय की स्थापना के लिए उस समय एम्प्रेस मिल ने 1000, जी.एम.चिटणवीस ने 500, कुमार लक्ष्मणराव भोसले ने 300, द संस्थानिक इस्टेट ने 250, द स्वदेशी मिल्स ने 200, डी. ए. टालाटुले ने 150, गणपतराव घटाटे ने 125, आर.बी.बापूराव दादा, गोस्वामी रामकृष्ण पुरी, सेठ जमनादास पाटदार, एच.एम. मलक, सेठ मोतीलाल आग्याराम, लक्ष्मीबाई इस्टेट, श्रीमंत रामचंद्र अहिरराव आदि ने 100-100 रुपए सहयोग दिया था।
 

Created On :   9 Sep 2018 11:55 AM GMT

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