यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज से डिग्री लेकर निकले स्टूडेंट्स का नहीं हो रहा रजिस्ट्रेशन

Ambedkar College of Law has taken refuge in Bombay High Court
यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज से डिग्री लेकर निकले स्टूडेंट्स का नहीं हो रहा रजिस्ट्रेशन
यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज से डिग्री लेकर निकले स्टूडेंट्स का नहीं हो रहा रजिस्ट्रेशन

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कॉलेज ऑफ लॉ, अमरावती रोड ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ की शरण ली है। दरअसल बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता को लेकर जारी विवाद के चलते कॉलेज से तीन वर्षीय या पांच वर्षीय लॉ डिग्री प्राप्त विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो रहा है। बीसीआई ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली और विविध राज्यों की बार काउंसिल्स को ऐसा करने के निर्देश जारी कर रखे हैं। इस मुद्दे को लेकर कॉलेज प्रबंधन ने कोर्ट में याचिका दायर कर राहत की मांग की है। अपनी याचिका में कॉलेज ने कोर्ट से विनती की है कि, वह आदेश जारी करे कि, कॉलेज को बीसीआई से फ्रेश अप्रूवल लेने की जरूरत नहीं है। वहीं कॉलेज से डिग्री प्राप्त विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन न रोके। वहीं मान्यता के शुल्क के तौर पर भरी गई अतिरिक्त रकम भी वापस करे। मामले में प्रतिवादी बीसीआई आैर राज्य उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया गया है। हाल ही में इस संबंध मंे सुनवाई हुई। अब अगली सुनवाई न्यायालय के क्रिसमस अवकाश के बाद रखी गई है। कॉलेज प्रबंधन की ओर से एड. पुरुषोत्तम पाटील काम-काज देख रहे हैं। 

मान्यता को लेकर विवाद
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के 2008 के नए अधिनियम के अनुसार कॉलेज संचालन के लिए किसी भी विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों को बीसीआई की मान्यता जरूरी है। याचिकाकर्ता लॉ कॉलेज की दलील है कि, यह शर्त केवल विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों के लिए है। स्वयं विश्वविद्यालय संचालित कॉलेजों के लिए बीसीआई की मान्यता जरूरी नहीं है।  वर्ष 2013 में बीसीआई ने उस साल अप्रूव्ड कॉलेजों की सूची जारी की थी, इसमें याचिकाकर्ता कॉलेज को तीन वर्षीय एलएलबी पढ़ाने के लिए वर्ष 2010-11 शैक्षणिक सत्र तक मान्यता प्राप्त दर्शाया गया था। पांच वर्षीय एलएलबी के लिए ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं थी। 

कैप लागू होने के बाद बढ़ी परेशानी
वर्ष 2015-16 में महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेश में लॉ में प्रवेश के लिए सेंट्रलाइज एडमिशन प्रोसेस लागू किया, इसमें कॉलेजों को बीसीआई से मान्यता प्राप्त होने या न होने के आधार पर दो श्रेणियों में विभाजित किया गया था। उच्च शिक्षा संचालनालय ने इस ऑनलाइन कैप प्रोसेस के जरिए एडमिशन लेने के लिए सभी कॉलेजों को बीसीआई की मान्यता लेने के निर्देश जारी किए थे। याचिकाकर्ता का तर्क है कि, इस आधार पर कॉलेजों को केवल शैक्षणिक सत्र 2014-15 से मान्यता लेना जरूरी था। उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशों पर याचिकाकर्ता कॉलेज ने शैक्षणिक सत्र 2016-17 में बीसीआई से मान्यता के लिए 26 जुलाई 2016 को आवेदन किया और 6 लाख 50 हजार रुपए शुल्क भी अदा किया। 

21 लाख 50 हजार का बकाया 
इसके बाद  13 सितंबर 2016 को बीसीआई ने मान्यता प्राप्त कॉलेजों की सूची जारी की। इस सूची में याचिकाकर्ता कॉलेज पर वर्ष 2007-08 से लेकर 2012-13 तक के छह शैक्षणिक सत्रों की पैनल्टी के तौर पर 21 लाख 50 हजार रुपए का बकाया दर्शाया गया। इस पर आपत्ति लेते हुए कॉलेज प्रबंधन ने बीसीआई को निवेदन सौंपा था, मगर उस पर कोई हल नहीं निकला, लेकिन कोई हल न निकालते हुए बीसीआई, बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को निर्देश दिए कि, वे याचिकाकर्ता कॉलेज से डिग्री प्राप्त विद्यार्थियों का वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन करना बंद कर दें। परिणाम स्वरूप विद्यार्थी कॉलेज पर केस करने लगे, ऐसे में कॉलेज ने हाईकोर्ट की शरण ली है। 
 

Created On :   10 Dec 2018 7:49 AM GMT

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