महाराष्ट्र: जीएसटी अधिनियम में संशोधन को मिली मंजूरी, नहीं होगी करों में कटौती 

Amendment of GST Act approved, will not be tax deduction
महाराष्ट्र: जीएसटी अधिनियम में संशोधन को मिली मंजूरी, नहीं होगी करों में कटौती 
महाराष्ट्र: जीएसटी अधिनियम में संशोधन को मिली मंजूरी, नहीं होगी करों में कटौती 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र वस्तू व सेवा कर अधिनियम-2017 में विभिन्न संशोधन सहित अध्यादेश जारी करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है। इस संशोधन से जीएसटी की दरों में कोई वृद्धि या कटौती नहीं होगी बल्कि करदाताओं की प्रक्रिया में सुलभता और एकरूपता से विभिन्न समस्याओं का निराकरण संभव हो सकेगा। केंद्रीय वस्तु व सेवा कर और राज्य वस्तु व सेवाकर वसूला जाता है। 30 अगस्त 2018 को केंद्रीय वस्तु व सेवाकर अधिनियम में संसोधन किया गया था। अब दोनों अधिनियम में एक रुपता लाने के लिए राज्य के जीएसटी अधिनियम में भी संशोधन करना जरूरी है। जीएसटी परिषद ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि 15 अक्टूबर से पहले यह संशोधन कर लिया जाए। 1 जुलाई 2017 से राज्य में जीएसटी लागू है। इसके बाद यह पहला संसोधन होगा।

राज्य जीएसटी में होगा यह संसोधन

॰ मौजूदा स्थिति में व्यापार-व्यवसाय के लिए एक राज्य में केवल एक ही पंजीयन दाखिल किया जाता है। लेकिन अब संशोधन से एक ही राज्य में अलग-अलग व्यापार-व्यवसाय के लिए अलर-अलग पंजीयन की सुविधा होगी।
॰  मूल स्त्रोत से कर एकत्रित करने के लिए (टीडीएस) पात्र न होने वाले इलेक्ट्रॉ निक व्यापारियों के लिए 20 लाख टर्नओवर की सीमा पार होने तक पंजीयन की जरूरत नहीं होगी। 
॰ कंपोजीशन स्कीम के लिए कारोबार की मर्यादा एक करोड़ रुपए से ढाई करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया गया है।
॰ कर सलाहकार को फिलहाल केवल विवरणपत्र दाखिल करने तक मदत (सेवा) करने की अनुमति है। लेकिन संशोधन के बाद पंजीयन दाखिला रद्द करने अथवा कर वापसी का दावा दाखिल करने संबंधी सेवा व्यापारी को देने की अनुमति होगी। 
॰ एक पैन धारक का एक से अधिक राज्य में व्यापार-धंदा होने पर एक राज्य में कर वसूली नहीं होने पर संबंधित कर को दूसरे राज्य से उस कंपनी से वसूलना संभव हो सकेगा।

विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन

राज्य मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम-2014 के विभिन्न धाराओं में संशोधन को मंजूरी दी है। संशोधन के अनुसार मुंबई, औरंगाबाद और नागपुर विधि विश्वविद्यालय में प्रो वाइस चांसलर के रूप में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति को इस व्यवस्था में शामिल किया जाएगा। फिलहाल विधि विश्वविद्यालय में कुलपति की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा नामनिर्देशित वरिष्ठ न्यायमूति के पास सौंपी जाती है। इसके माध्यम से ही विधि विश्वविद्यालयों का कामकाज संचालित होता है।

Created On :   3 Oct 2018 3:49 PM GMT

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