Remembering Amrish Puri: बॉलीवुड को आज भी खल रही महाखलनायक की कमी

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Remembering Amrish Puri: बॉलीवुड को आज भी खल रही महाखलनायक की कमी
Remembering Amrish Puri: बॉलीवुड को आज भी खल रही महाखलनायक की कमी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। 12 जनवरी 2005 एक ऐसा दिन जिस दिन हिंदी सिनेमा जगत ने अपना सबसे बेहतरीन नगीना खो दिया। ऐसा नगीना जिसकी कोई कॉपी नहीं है, वह नायाब था। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के सबसे उम्दा विलेन का किरदार अदा करने वाले अभिनेता अमरीश पुरी साहब की। कहा जाता है कि जब से बॉलीवुड में अमरीश पुरी की एंट्री हुई तब से लेकर 2005 तक कोई ऐसा खलनायक नहीं आ पाया जिसने अमरीश पुरी जैसी शख्सियत को खलनायकी में मात दी हो। हमारी हिंदी फिल्मों में एक बात कही जाती है कि किसी भी कलाकार की परख तभी होती है। जब वह अपने निभाए अभिनय के लिए दर्शकों के दिमाग में चढ़ जाए। यानि कि एक ऐसी छाप छोड़ दे जिसके बाद कुछ दिखाई ही न दे। कुछ ऐसी ही छाप महाखलनायक अमरीश पुरी ने हिंदी सिनेमा और अन्य भाषाओं के सिनेमा के साथ-साथ दर्शकों पर छोड़ी जो आज तक मिट नहीं पाई है।

 

 

एक खलनायक के चरित्र की पराकाषठा को जो चेहरे पर, हाव-भाव में, आखों में उतार दे ऐसी शख्सियत थी अमरीश पुरी, अमरीश पुरी एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने खलनायकी क्या है, खलनायक क्या होता है, इसकी परिभाषा दुनिया को समझाई। हालांकि अमरीश साहब ने कुछ ऐसे किरदार भी निभाए जो खलनायकी से हटकर थे, जिनमें कभी वे पिता बने तो कभी पुलिस अधिकारी और सभी किरदारों में उन्होंने वैसी ही जान फूंकी जैसी कहानी में किरदार की डिमांड होती है। आइए उनके जीवन के कुछ अन्य पहलुओं से रुबरू होते हैं।

 

 

मोलाराम की भूमिका के बाद बॉल्ड लुक में रहे अमरीश पुरी

ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के चरित्र अभिनेता मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी ने खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पाई। उन्होंने 1984 में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुंडा कर रहने का फ़ैसला किया। अभिनेता अमरीश पुरी ने भारतीय खलनायकी को सात समंदर पार तक पहचान दिलाई। अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब में हुआ, शिमला के बी एम कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा शुरूआत में वह रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रूख किया।

 

 

 

 

  • अमरीश पुरी अपने जीवन के पहले ही स्क्रीन टेस्ट में रिजेक्ट होने के बाद अमरीश पुरी ने भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी कर ली।
  • बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर पृथ्वी थिएटर में काम करने लगे। सत्यदेव दुबे को वो अपना गुरु भी मानते थे।
  • 1961 में अब्राहम अल्काजी के प्रोत्साहन से थियेटर में कदम रखा। जिसमें दी गई कुछ प्रस्तुतियों ने बॉलीवुड में एंट्री दिलाई। 
  • अमरीश पुरी ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरूआत 1971 में करीब 40 वर्ष की उम्र में “प्रेम पुजारी” से की फिल्म में उनका रोल बहुत छोटा था जिसकी वजह से उनकी प्रतिभा को नहीं पहचाना जा सका।
  • अमरीश पुरी फिल्म “रेशमा और शेरा” में पहली बार बड़ी भूमिका में नजर आए। इस फिल्म में वह पहली बार अमिताभ के साथ नजर आए।
  • 1980 के दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी 1987 में शेखर कपूर की फिल्म “मिस्टर इंडिया” में मोगैंबो की भूमिका के जरिए सभी के जेहन में छा गए।
  • फिल्म “मिस्टर इंडिया” का एक संवाद “मोगैंबो खुश हुआ” ने दर्शकों के मन में जो छाप छोड़ी कि खलनायक और खलनायकी का अंदाज ही बदल गया।
  • अमरीश पुरी ने विलेन वाली जो लकीर सिने जगत में खींची थी उसको आज तक कोई पार नहीं कर पाया।
  • के.एन.सिंह, प्रेमनाथ, प्राण, अमजद खान से शुरू होकर खलनायकी का सिलसिला अमरीश पुरी पर आकर ठहर गया।
  • अमरीश पुरी ने करीब तीन दशक में लगभग 250 फिल्मों में अभिनय का जौहर दिखाया।

 

 

 

इंडीयाना जोंस से बनाई अलग पहचान

अमरीश पुरी ने अपने जीवन में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही प्रकार की भूमिकाए की, जिनमें उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। सन् 1990 के दशक में उन्होंने “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता। अमरीश पुरी को अनेक फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का खिताब मिला। अमरीश पुरी ने देश से बाहर भी बहुत काम किया, उन्होने इंटरनेशनल फिल्म “गांधी” में “खान” की भूमिका निभाई। जिसके लिए उन्होने खूब तारीफ बटोरी, इसरके अलावा स्टीवन स्पीलबर्ग की “इंडीयाना जोंस” में एक अहम रोल निभा एक अलग पहचान बनाई।

 

अमरीश पुरी एक ऐसे खलनायक के रुप में उभर के सामने आए कि ज्यादातर निमार्ता, निर्देशकों के सामने उन्हें लेने के सिवा कोई चारा ही नहीं बचा। हीरो कोई भी हो फिल्म में हर फिल्म में बस एक ही विलेन होता था, वो था अमरीश पुरी। अमरीश पुरी ने लगभग-लगभग हिंदी सिनेमा के हर सितारे के साथ काम किया। जो 2005 के पहले तक था। जैसे-जैसे अमरीश फिल्मों में अभिनय करते गए। उनके अपोजिट में कुछ खास अभिनेता भी आते गए। जिनके साथ उनकी ट्यूनिंग बैठती गई। शुरुआती दौर में अमिताभ बच्चन की कई फिल्मों ने अमरीश पुरी ने खलनायकी की। कभी जमींदार तो कभी बिजनेजमैन, एक से बढ़कर एक शानदार, दमदार डायलाग वो भी रौबदार आवाज के साथ। जिसने पर्दे पर लोगों के रोंगटे खड़े कर दिए। यह थी अमरीश की अदाकारी, फिर धीरे- धीरे अमरीश पुरी सनी देओल के अपोजिट कई फिल्मों में विलेन बने। जिनमें अमरीश और सनी देओल के बीच के संवाद आज भी सिनेमा प्रेमियों के जेहन में है। 2005 में दमदार आवाज और अदायगी के अभिनेता अमरीश पुरी का 12 जनवरी 2005 को 72 साल की उम्र में ब्रेन ट्यूमर की वजह से मुंबई में निधन हो गया था। जिसके साथ बॉलीवुड जगत से एक महाखलनायक हमेशा के लिए रूखतृसत हो गया। 


 

 

अमरीश पुरी के कुछ फेमस संवाद


मोगैम्बो खुश हुआ (मिस्टर इंडिया)

डॉंग कभी रांग नहीं होता (तहलका)

आतंकवादी की कोई प्रेम कहानी नहीं होती है (दिलजले)

ये जशपाल राणा की ढ्योड़ी हैं यहां किसी को उंचा बोलने की इजाजत नहीं है (सलांखें)

ब्लैक डॉग पीने के बाद मेरे अंदर सैकड़ों काले कुत्ते दौड़ने लगते हैं (शहंशाह)

तीन जिंदगिया मौत का नकाब ओढ़कर न जाने कहा गायब हो गई हैं (दीवाना)

तबादलों से इलाके बदलते हैं, इरादे नहीं (गर्व)

जो जिंदगी मुझसे टकराती है सिसक सिसक कर दम तोड़ती है (घायल)

अजगर किसे कब निगल जाता है ये तो मरने वाले को भी नहीं पता चलता (विश्वात्मा)

बच्चा मां की गोद में बाद में पनपता है हमारा गुलाम पहले बन जाता है (कोयला)


 

इन पुरस्कारों से सम्मानित हुए अमरीश पुरी 

1968: महाराष्ट्र राज्य ड्रामा प्रतियोगिता, 1979: रंगमंच के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1986: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार, मेरी जंग, 1991: महाराष्ट्र राज्य गौरव पुरस्कार, 1994: सिडनी फिल्म महोत्सव, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार – सूरज का सातवां घोड़ा, 1994: सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार – सूरज का सातवां घोड़ा, 1997: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार सहायक – घटक, 1997: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड – घटक, 1998: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार विरासत, 1998: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए स्टार स्क्रीन अवार्ड – विरासत, 1990: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार सहायक – त्रिदेव, 1993: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार – मुस्कुराहट, 1994: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार सहायक – गर्दिश, 1996: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार – करण अर्जुन, 1996: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार सहायक – दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, 1999: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार – कोयला, 2000: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार – बादशाह, 2002: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार – गदर: एक प्रेम कथा।

Created On :   12 Jan 2018 10:28 AM GMT

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