विधानसभा मॉनसून सत्र, बात रखने को मोहताज ‘बैक बेंचर्स’

Assembly Monsoon Session - Back Benchers are unable to keep talk
विधानसभा मॉनसून सत्र, बात रखने को मोहताज ‘बैक बेंचर्स’
विधानसभा मॉनसून सत्र, बात रखने को मोहताज ‘बैक बेंचर्स’

योगेश चिवंडे, नागपुर। स्कूल में ‘बैक बेंचर्स’ की स्थिति किसी से छिपी नहीं रहती। इन पर विशेष ध्यान दे पाना संभव नहीं होता। कुछ इसी तरह की स्थिति विधानसभा-विधान परिषद के ‘बैक बेंचर्स’ की है। दुबले पर दो आषाढ़ वाली कहावत इन पर सही बैठता है। किसी विषय पर बोलने के लिए प्रथम कतार में बैठे वरिष्ठों को प्राथमिकता मिलती है। पार्टी के प्रतोद की सूची में भी इन्हें प्राथमिकता कम ही मिलती है। कई बार गुटबाजी भी इन पर हावी हो जाती है। ऐसे में ‘बैक बेंचर्स’ को सदन में बोलने का मौका कम ही मिलता है। अगर मौका मिल भी जाए तो समय के अभाव में 5 से 10 मिनट में इन्हें अपनी बात पूरी करनी होती है। लगातार हो रहे इस अन्याय से आखिरकार इन सदस्यों का गुस्सा फूट पड़ा। सदस्यों से इस बार रहा नहीं गया।

पिछले सप्ताह विधान परिषद की कार्यवाही के दौरान अनेक सदस्यों ने सभापति रामराजे नाईक निंबालकर के पास अपनी आपत्ति दर्ज कराई। राहुल नार्वेकर, विद्या चव्हाण, किरण पावस्कर सहित अनेक ‘बैक बेंचर्स’ ने अपनी नाराजगी जताई। कपिल पाटील ने भी  ‘बैक बेंचर्स’ का मुद्दा गंभीरता से रखा। सदस्यों का मत है कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जाता है। ऐसे में हमारे यहां बैठने का क्या औचित्य है। पूरक मांगों पर भी 5-5 मिनट में अपनी बात खत्म करने को कहा जाता है, ‘तो क्या हम यहां सिर्फ टेबल बजाने आए हैं’। हमें भी बोलने का उतना ही हक है, जितना दूसरों को। सदस्यों का यह आक्रामक रवैया देख सभापति भी सकते में थे।

निंबालकर को प्रतोद प्रमुखों को निर्देश देने पड़े कि  प्रतोद अपने स्तर पर बैठक लेकर इस समस्या का समाधान करें। संसदीय कार्यमंत्री गिरीश बापट को भी प्रतोद को कहना पड़ा कि वे गटनेता से चर्चा करेंगे कि कौन-कौन बोलने वाला है, इसके नाम तय करें। हालांकि समस्या सिर्फ बैक बेंचर्स के साथ नहीं है। मंत्रियों के साथ भी है। आरोप लगते रहे हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है। ऐसे में अधिकारियों की अनुपस्थिति के कारण कई बार सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ती है। एहतियात बरतते हुए संसदीय कार्यमंत्री गिरीश बापट ने अधिवेशन शुरू होने से पहले ही इस बाबत मुख्य सचिव के साथ बैठक कर सदन में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा शुरू होते समय संबंधित विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी को उपस्थित रहने के निर्देश दिए थे। मुख्य सचिव ने भी इस बाबत अपनी दृढ़ता दिखाई थी। परिपत्रक भी निकाला गया था, लेकिन इसका भी अधिकारियों पर कोई खास असर नहीं दिखा।

अधिवेशन में अधिकारियों की अनुपस्थिति के कारण एक दिन में दो बार कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। नियम 260 अंतर्गत किसानों की समस्या पर चर्चा शुरू रहते समय सदन में कोई भी अधिकारी उपस्थित नहीं था। नियमानुसार चर्चा के दौरान राजस्व, कृषि और सहकार विभाग के सचिव का उपस्थित होना अनिवार्य है। हालांकि सदन की परिभाषा में इसे अदृश्य माना जाता है, लेकिन विषय की गंभीरता को देखते हुए इन्हें नोटिंग करने के लिए गैलरी में उपस्थित रहना अनिवार्य है। इस तरह के उन्हें निर्देश भी हैं। लेकिन चर्चा के दौरान ये अधिकारी अनुपस्थित होने के कारण लगातार दो बार 15-15 मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। इसके लिए संसदीय कार्यमंत्री गिरीश बापट को खेद जताना पड़ा। हालांकि मंत्रियों की अनुपस्थिति  के कारण भी सदन की कार्यवाही स्थगित होना अब आम बन गया है।

Created On :   15 July 2018 11:10 AM GMT

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