इंदिरा गांधी की हत्या बाद तिहाड़ से सहायक सिख जेल अधीक्षक हटा दिए थे (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

Assistant Sikh Jail Superintendent was removed from Tihar after Indira Gandhis assassination (IANS Exclusive)
इंदिरा गांधी की हत्या बाद तिहाड़ से सहायक सिख जेल अधीक्षक हटा दिए थे (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)
इंदिरा गांधी की हत्या बाद तिहाड़ से सहायक सिख जेल अधीक्षक हटा दिए थे (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। बात है अक्टूबर-नवंबर सन 1984 की। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में कोहराम मचा हुआ था। इंदिरा गांधी की हत्या चूंकि दिल्ली पुलिस के सिख पुलिस सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गई थी, लिहाजा गुस्साए एक वर्ग विशेष ने दिल्ली में घटी जघन्य घटना के चलते तमाम सिख बिरादरी को ही कथित रूप से कसूरवार करार दे दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश की राजधानी में सिखों पर हमले होने लगे।

देखते-देखते यह बात तिहाड़ जेल प्रशासन के कानों में भी पहुंची। तिहाड़ जेल चूंकि राष्ट्रीय राजधानी में बाकी तमाम स्थानों से कहीं ज्यादा संवेदनशील थी, लिहाजा जेल प्रशासन ने एक अहम बैठक की। बैठक में तय हुआ कि जेल में किसी तरह का उपद्रव अगर बढ़ या फैल गया तो, हालात बेकाबू होते देर नहीं लगेगी। विशेष बैठक के तुरंत बाद तिहाड़ जेल की सुरक्षा में तैनात दोनों सिख सहायक जेल अधीक्षकों को आनन-फानन में हटा दिया गया। तब जाकर जेल प्रशासन की सांस में सांस आई। मैं उन दिनों तिहाड़ में खुद भी असिस्टेंट जेल सुपरिंटेंडेंट के पद पर तैनात था।

तिहाड़ जेल के इस असिस्टेंट जेल सुपरिंटेंडेंट का नाम है सुनील गुप्ता, जिन्होंने तिहाड़ की अपनी जिंदगी पर ब्लैक वारंट नामक किताब लिखी है, जो हाल ही में प्रकाशित हुई है।

सुनील गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, हद तो तब हो गई जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जेल में यह बात पहुंची कि सिख आतंकवादियों के डर से सरकार भयभीत है। लिहाजा यह हवा जेल के भीतर ऐसी पहुंची कि साम-दाम-दंड-भेद जैसे बना, जेल में बंद तमाम खूंखार मुजरिमों ने टेंटों वाली जेल में ही सिख पगड़ियां लगानी-पहननी रखनी शुरू कर दी। ताकि जेल प्रशासन को वे डरा कर काबू रख सकें। आज इतने साल बाद जब वह सब याद आता है तो हंसी आती है।

मंगलवार को जमाने के हाथों में आने वाली तिहाड़ जेल के पूर्व कानूनी सलाहकार सुनील गुप्ता और उनकी सहयोगी लेखक सुनेत्रा चौधरी की ब्लैक-वारंट में इसका भी साफ-साफ खुलासा हुआ है।

गुप्ता ने मंगलवार को आईएएनएस से बातचीत में कहा, दरअसल ब्लैक वारंट मेरी आंखों देखी और कानों सुनी हकीकत है, न कि मिर्च-मसाला लगाकर लिखी गई कोई किताब। ब्लैक वारंट में मैंने वही समाहित करने की कोशिश की, 35 साल की जेल की नौकरी में मैं जिस सबके बेहद करीब रहा।

ब्लैक-वारंट में एक जगह लिखा है, 1980 के दशक में तिहाड़ जेल में कैदियों/मुजरिमों की सेहत का हाल रुला देने वाला था। हजारों कैदियों पर गिने-चुने दस-बारह डॉक्टर तैनात थे। किरण बेदी ने जैसे ही आईजी जेल का पद संभाला, उन्होंने उसी वक्त जेल के इतिहास में पहली बार कैदियों की चिकित्सा देखभाल के लिए बाहर से निजी डॉक्टरों को जेल में बुला लिया। ताकि जेल का पैसा भले ही खर्च हो मगर कैदियों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं तो कम से कम मुहैया हो सकें। इस यादगार कदम के लिए किरण बेदी को जेल का स्टाफ और वहां मौजूद चंद पुराने मुजरिम आज भी याद करते हैं।

गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी के मुताबिक, किरण बेदी के बाद जेल के महानिरीक्षक बने अग्मूटी कैडर के आईपीएस राधेश्याम गुप्ता। उनके बाद जेल के पहले एडिश्नल डायरेक्टर जनरल बनकर पहुंचे अजय अग्रवाल। बाद में अजय अग्रवाल को ही तिहाड़ जेल का पहला महानिदेशक बनने का गौरव भी मिला।

रोली पब्लिकेशन द्वारा हाल ही में प्रकाशित ब्लैक-वारंट में आईएएनएस ने जो देखा-पढ़ा उसके मुताबिक, 1970-71 के आसपास का तिहाड़ जेल में एक ऐसा भी सजायाफ्ता मुजरिम मिला, जिसे फांसी की सजा हुई थी। वह उस जमाने की दिल्ली में सबसे बड़ी बैंक डकैती का आरोपी था। उस मुजरिम ने दिन दहाड़े गार्ड की हत्या करके सेंट्रल बैंक से लाखों रुपये लूटे थे। जब मैंने जेल सर्विस ज्वाइन की, तब चार्ल्स शोभराज और उसी बैंक डकैत का नाम जेल में गूंजा करता था। हैरत होती है यह जानकर कि जेल में बंद रहते हुए ही उस बैंक डकैत ने वकालत पढ़ी। फिर खुद अपनी फांसी की सजा के खिलाफ अदालत में बहस की। खुद को फांसी के तख्ते से वह बचाने में कामयाब भी हो गया। बाद में पता चला कि दिल्ली के महारानी बाग इलाके में रहने वाले उस सजायफ्ता मुजरिम ने दिल्ली की अदालत में नामी-गिरामी वकालत भी की। उस मुजरिम के सामने भी मैंने इसी तिहाड़ जेल में तमाम अफसर-कर्मचारियों को थर-थर कांपते हुए देखा है।

Created On :   26 Nov 2019 11:30 AM GMT

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