आज है बाबू महाराज की दूज, राजस्थान में लगा विशाल मेला

Babu Maharaj Dooj: Know when is Babu Maharajs Dooj
आज है बाबू महाराज की दूज, राजस्थान में लगा विशाल मेला
आज है बाबू महाराज की दूज, राजस्थान में लगा विशाल मेला

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को बाबू महाराज की दूज के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 11 सितम्बर 2018 को है। डांग क्षेत्र की कुदिन्ना ग्राम पंचायत में यहां एक ऊंचे पहाड़ पर बाबू देव का प्रसिद्ध स्थान है। इसके पास ही चंबल नदी है,जो राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्य की सीमा रेखा भी है। यहां लहराती चंबल नदी, वन संपदा एवं वर्षा ऋतु में बादलों का बनता बिगड़ता स्वरूप बहुत ही सुहाना होता है। बाबू देव के स्थान पर प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वितीय को मेला लगता है। मेले में राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्य के असंख्य लोग अपने अराध्य देव की पूजा अर्चना करने पहुंचते है। 

एक तरफ तो डाकुओं की रोमांचक किन्तु डरावनी कहानियां तो दूसरी ओर जंगली जानवरों का डर। इसलिए यहां आने से पहले सभी लोगों के मन में काफी हिचकिचाहट सी रहती है कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए इसका डर बना रहता है। वैसे तो बाबू महाराज गुर्जर जाति समुदाय के आराध्य देव कहे जाते हैं। बाबू महाराज की उपासना एक प्रकार से सूर्य उपासना है,जिसमें कोई प्रतिमा नहीं होती है।

वहीं ग्राम पंचायत कुदिन्ना स्थित बाबू महाराज के मंदिर के मेले में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। एक दिन पहले से ही यहां श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो जाता है। बाबू देव के स्थान पर बूरा तथा पकवानों का प्रसाद लगाया जाता है। बड़ी संख्या में लोग हरिद्वार एवं सौरोजी से कावड़ लाकर उनके स्थान पर उनका अभिषेक करते हैं और पीतल के घंटे चढ़ाते हैं। बाबू महाराज की दूज के दिन यहां घर-घर में पकवान बनाए जाते हैं। मेले में श्रद्धालु कई जगह पानी की प्याऊ व भंडारे का आयोजन करते हैं। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि बाबू महाराज की "योति मध्यरात्रि के समय चंबल नदी से निकलकर बाबू महाराज के स्थान पर पहुंचती है "योति को देखने के लिए रात भर हजारों की संख्या में श्रद्धालु जागरण करते रहते हैं।

चितौरा स्थित लोक देवता बाबू महाराज के स्थान पर बाबू की दूजके अवसर पर मेला भरता है। जिसमें श्रद्धालु बाबू महाराज के मंदिर में धोग लगाते एवं बूरे का भोग चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। इस अवसर पर कांवडिय़ों द्वारा गंगा जी का पवित्र गंगाजल चढ़ाकर आराध्य देव बाबू महाराज का अभिषेक किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में सुबह के समय केवल कांवडिय़ों को प्रवेश दिया जाता है। अन्य श्रद्धालु जन पुजारी एवं मेला कमेटी के सदस्यों के हाथों से प्रसाद चढ़ावाते हैं। यहां पर महिलाएं एवं युवतियां विशेष रूप से मंदिर पहुंचकर बाबू महाराज के मंदिर की 51 परिक्रमा कर घर परिवार की सुख समृद्धि की मन्नत मांगती हैं।

बाबू देव महाराज की कहानियां

1. एक बार दिल्ली के एक मुस्लिम शासक ने किसी गुर्जर की गर्भवती गाय को दीवार मे चुनवा दिया था और गुर्जर को दरबार मे हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया था। जब गुर्जर को इस बात का पता चला तो उसने सोचा गाय तो हाथ से गई ही और अब पता नहीं मुस्लिम सुल्तान मुझे क्या सजा देगा। तब वह अपने प्रथम अराध्य श्री बाबू जी महाराज का स्मरण कर सुल्तान के दरबार में हाजिर हुआ।

बहुत क्षमा मांगने पर सुल्तान ने गुर्जर को चुनौती दी कि "यदि तुम्हारे भगवान में इतनी शक्ति है तो बचा ले अपनी गाय को" तभी अचानक बहुत तेज प्रकाश हुआ और गाय को चुनवाई गई दीवार जोर से फट गई। वहां उपस्थित जनता ये देखकर आश्चर्य चकित रह गई कि उस दीवार से बच्चे को दूध पिलाती वह गाय जीवित मिल गई। तब सुल्तान श्री बाबू महाराज के सामने नत मस्तक होकर मांफी मंगने लगा और श्री बाबू महाराज को पूजने भी लगा।

2. एक बार गांव में वर्षा नहीं हुई। जिस कारण से गांव में बहुत भयंकर अकाल पड़ गया। पशु-पक्षी और आदमी मरने लगे एवं गांव के लोगों को खाने पीने का संकट खड़ा होने लगा। तब गांव के लोग चम्बल नदी के किनारे स्थित श्री बाबू महाराज के मन्दिर में गए श्री बाबू महाराज से वर्षा करने के लिए मन्नत मांगने लगे। तब वहां के प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एकाएक चम्बल नदी से पानी का तेज चक्रवात उठा व झिरी व पड़ोसी गांव में तेज मूसलाधार वर्षा होने लगी। ऐसा कहा जाता है कि उस समय वर्षा के पानी के साथ पानी के जीव-जंतु एवं मछली आदि भी वर्षा के पानी के साथ बरसने लगे। बताया जाता है कि उस समय जो पानी बरसा था वो सम्पूर्ण पानी चम्बल नदी से ही चक्रवात के रूप में होकर उठा था। 

Created On :   8 Sep 2018 12:47 PM GMT

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