दिल्ली में 6 माह की थी वेटिंग, समय कम था, तबीयत बिगड़ी तो नागपुर में कराया लिवर ट्रांसप्लांट

Back to back Liver Transplant in Nagpur, all are succeeded
दिल्ली में 6 माह की थी वेटिंग, समय कम था, तबीयत बिगड़ी तो नागपुर में कराया लिवर ट्रांसप्लांट
दिल्ली में 6 माह की थी वेटिंग, समय कम था, तबीयत बिगड़ी तो नागपुर में कराया लिवर ट्रांसप्लांट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। "लिवर की परेशानी के कारण मैं 4 साल से परेशान था, हैदराबाद में उपचार चल रहा था और ट्रांसप्लांट के लिए दिल्ली में रजिस्ट्रेशन करवाया था, लेकिन वहां 6 माह की वेटिंग थी। 4 साल में बीमारी का दंश झेलकर टूट चुका था, क्योंकि लगातार मेरी तबीयत बिगड़ रही थी और समय नहीं बचा था, तभी नागपुर में लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति मिली, तो मेरी बेटी ने रजिस्ट्रेशन करा लिया। ब्रेनडेड मरीज के परिजनों द्वारा अंगदान करने का निर्णय लेने से आज मुझे एक बार फिर जीवनदान मिल गया।" यह बात कोलकाता से लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आए मरीज ओमप्रकाश सिंह (65) ने कही। वह शनिवार को टेलीफोन एक्सचेंज चौक स्थित न्यू ईरा हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट के बाद डिस्चार्ज के समय पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। इस अवसर पर अस्पताल के संचालक डॉ. आनंद संचेती, डॉ. नीलेश अग्रवाल और लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. राहुल सक्सेना व लिवर ट्रांसप्लांट करवाने वाले मरीज प्रमुखता से उपस्थित थे।

ट्रांसप्लांट के बाद अब स्वस्थ

नागपुर में पहला लिवर ट्रांसप्लांट 22 अप्रैल को हुआ था। फिर एक के बाद एक 25 और 27 अप्रैल को लिवर ट्रांसप्लांट हुए। पहला लिवर ट्रांसप्लांट करवाने वाली दिल्ली निवासी महिला मरीज प्रीति खन्ना (40) ने बताया कि 2017 में लिवर खराब होने के बाद से मैं बहुत परेशान थी, नमक नहीं खा सकती थी और दिन में आधा लीटर पानी ही पी सकती थी। यह पीड़ादायक बीमारी मेरे लिए काफी कष्टदायक थी, लेकिन अब सब सही हो गया है। नागपुर के मरीज चंद्रशेखर मौंदेकर ने बताया कि शराब के सेवन के कारण उनका लिवर खराब हो गया था, लेकिन ट्रांसप्लांट के बाद अब वह स्वस्थ हैं।

इतिहास रचने वाला था पहला लिवर ट्रांसप्लांट

लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. राहुल सक्सेना ने बताया कि नागपुर में हुआ पहला लिवर ट्रांसप्लांट सच में इतिहास रचने वाला था, क्योंकि वह पहला ट्रांसप्लांट होने के साथ ही एक 6 साल के बच्चे से लिवर डोनेट किया गया था, जिसे हमने 40 साल के मरीज में ट्रांसप्लांट किया था। बच्चों की नसें छोटी होती हैं और वयस्क की नसें बढ़ी होती हैं, ऐसे में उनमें सामंजस्य बैठाना हमारे लिए चुनौती थी, जो ट्रेंड स्पेशलिस्ट और अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं की वजह से संभव हो पाया। एक ओर विशेष बात यह थी कि बच्चे से मिला लिवर का वजह 600 ग्राम था, इसलिए हम उसका ट्रांसप्लांट कर सके, यदि वह 500 से कम होता, तो शायद हम ट्रांसप्लांट नहीं कर पाते। लिवर ट्रांसप्लांट सफल होने की जानकारी ऑपरेशन टेबल पर ही समझ आ जाती है और 8 से 10 माह में वह पूरी तरह से विकसित हो जाता है।

Created On :   13 May 2018 5:23 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story