अब 48 डिग्री तापमान में भी पौधों को जिंदा रख रहा ‘पलवार’, पानी की भी बचत

it becomes very difficult to provide adequate quantity of water to the plants
अब 48 डिग्री तापमान में भी पौधों को जिंदा रख रहा ‘पलवार’, पानी की भी बचत
अब 48 डिग्री तापमान में भी पौधों को जिंदा रख रहा ‘पलवार’, पानी की भी बचत

डिजिटल डेस्क, नागपुर । विदर्भ क्षेत्र में जहां गर्मी में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और भूजल स्तर काफी नीचे चला जाता है, तब पौधों को पानी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में ‘पलवार’ बेहतरीन विकल्प है। इससे मृदा की नमी को संरक्षित किया जा सकता है। जमीन की नमी को संरक्षित करने के लिए काली प्लास्टिक का उपयोग वैज्ञानिक दृष्टकोण से काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। नींबूवर्गीय फलोद्यानों में 300 माइक्राॅन की मोटी काली प्लास्टिक  के प्रयोग से अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। 

बचत : 60-65 फीसदी तक बचेगा पानी 
वैज्ञानिकों का दावा है कि इस पद्धति से 60 से 65 फीसदी तक पानी की बचत होती है। फसल की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती है। 

बचाव : संक्रमण का भी खतरा कम  
पौधे को कपड़े के अंदर से हवा मिलती है और माइट नामक संक्रमण का खतरा भी काफी कम रहता है। इस तकनीक से पौधे पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं और उत्पादन भी बेहतर मिलता है।

तकनीक का उपयोग कर रहे किसान
भरपूर फलोत्पादन के लिए मृदा की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने तथा नमी बनाए रखने के लिए ‘पलवार’ तकनीक का उपयोग नागपुर के किसान कर रहे हैं। ‘पलवार’ एक ऐसी प्रक्रिया है तथा इसके द्वारा पाैधों  के जड़ क्षेत्र में पर्याप्त नमी बनाए रखने के साथ-साथ मिट्टी के कटाव को काफी हद तक रोका जा सकता है। इस तकनीक के बारे में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजकुमार सोनकर ने बताया कि इस तकनीक के साथ किसान ज्यादा से ज्यादा फसल प्राप्त कर सकते हैं।  ‘पलवार’ न होने से पौधों के चारों ओर खरपतवार पैदा हो जाती है तथा मिट्टी का कटाव भी होने लगता है इससे बचने के लिए ‘पलवार’ तकनीक उपयुक्त है। 

इसलिए पानी का संरक्षण जरूरी
पानी के मूल्य को समझते हुए इसे जहां तक संभव हो सके, जमीन में संरक्षित रखना आवश्यक है। इससे न केवल किसानों को कम पानी देना पड़ेगा, बल्कि घास के खर्चों में कमी के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने एवं मृदा अपरदन रोकने में तथा अनावश्यक बैक्टीरिया आदि के प्रवेश को रोक कर फलों की पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। 

अमेरिका में अपनाई जा रही है यह तकनीक
नींबूवर्गीय फलों में व्यासायिक स्तर पर काफी पहले से ये तकनीक अपनाई जा रही है तथा इसके फलोत्पादन पर काफी अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ है। मिट्टी को स्वस्थ एवं उर्वरा शक्ति काे बरकरार रखने में ‘पलवार’ काफी प्रभावशाली है।

ये है पलवार
फलोद्यानों में मृदा प्रबंधन के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक है ‘पलवार’। इसमें पौधों के आस-पास की भूमि को ‘पलवार’ द्वारा ढंका जाता है। इसमें खास यह है कि खेत में ही उपलब्ध घास, पुआल,  पत्तियां एवं व्यर्थ सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है, परंतु वैज्ञानिक रूप से प्लास्टिक पलवार का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। यह तकनीक कई विकसित देशों में व्यावसयिक रूप से किया जा रहा है। -डॉ. राजकुुमार सोनकर, प्रधान वैज्ञानिक, राष्ट्रीय नींबूवर्गीय फल अनुसंधान केंद्र, नागपुर
 

Created On :   15 Nov 2018 8:20 AM GMT

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