भगत सिंह को अब तक नहीं मिल सका शहीद का दर्जा

bhagat singh could not get the martyr status
भगत सिंह को अब तक नहीं मिल सका शहीद का दर्जा
भगत सिंह को अब तक नहीं मिल सका शहीद का दर्जा

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। देश को आजाद कराने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद भी शहीद का दर्जा नहीं मिल सका है। देश के प्रमुख पार्टियों ने उन्हें शहीद का दर्जा दिलाने का भरोसा दिलाया लेकिन अब तक इस पर कोई अम्ल नहीं हो सका है। 

पिछले साल इस सिलसिले में दायर एक जनहित याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस तर्क के साथ खारिज कर दिया कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जिसके तहत न्यायालय इस बारे में काई आदेश जारी कर सके।

याचिका में कहा गया कि तीनों को 1931 में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। शहीदों का कानूनी अधिकार है कि उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाए और देश की तरफ से यही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी मगर अदालत ने इस बारे में कोई कानून का हवाला न देते हुये याचिका को खारिज कर दिया।

शहीद भगत सिंह का पुश्तैनी घर पाकिस्तान में मौजूद है। उनका जन्म फैसलाबाद के बंगा गांव में चाक नंबर 105 जीबी में हुआ था। बंटवारे के बाद भगत सिंह के मकान पर एक वकील ने कब्जा कर लिया था, जिनके वंशजों ने कई दशकों से भगत सिंह के परिवार से ताल्लुक रखने वाले सामान बचाकर रखे। उनके गांव में हर साल 23 मार्च को उनके शहादत दिवस सरदार भगत सिंह मेला भी ऑर्गेनाइज किया जाता है।

हरभजन सिंह ने एक एलबम बनाया है, जिसे उन्होंने भगत सिंह को समर्पित किया है। लंबे समय से भारतीय टीम में आने के लिए संघर्ष कर रहे इस स्पिन गेंदबाज की एलबम को भारतीय क्रिकेटरों की ओर से सराहना भी मिल रही है।

1919
1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे और इसी वर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग़ काण्ड हुआ । इस काण्ड का समाचार सुनकर भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे। देश पर मर-मिटने वाले शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि दी तथा रक्त से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, जिससे सदैव यह याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है।

फांसी की सज़ा
23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देशभक्ति को अपराध कहकर फांसीपर लटका दिए गए। यह भी माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन जन रोष से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया। 24 मार्च को जब यह खबर देशवासियों को मिला तो लोग वहां पहुंचे, जहां इन शहीदों की पवित्र राख और कुछ अस्थियां पड़ी थीं।

Created On :   22 March 2018 2:03 PM GMT

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