2019 के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को सुधारना होगा 'साल 2018'

Big questions confront pm narendra modi government in 2018
2019 के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को सुधारना होगा 'साल 2018'
2019 के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को सुधारना होगा 'साल 2018'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए साल 2017 किसी चुनौती से कम नहीं रहा है। सत्ता में आने के बाद से मोदी को महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को लागू करने का श्रेय दिया जा सकता है। लेकिन 2017 में सुस्त अर्थव्यवस्था और 2019 में चुनाव के मद्देनज़र लोगों को उम्मीद है कि वो आगामी वर्ष में सतर्क रहेंगे और कुछ प्रमुख सुधारों को अमलीजामा पहनाएंगे।

साल 2017 में मोदी सरकार के सामने यूं तो कई समस्याएं आईं, लेकिन इनमें कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं, जो साल 2018 तक उनका पीछा नहीं छोड़ने वाली हैं। मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या यह रहेगी की वो इन सभी बड़ी समस्याओं को आने वाले साल 2018 में ही क्लोज कर दें। वरना 2019 लोकसभा चुनाव में उनके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। ये रही 5 प्रमुख बड़ी समस्याएं...

1. गांव, खेती और किसान
साल 2017 गांव, खेती और किसान के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़े बड़े हैं। इनमें सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र राज्य प्रभावित हुआ है। यहां किसानों ने आर्थिक तंगी और कर्ज के चलते सबसे ज्यादा मौत को गले लगाया है। इन सभी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। यह सभी किसान पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार से काफी नाराज नजर आ रहे हैं।

मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी किया था। इन सबका केंद्र रहा मध्यप्रदेश का मंदसौर जिला। यहां किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करते हुए गोलियां तक चलाई थी। कई किसानों की इस आंदोलन के दौरान दर्दनाक मौत भी हुई। बता दें कि 2018 में 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। अंदेशा है कि इन चुनावों में इसकी आहट जरूर दिखाई देगी।

भारत देश में आधी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। पिछले कुछ सालों से अस्थिर विकास के कारण कृषि क्षेत्र खेती से आमदनी को लेकर संघर्ष कर रहा है। यही कारण है कि किसान कर्ज लेकर इस मंदी से उभरने की कोशिश में अपना सब कुछ गंवा बैठे हैं। कुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने किसानों के लिए कर्ज माफ़ी की घोषणा की, लेकिन इसे लागू करने में समस्याएं हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी के लिए इन सभी किसान भाईयों को इस मुसीबत से उभारना ही 2018 की सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी अगर इन 8 राज्यों में अपनी सत्ता जमाना चाहती है, तो उसे किसानों की आवाज सुननी ही होगी। वरना हाल कुछ भी हो सकता है। सबनवीस ने कहा, "मोदी सरकार वास्तव में इस पर कुछ नहीं कर सकती क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और इसकी समस्या राज्य सरकार ही सुलझा सकती है। हालांकि आम जनों में इसे लेकर धारणा है कि यह केंद्र के अधीन है।"


2. करनी होगी नोटबंदी की भरपाई
8 नवंबर 2016 का दिन भारत समेत पूरे विश्व के लिए एक एतिहासिक दिन रहा है। इन दिन नरेंद्र मोदी सरकार ने कालाधन पकड़ने के लिए अचानक से नोटबंदी करते हुए 1000 और 500 रुपए के नोट बंद कर एक बड़ा झटका दिया था। इसी का परिणाम था कि कई हजारों लोगों को अपनी नौकरी और व्यवसाय से हाथ धोना पड़ा था। लोग बेरोजगार हो गए थे और मार्केट सुस्त हो गया था। विपक्षी दल ने नोटबंदी के कारण करीब 2 दर्जन से अधिक लोगों की मौत के आंकड़े भी पेश किए थे।

अब इन सबके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार अपनी रफ्तार पकड़ने लगी है। नरेंद्र मोदी के सामने 2018 में सबसे बड़ी समस्या यही होगी कि वो इस नोटबंदी से हुए नुकसान की भरपाई करते हुए देश को पटरी पर वापस लाएं। इन सब में मोदी के सामने 3 प्रमुख समस्याएं रहेंगी और वो हैं- अर्थव्यस्था, बेरोजगारी और विकास।


3. व्यापारियों के लिए GST का दंश
नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद जो भारत को दूसरा झटका दिया वो GST ही था। इस फैसले का खामियाजा आज भी मोदी सरकार को भुगतना पड़ रहा है। भारत में हर तरफ व्यापारी वर्ग मोदी के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहा है। मगर इन सबके उलटल भारतीय रेटिंग एजेंसी केयर के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबनविस कहते हैं, "GST लागू किए जाने के कारण 2017 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परिवर्तन का साल रहा। अगले कुछ सालों के निरंतर विकास के लिए यह जरूरी था।

GST व्यवस्था को सरल बनाने के लिए सरकार ने पिछले कुछ महीनों में कई बदलावों की घोषणा की। आलोचनाओं के बाद 178 वस्तुओं की GST दरों में संशोधन भी किए गए। मोदी सरकार के सामने GST से नाराज व्यापारियों को मनाना और उन्हें GST से फायदे की पटरी पर लाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।


4. रोजगार : एक चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक नीतियों में रोजगार सृजन नहीं कर पाना एक बड़ी समस्या बना हुआ है। नोटबंदी और GST के बाद हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए थे। इनके जख्मों पर मरहम लगाने की तैयारी करते हुए पीएम मोदी का नीति आयोग जल्द ही अपनी "पहली राष्ट्रीय रोजगार नीति" प्रस्तुत करने जा रहा है। जिसके तहत विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा।

मगर अधिकाशं विशेषज्ञों को उम्मीद है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार रोजगार को लेकर 2018 में क़दम उठाएगी। उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2019 के आम चुनाव से पहले सरकार देश की यह पहली राष्ट्रीय रोजगार नीति आम बजट में प्रस्तुत कर सकती है।

2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने एक करोड़ रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन अभी तक देश में बढ़ रही बेरोजगारी से निपटने के लिए नीति आयोग के बाद रोजगार नीति का मसौदा तैयार किया जा रहा है। संभवत: मोदी सरकार अपनी रोजगार नीति को आगामी बजट में पेश करे।

बता दें कि श्रम मंत्रालय के त्रैमासिक सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले 6 सालों में सबसे कम रोजगार सृजन मात्र 135,000 साल 2015 में किया गया, जबकि साल 2014 में 421,000 तथा साल 2013 में 419,000 नए रोजगार सृजन किए गए थे। इस सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2016 में पिछले 5 सालों में बेरोजगारी दर 5 फीसदी बढ़ी है। जबकि वित्तीय वर्ष 2014 में यह बेरोजगारी दर 4.9 फीसदी तथा साल 2013 में 4.7 फीसदी रही।


5. अर्थव्यवस्था
2018 में आर्थिक विकास में तेज़ी लाना केंद्र सरकार के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण होगा। पिछले एक साल पहले तक विशेषज्ञों ने माना था कि अर्थव्यवस्था के मामले में भारत जल्द ही विश्वगुरु बन जाएगा। 2016 में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी, यहां तक की चीन से भी बढ़कर, जो मंदी का सामना कर रहा था। भारत को धुंधली वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक चमकते देश के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन 2017 में वाकया बदल गया जब भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ गयी।

बता दें कि 2016 में जनवरी से दिसंबर के दौरान प्रत्येक तिमाही के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 फ़ीसदी से अधिक की दर से वृद्धि हुई थी। एक तिमाही में तो इसने 7.9 फ़ीसदी को भी छुआ, लेकिन 2017 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में ही यह, तीन सालों में न्यूनतम स्तर, 5.7 फ़ीसदी पर जा लुढका।

पीएम मोदी एंड टीम के सामने अब नए साल 2018 में यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः अपनी पटरी पर वापस आए। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक अनुमानित रिपोर्ट पेश की है, जो मोदी सरकार और अर्थव्यवस्था के पक्ष में नजर आती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.4 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ेगी। हालांकि, पहले इसने 7.7 फ़ीसदी का अनुमान लगाया था। जबकि कई विश्लेषकों का मानना है कि सुस्त पड़ी रफ़्तार से उबरना थोड़ा धीमा होगा। वहीं अधिकतर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तेज़ी 2017 से बेहतर ही होगी।

Created On :   31 Dec 2017 3:49 PM GMT

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