बिहु की धूम, ये है इस त्याेहार की सबसे जरूरी परंपरा

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बिहु की धूम, ये है इस त्याेहार की सबसे जरूरी परंपरा
बिहु की धूम, ये है इस त्याेहार की सबसे जरूरी परंपरा

 

डिजिटल डेसक, नई दिल्ली। असम में  सालभर अर्थात एक साल में तीन बिहु मनाए जाते हैं। बोहाग (बैसाख, अप्रैल के मध्य), माघ (जनवरी के मध्य में) और काटी (कार्तिक, अक्टूबर के मध्य) के महीनों में। यह त्योहार असर में प्राचीन काल से मनाया जा रहा है। इन तीनों ही बिहु में सर्वाधिक धूम माघ बिहु की होती है। माघ बिहु एक ऐसा त्योहार है जो पोंगल, लोहड़ी के समान ही नयी फसल की आवक पर मनाया जाता है। यह देवताओं को समर्पित होता है। जिन्हें ब्राई शिबर के नाम से जाना जाता है। इस त्योहार को नाच गाकर मनाया जाता है। 


बनाया जाता है मंच
माघ बिहु पर मंच बनाया जाता है जिस पर बिहु नृत्य किया जाता है। खुले मैदान में युवा लड़के व लड़कियों द्वारा किया जाता है तथापि वे आपस में नहीं मिलते हैं। इस उत्सव में पूरा गांव एक ही रंग में नजर आता है और इसे एक साथ मिलकर मनाया जाता है। कई बार ये नृत्य ढोल की गति के साथ ही बढ़ता गति पकड़ता जाता है। 

 

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ढोल की थाप

ढोल की निराली व सम्‍मोहक थाप और पेपा (भैंसे के सींग से बनी तुरही) इसका प्रमुख अंग हैं। बिहू नृत्‍य करते समय पारंपरिक वेशभूषा जैसे धोती गमछा और चादर व मेखला पहनना आवश्यक होता है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल से ही इसी वेशभूषा में ये नृत्य किया जाता रहा है, जो आज भी जारी है।

 

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इनकी विशेष परंपरा

इनके यहां भी मेजी में परपंरागत व्यंजन और गोमसा अर्थात बिहु की खुशी में एक गमछा एक-दूसरे को प्रदान किया जाता है। ये दोनों ही इस पर्व की मुख्य परंपराएं हैं, जिन्हें परंपरागत तरीके से ही पूरा किया जाता है। रिश्तेदारों का एक-दूसरे के घर आगमन होता है। इस दौरान खान.पान धूमधाम से होता है क्योंकि तिलए चावलए नारियलए गन्ना इत्यादि फसल इन दिनों भरपूर होती है। कलाई की दाल का इस पर्व में बेहद महत्व है, जिसे खाना इन लोगों के लिए जरूरी होता है। 

Created On :   13 Jan 2018 5:02 AM GMT

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