अल्पसंख्यकों पर हमले रोकने में नाकाम मोदी सरकार : ह्यूमन राइट्स वॉच
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों पर 2017 में हुए हमलों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रही है। ये कहना है ह्यूमन राइट्स वॉच की लेटेस्ट रिपोर्ट का। साल 2018 की वर्ल्ड रिपोर्ट जारी करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने ये बातें कही। इस रिपोर्ट में बीजेपी पर ये भी आरोप लगाया गया है कि "बीजेपी सरकार ने हिंदू श्रेष्ठता और कट्टर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया है।" बता दें कि ह्यूमन राइट्स वॉच ने 643 पेज की रिपोर्ट 90 से ज्यादा देशों में ह्यूमन राइट्स की स्थिति का जायजा लेकर तैयार की है।
अल्पसंख्यकों पर हमले रोकने में नाकाम मोदी सरकार
साल 2018 की वर्ल्ड रिपोर्ट जारी करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि "धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2017 में हुए हमलों की जांच कराने और रोकने में भारत की सरकार पूरी तरह से फेल रही है।" इस रिपोर्ट में कहा गया है कि "अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बीफ खाने के लिए गाय को खरीदते और बेचते हैं या उन्हें मारते हैं। ऐसी अफवाहों की जवाब में बीजेपी से जुड़े हुए कुछ कट्टरपंथी हिंदू संगठनों ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कई हमले किए, लेकिन इन हमलों को मोदी सरकार नहीं रोक सकी।"
2017 में 38 हमले जिनमें 10 लोग मरे
इस रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि "हमलावरों पर तुरंत कोई कानूनी कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने गोहत्या पर पाबंदी लगाने वाले कानून के तहत पीड़ितों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की। साल 2017 में ऐसे कम से कम 38 हमले हुए, जिनमें 10 लोग मारे गए।" ह्यूमन राइट्स वॉच की साउथ एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि "भारतीय अधिकारियों ने खुद इस बात को साबित कर दिया कि वो धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों से उन्हें बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते।"
इंटरनेट बंद करने का ऑप्शन चुना
ह्यूमन राइट्स वॉच की इस रिपोर्ट में कानून व्यवस्था लागू करने के नाम पर भारत में इंटरनेट सर्विस बंद करने के मुद्दे को भी उठाया। रिपोर्ट में कहा है कि "राज्य सरकारों ने हिंसा या सामाजिक तनाव रोकने के नाम पर पूरी तरह से इंटरनेट सर्विस को बंद करने का सहारा लिया, ताकि कानून व्यवस्था को लागू रखा जा सके। नवंबर 2017 तक भारत में 60 बार इंटरनेट सर्विस को बंद किया गया। इसमें सबसे ज्यादा 27 बार जम्मू-कश्मीर में किया गया।" ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में ये भी कहा है कि "अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी को संविधान के तहत फंडामेंटल राइट्स का दर्जा दिया था, लेकिन उसके बावजूद सरकार की आलोचना करने वाले कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ मानहानि और राजद्रोह के केस दर्ज किए गए।"
Created On :   19 Jan 2018 2:46 AM GMT