यहां बेटियों की खुशहाली के लिए मनाया जाता है 'बोड्डेमा त्योहार'

bodemma festival is celebrated here, In the happiness of born daughter
यहां बेटियों की खुशहाली के लिए मनाया जाता है 'बोड्डेमा त्योहार'
यहां बेटियों की खुशहाली के लिए मनाया जाता है 'बोड्डेमा त्योहार'

डिजिटल डेस्क, मुकुटबन/यवतमाल। पुरुष प्रधान समाज में नारी शक्ति के सम्मान की बातें तो सभी कहते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में इसे उतारने से लोग गुरेज करते हैं। पुत्रों और पति की खुशहाली और दीर्घायु के लिए कई व्रत रखे जाते हैं, पूजा-अर्चना की जाती है, बेटियों या महिलाओं के लिए ऐसा कभी कुछ नहीं किया जाता, लेकिन तेलंगाना राज्य से सटी झरी जामणी तहसील में बिटिया की खुशहाली के लिए भी एक त्योहार मनाया जाता है जिसे बोड्डेमा कहा जाता है।

पुराने जमाने में यदि किसी घर में बिटिया का जन्म होता था तब घर के बड़े बुजुर्ग यह कहकर बिटिया का स्वागत करते कि लक्ष्मीजी का आगमन हुआ है। इसके बाद ऐसा भी दौर आया जब कन्याओं की गर्भ में ही हत्या होने लगी, लेकिन आंध्र प्रदेश एवं तेलंगना में कन्या जन्म का हमेशा से ही स्वागत होता आया है और आज भी इन क्षेत्रों में कन्या जन्म के बाद मिठाईयां बांटी जाती हैं। पूरे गांव में आनंदोत्सव मनाया जाता है। तेलंगना से महाराष्ट्र का भी कुछ हिस्सा सटा हुआ है जिस कारण अपने आप यह परंपरा महाराष्ट्र के तेलंगना से सटे क्षेत्रों में भी आ गई। पिछले तीन दिन से झरी तहसील में धूमधाम से बोड्डेमा के विसर्जन का दौर चल रहा है। तेलंगना से सटी झरी जामणी तहसील में 30  से 40 फीसदी तेलुगू भाषीय रहते हैं।  तेलंगना और आंध्रप्रदेश में बिटिया की खुशहाली के लिए बोड्डेमा का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के समापन के बाद तेलंगना और आंध्रप्रदेश में इस त्योहार के लिए जमीन में तीन फीट गहरा और 4 से 6 फिट दायरे का गोल गड्ढा बनाया जाता है।  गड्ढे के समीप छोटे- छोटे 10 से 12 चबूतरे बनाकर प्रतिदिन सुबह और शाम फूलों से सजाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

बेटी के लिए बोड्डेमा की मन्नत
जिस परिवार में बेटियां नहीं होती, उस परिवार की मां अपनी बेटी के लिए बोड्डेमा की मन्नत रखती है। इस त्योहार के लिए ब्याही हुई बेटियां भी अपने मायके आती हैं। दशहरा, दीपावली में चाहे बेटियां मायके आए या न आए लेकिन इस त्योहार पर मायके जरूर आती हैं। यह त्योहार नवरात्र की तरह ही 10 दिन मनाया जाता है। हर दिन रात्रि के समय बोड्डेमा के समक्ष डांडिया, नृत्य आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 10 दिन बाद बोड्डेमा की प्रतिमाएं बनाकर ढोल-ताशे और बाजे-गाजे के साथ तालाब, नदी या कुंओं में इसे विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का दौर पांच दिन तक चलता है।

उल्लेखनीय है कि यह त्यौहार सिर्फ महिलाएं ही मनाती हैं। विसर्जन भी केवल महिलाएं ही करती हैं। इस दिन मां अपनी बेटी की अच्छी शिक्षा, अच्छा घर एवं वर के साथ ही उसकी खुशहाल गृहस्थी की कामना करती हैं। जिस परिवार में बेटियां होती हैं उस परिवार की मां बोड्डेमा का त्योहार बेटियों की खुशहाली के लिए मनाती है। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में इस त्योहार के लिए प्राथमिक व माध्यमिक शालाओं को 15 दिन की छुट्टियां भी दी जाती हैं जबकि सरकारी कार्यालयों में भी एक दिन का अवकाश होता है।

Created On :   13 Oct 2017 5:40 AM GMT

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