जन्मदिन विशेष: स्कूल टीचर मायावती कैसे बनीं देश की बहनजी?

BSP Chief Mayawati 62nd Birthday know about her Political journey
जन्मदिन विशेष: स्कूल टीचर मायावती कैसे बनीं देश की बहनजी?
जन्मदिन विशेष: स्कूल टीचर मायावती कैसे बनीं देश की बहनजी?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश, भारत का सबसे बड़ा राज्य और यहां का सबसे बड़ा चेहरा- मायावती। 4 बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती बनना तो आईएएस चाहतीं थीं, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक नेता बना दिया। आज सब लोग मायावती को "बहनजी" के नाम से जानते हैं, लेकिन उनका असली नाम चंदावती देवी है। मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रभु दयाल पोस्ट ऑफिस से रिटायर्ड थे और उनकी मां रामरती एक अनपढ़ महिला थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया। मायावती भी काफी पढ़ी-लिखी हैं और उनका सपना था आईएएस बनने का, लेकिन शायद उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। सिर्फ 28-30 साल की उम्र से ही मायावती ने दलित राजनीति में कदम रख दिया था, लेकिन उनका राजनीतिक सफर ज्यादातर विवादों में ही रहा। मायावती के 62वें जन्मदिन पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपने शायद ही कभी सुना हो।

दो कमरों में रहता था मायावती का परिवार

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के एक दलित परिवार में हुआ था। मायावती के 6 भाई और 2 बहनें हैं। दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में दो छोटे कमरों के मकान में उनका पूरा परिवार रहता था और यहीं उनका बचपन गुजरा। मायावती की मां रामरती अनपढ़ थी, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया। मायावती का सपना कलेक्टर बनने का था। मायावती ने पहले बीए किया और फिर दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से उन्होंने एलएलबी किया। इसके साथ ही उन्होंने बीएड भी किया। 1977 में मायावती ने दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। गरीबी और बदहाली की जिंदगी के बावजूद मायावती ने हार नहीं मानी और दिल्ली स्कूल में टीचर की जॉब करते-करते उन्होंने सिविल सर्विसेस की तैयारी की।

कांशीराम के लिए घर तक छोड़ दिया

1980 का वो दौर था, कांशीराम राम को अत्याचारी और गांधी को धोखेबाज कहकर बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति पर हमला कर रहे थे। कांशीराम ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और दलितों के उत्थान के लिए आगे आए। तभी कांशीराम को मायावती के बारे में पता चला कि मायावती कलेक्टर बनकर दलित समाज की सेवा करना चाहती है। कांशीराम ने मायावती से खुद घर जाकर मुलाकात की और कहा कि "मैं तुम्हें मुख्यमंत्री बनाउंगा, तब तुम्हारे पीछे कई कलेक्टर फाइल लेकर खड़े रहेंगे।" इसके बाद मायावती और कांशीराम दोनों ने मिलकर दलितों को एक करना शुरू कर दिया। जब कांशीराम को दलितों का साथ मिलने लगा, तो उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला लिया। इस दौरान मायावती ने कांशीराम का खूब साथ दिया और घर तक छोड़ दिया। कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) बनाई और मायावती ने भी स्कूल टीचर की नौकरी छोड़ बीएसपी ज्वॉइन कर ली।

मायावती ने बिजनौर से जीता पहला चुनाव

बीएसपी के गठन के बाद कांशीराम ने पहले पहले पंजाब में कदम रखा और फिर उत्तरप्रदेश की राजनीति में आए। कांशीराम ये बात समझ चुके थे कि उत्तरप्रदेश में दलितों की संख्या ज्यादा है और फिर कांशीराम ने यूपी में बीएसपी की राजनीतिक जमीन तैयार की। पार्टी ने अपने शुरुआती 5 सालों में वोट बैंक तो बढ़ाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर आया 1989 का आम चुनाव, मायावती ने पहली बार बिजनौर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। उन चुनावों में बीएसपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं, लेकिन यूपी में पार्टी का वोट शेयर 10 फीसदी और पंजाब में 8 फीसदी के आसपास रहा। इससे साफ हो गया था कि बीएसपी का कद बढ़ रहा है। ये वो दौर था, जब कांशीराम का भरोसा मायावती पर और ज्यादा बढ़ गया था।

1993 में मिलाया मुलायम से हाथ

1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद देश में कई बड़े परिवर्तन हुए। विरोधी पार्टियों ने बीजेपी का जमकर विरोध किया। तब कांशीराम ने नई चाल चली और समाजवादी पार्टी के चीफ मुलायम सिंह यादव से हाथ मिलाया। 1993 के चुनावों में इस गठबंधन को जीत मिली और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। हालांकि ये गठबंधन ज्यादा समय नहीं चला और सिर्फ 2 सालों में ही गठबंधन टूट गया और मायावती मुख्यमंत्री बन गई।

गेस्ट हाउस कांड ने तोड़ा गठबंधन

दरअसल, सपा-बसपा को सरकार बनाए अभी 2 साल ही हुए थे और दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ गई, जिससे मायावती नाराज हो गईं। 1995 को मुलायम को पता चला कि मायावती गवर्नर मोतीलाल वोहरा से मिलकर समर्थन वापस लेने वाली हैं और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी कर रही हैं। 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के गेस्ट हाउस में पार्टी नेताओं के साथ मिलकर रणनीति तय कर रही थी, तभी सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया। मायावती घंटों तक खुद को बचाने के लिए गेस्ट हाउस में ही बंद रही।

बीजेपी के समर्थन से बनीं सीएम

गेस्ट हाउस कांड ने उत्तरप्रदेश की राजनीति का रूख हमेशा के लिए बदल दिया। अगर दलित-पिछड़ों का ये गठबंधन बना रहता, तो यूपी में इस गठबंधन को हरा पाना काफी मुश्किल होता, लेकिन गेस्ट हाउस कांड ने इस गठबंधन को तोड़ दिया। गेस्ट हाउस कांड के बाद 5 जून 1995 को मायावती ने बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं। मायावती देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री थी और उस वक्त उनकी उम्र 39 साल थी। हालांकि मायावती सिर्फ 4 महिनों तक ही सीएम रह पाई। इसके बाद मायावती 1997 और 2002 में फिर बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं।

2001 में बीएसपी की चीफ बनीं मायावती

3 जून 1995 से लेकर 18 अक्टूबर 1995 तक मायावती उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद बतौर मुख्यमंत्री मायावती का दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक रहा और तीसरा कार्यकाल 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक मायावती तीसरी बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं। मायावती का कद बढ़ता जा रहा था और कांशीराम हाशिए पर जा रहे थे। लगातार बीमार रहने के बाद कांशीराम ने साल 2001 में मायावती को बीएसपी का प्रमुख घोषित कर दिया।

206 सीटों के साथ बनाई सरकार

6 अक्टूबर 2006 को कांशीराम की मौत हो गई और 2007 में विधानसभा चुनाव हुए। ये पहला चुनाव था, जो कांशीराम के बिना लड़ा गया। मायावती तीन बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी थीं, लेकिन कभी-भी उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल नहीं किया था। 2007 में मायावती किसी भी हालत में बहुमत हासिल करना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने सभी समाज को अपने साथ लाया। मायावती समझ चुकी थी कि दलित-मुस्लिम वोटों के सहारे सरकार नहीं बनाई जा सकती और फिर उन्होंने सबको साथ लेकर चलने का सोचा। इसका नतीजा ये रहा कि पार्टी ने पहली बार 206 सीटें जीतकर सरकार बनाई। मायावती चौथी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और ये पहली बार था जब मायावती ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

2012 के बाद से ही वापसी के लिए संघर्ष

घोटालों के कारण मायावती 2012 के चुनावों में वापसी नहीं कर पाईं। इसके बाद मायावती को सबसे तगड़ा झटका 2014 के लोकसभा चुनावों में लगा, जब पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की हालत बहुत खराब हो गई। कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जाने लगे। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को सिर्फ 19 सीटें ही मिलीं और पार्टी का वोट शेयर भी कम हो गया। अब मायावती राष्ट्रीय राजनीति से गायब होने लगी हैं। हर मुद्दे पर जमकर बोलने वाली मायावती, भीमा-कोरेगांव हिंसा में चुप रहीं, जिससे उनकी राजनीति पर भी सवाल उठे। 

Created On :   15 Jan 2018 4:26 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story