मुख्यमंत्री फडणवीस पर मुकदमा चलेगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

Case will be sued or not? Supreme Court decision safe on CM fadnavis
मुख्यमंत्री फडणवीस पर मुकदमा चलेगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
मुख्यमंत्री फडणवीस पर मुकदमा चलेगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस पर 2014 के चुनावी हलफनामें दो आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाने वाली याचिका पर दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि मुख्यमंत्री ने आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाकर जनप्रतिनिधि कानून की धारा 125(ए ) का उल्लंघन किया है या नही जिसकी निचली अदालत ने संज्ञान लिया है। अगले 8-10 दिनों में मामले में अंतिम फैसला आने की उम्मीद है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने मामले में शीर्ष अदालत के 2002 और 2003 में दिए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाकर जनप्रतिनिधि कानून की धारा 125(ए) का उल्लंघन किया है, जो दंडनीय अपराध है। उनके इस मामले का निचली अदालत ने संज्ञान लिया था और मामले में उन्हे जमानत लेनी पड़ी थी। इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
वहीं मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलील रखी कि मुख्यमंत्री के खिलाफ 24 आपराधिक मामले अदालत में लंबित थे। इनमें से 22 मामलों की मुख्यमंत्री ने अपने हलफनामे जानकारी दी है। 2 मामलों की जानकारी इसलिए नही दी कि निचली अदालत ने उनके खिलाफ चार्जेस फ्रेम नही किए थे। केवल दो आपराधिक मामलों की जानकारी नही देने पर मुख्यमंत्री के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना उचित नही है। रोहतगी ने आगे अपनी दलील में कहा कि मुख्यमंत्री व राजनीतिक लोगों के खिलाफ सैंकडों मुकदमे रहते है।

इस पर शीर्ष अदालत ने रोहतगी से कहा कि वह केवल इस बिंदू पर अपनी बात रखे कि मुख्यमंत्री द्वारा आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाना 125(ए) के तहत संज्ञेय अपराध है या नही? क्योंकि निचली अदालत ने इस मामले का संज्ञान लिया है। इस पर रोहतगी ने फिर कहा कि जनप्रतिनिधि कानून व उसके नियम इस मामले पर लागू नही होते है। रोहतगी के बार-बार इसी मुद्दे के ईद-गिर्द बात कहने के उपरांत शीर्ष अदालत को उन्हे बताना पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट के 2002-03 का आदेश और उसके आधार पर जनप्रतिनिधि कानून में हुए संशोधन और चुनाव आयोग द्वारा इसी आधार पर तैयार किया गया फॉर्म 26, जिसमें उम्मीदवार को आवश्यक सभी जानकारी देना बंधनकारक है। इसलिए जानकारी छुपाने का मामला संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। दलीले सुनने के बाद कोर्ट ने पूछा कि जानकारी जानबूझकर छिपाई गई या फिर गलती से हुआ, इसलिए इस मामले को क्यों न ट्रायल के लिए भेजा जाए। 
    

Created On :   23 July 2019 3:03 PM GMT

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