बोफोर्स विवाद: दोबारा नहीं खुलेगा केस, CBI नहीं करना चाहती है जांच

Central Bureau of Investigation has withdrawn the petition related to further investigations in Bofors case
बोफोर्स विवाद: दोबारा नहीं खुलेगा केस, CBI नहीं करना चाहती है जांच
बोफोर्स विवाद: दोबारा नहीं खुलेगा केस, CBI नहीं करना चाहती है जांच

डिजिटल डेस्क, दिल्ली। बोफोर्स केस अब दोबारा नहीं खुलेगा इस मामले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका को केन्द्रीय जांच ब्यूरो एजेंसी (CBI) ने वापस ले लिया है। आज (गुरुवार) को सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि वह जांच संबंधी याचिका वापस लेना चाहती हैं। CBI की इस दरख्वास्त पर कोर्ट ने याचिका वापस लेने की मंजूरी दे दी है। इस मामले में निजी याचिकाकर्ता अजय अग्रवाल भी इस मसले में आगे की जांच से जुड़ी याचिका वापस लेना चाहते हैं। कोर्ट उनकी याचिका पर छह जुलाई को सुनवाई करेगी। 

सीबीआई ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट नवीन कुमार कश्यप को बताया कि जांच एजेंसी एक फरवरी 2018 को दायर अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है। सीबीआई ने मामले में आगे की जांच के मद्देनजर अनुमति मांगने के लिये निचली अदालत का रुख किया था। सीबीआई ने कहा था कि मामले में उसे नयी सामग्री और सबूत मिले हैं। जांच एजेंसी ने गुरुवार को अदालत को बताया कि वह आगे की कार्रवाई पर फैसला करेगी और फिलहाल वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है।  

जानें बोफोर्स में कब क्या हुआ
24 मार्च साल 1986 को भारत और स्वीडन के हथियार निर्माता एबी बोफोर्स के बीच 1437 करोड़ रुपये के हथियारों की डील हुई। इसमें 155 एमएम की 410 बोफोर्स तोप देने के लिए करार हुआ। इसके बाद 16 अप्रैल साल 1987 में स्वीडीश रेडियो ने दावा किया कि बोफोर्स सौदे के लिए कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और रक्षा से जुड़े अधिकारियों को घूस दी है। 20 अप्रैल 1987 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा में बताया कि बोफोर्स सौदे में किसी तरह की कोई घूस नहीं दी गई है और ना ही इसमें कोई बिचौलिया शामिल था।

इस मामले में 6 अगस्त साल 1987 को सौदे में कथित घूसखोरी के आरोपों की जांच के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री बी. शंकरानंद की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन हुआ। इस दल ने साल 1988 में बोफोर्स तोप सौदे की जांच के लिए स्वीडन का दौरा किया। दौरे के बाद 18 जुलाई 1989 को जेपीसी ने बोफोर्स सौदे की जांच पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद नवंबर 1989 में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें राजीव गांधी को करारी शिकस्त मिली। 

22 जनवरी 1990 को सीबीआई ने तत्कालीन एबी बोफोर्स के प्रेसिडेंट मार्टिन अर्ब्दो और बिचौलिए विन चड्ढा और हिन्दुजा ब्रदर्स के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने, ठगी, और फर्जीवाड़े को लेकर FIR दर्ज किया। साल 1993 में स्वीडन की सुप्रीम कोर्ट ने ओतावियो क्वात्रोच्चि और अन्य अभियुक्त की अपील को खारिज कर दिया और  साल 1997 क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया। इस मामले में 22 अक्टूबर साल 1999 पहली चार्जशीट विन चड्ढा, रक्षा सचिव एस.के. भटनागर, मार्टिन कार्ल अर्ब्दो (तत्कालीन बोफोर्स कंपनी के अध्यक्ष) के खिलाफ फाइल 

साल 2000 में क्वात्रोच्चि को मलेशिया में गिरफ्तार किया गया, लेकिन उसे इस शर्त पर जमानत दे दी गई कि वह देश छोड़कर नहीं जाएगा।वहीं 2002 में भारत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण की मांग की लेकिन मलेशिया हाईकोर्ट ने भारत की अपील को खारिज कर दिया। साल 2003 भारत की तरफ से ब्रिटेन सरकार को रोगेटरी लेटर भेजकर क्वात्रोच्चि के बैंक अकाउंट्स को फ्रीज करने के लिए कहा गया। ठीक एक साल बाद साल 2004 में कोर्ट ने स्व. राजीव गांधी और रक्षा सचिव भटनागर को आरोपों से बरी कर दिया। साल 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने हिन्दुजा ब्रदर्स और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। उसके बाद सीबीआई की तरफ से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 90 दिनों के अंदर अपील नहीं करने पर सर्वोच्च अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को इस केस में हाईकोर्ट के खिलाफ याचिका दायर करने को कहा।

साल 2009 में क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण पर लाख कोशिशों के बावजूद सफलता नहीं मिलने के बाद सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट से उसके खिलाफ केस वापल लेने की इजाजत मांगी। वहीं 2011 में दिल्ली के स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने क्वात्रोच्चि को केस से बरी करते हुए कहा कि देश अपनी कड़ी मेहनत से की गई कमाई को उसके प्रत्यर्पण पर और वहन नहीं कर सकता है क्योंकि अब तक उस पर 250 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है।

साल 2012 में स्वीडन की पुलिस चीफ स्टेन लिंडस्ट्रोम ने माना कि उनके पास राजीव गांधी या फिर अमिताभ बच्चन के खिलाफ घोटाले में पैसे लेने के कोई सबूत नहीं है। वहीं 2013 में क्वात्रोच्चि कभी भारत नहीं आया, उसकी मौत हो गई। इसके बाद 1 दिसंबर 2016 को करीब छह सालों बाद अग्रवाल की याचिका पर एक बार फिर से सुनवाई शुरु हुई। 14 जुलाई 2017 को सीबीआई ने कहा कि वह बोफोर्स केस को दोबारा खोलने के लिए तैयार है अगर सुप्रीम कोर्ट इसकी इजाजत दे। अब  16 मई 2019 को सीबीआई ने आगे जांच की वाली याचिका वापस ले ली।

Created On :   16 May 2019 9:48 AM GMT

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