इन मंत्रों के जाप से श्राद्ध में हुई कमी होगी पूरी 

Chant These Mantras in Shraddh Paksha Reduction will be complete
इन मंत्रों के जाप से श्राद्ध में हुई कमी होगी पूरी 
इन मंत्रों के जाप से श्राद्ध में हुई कमी होगी पूरी 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। इस पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का तर्पण किया जाता है, लेकिन इस समय में हमसे कई चीजें छूट भी जाती हैं। जिस कमी को पूरा करने के लिए कुछ मंत्र होते हैं जिनके जाप से श्राद्ध में हो रही कमी की पूर्ती हो जाती है। इन मंत्रों का जाप तीन बार किया जाता है जिससे पितर प्रसन्न होते हैं तथा आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं। 

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। 
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः।।

अर्थ:
देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है।

श्राद्ध पक्ष में पितर अपने-अपने कुल में जाते हैं, तृप्त होते हैं और घर में उच्च कोटि की संतान आने का आशीर्वाद देते हैं, जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितर अतृप्त रहते हैं। श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया पैसा नहीं हैं तो दिन में 11:24 से 12:20 से बीच के समय में गाय को चारा खिलाते हुए निवेदन करें मेरे पिता, दादा आदि आपको तृप्त करने में मैं असमर्थ हूँ, आप समर्थ हैं, मेरे पास धन- दौलत, विधि-सामग्री नहीं है, घर में कोई करने-कराने वाला नहीं है लेकिन आपके लिए मेरी श्रद्धा हैं आप मेरी श्रद्धा से तृप्त हों। यह क्रिया करने से जो पुरखे पितृलोक में हैं तो श्राद्ध करने से वहां उन्हें सुकून मिलेगा, देवलोक में हैं तो वहां उन्हें सुख मिलेगा या जहां भी जिस योनी में हैं उन्हें वहां सुख मिल जाएगा।

सोने-चांदी के पात्र में श्राद्ध की सामग्री या भोग खिलाने का सामर्थ्य नहीं है तो सोने-चांदी का मानसिक रूप से कल्पना करके भी कर सकते हैं, लोहे के बर्तन कभी न प्रयोग करें इससे बुद्धि का नाश होता है और पितृ पलायन कर जाते हैं। पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें, बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करें।

कुटुंब में बड़ा पुत्र श्राद्ध करे अगर पुत्र नहीं हैं तो पत्नी या कोई और कर सकता है, पत्नी नहीं है तो जमाई या बेटी का बेटा कर सकता है।

सफ़ेद पुष्प, गाय के गोबर से लीपा हुआ चोक उस पर गेहूं के आटे से बनाई हुई रंगोली सात्विक घर तथा दक्षिण दिशा नीची हो तो उपयुक्त मानी जाती है।

श्राद्ध के समय भोजन की प्रशंसा ना करें और नाही निंदा करें मौन रहकर, सांकेतिक भाषा का उपयोग करें।

श्राद्ध के दिन लोंग, इलायची या सुपारी न चबाएं। मंजन, मालिश, उपवास और स्त्री भोग भी न करें और यदि संभव हो तो औषध न लें। इस दिन किसी दूसरे का अन्न न खाएं।

यदि श्राद्ध करने वाले का जन्म दिवस हो तो उस दिन वह श्राद्ध न करें।  ब्राह्मण को एक दिन पहले न्योता दे दें ताकि वह संयमी रहे

श्राद्ध के दिन मृत आत्मा की शांति के लिए भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृत आत्मा को अर्पण करना चाहिए।

श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल, कुनबा या खानदान को आशीर्वाद देते हैं।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा।

जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैंl कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है।

अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें हे सूर्य नारायण देव मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट एवं सुखी रखें। इस निमित में आपको अर्घ्य व भोग अर्पित करता हूं। प्रार्थना करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं।

श्राद्ध पक्ष में 1 माला रोज द्वादश मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए। उनसे मन ही मन प्रार्थना करें वो आपकी प्रार्थना स्वीकार कर आपको सर्व समृद्धि का आशीर्वाद देंगे। 

Created On :   1 Oct 2018 11:20 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story