छठ : मजहबों के बीच दूरियां मिटा रहा आस्था का महापर्व

Chhath: The Mahaparva of Faith is erasing the distance between religions
छठ : मजहबों के बीच दूरियां मिटा रहा आस्था का महापर्व
छठ : मजहबों के बीच दूरियां मिटा रहा आस्था का महापर्व

पटना, 31 अक्टूबर (आईएएनएस)। सूर्योपासना का महापर्व छठ ना केवल लोक आस्था का पर्व है, बल्कि इस पर्व में मजहबों के बीच दूरियां भी मिट जाती हैं। बिहार में छठ पर्व के लिए जिस चूल्हे पर छठव्रती प्रसाद बनाती हैं, वह मुस्लिम परिवारों का बनाया होता है। यही नहीं, कई जिलों में मुस्लिम महिलाएं भी छठ पर्व करती हैं।

पटना के कई मुहल्ले की मुस्लिम महिलाएं छठ पर्व से एक पखवाड़े पहले से ही छठ के लिए चूल्हा तैयार करने में जुट जाती हैं। चूल्हे के लिए मिट्टी गंगा तट से लाई जाती है। इस मिट्टी से कंकड़-पत्थर निकालकर इसमें भूसा और पानी डालकर गूंथा जाता है। मिट्टी के इस लोंदे से चूल्हे तैयार किए जाते हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि जिस मुस्लिम परिवार की महिलाएं ये चूल्हे बनाती हैं, उनके घर में एक महीना पहले से ही मांस और लहसुन-प्याज खाना बंद कर दिया जाता है।

उज्ज्वला योजना के बावजूद गांवों में मिट्टी के चूल्हे प्राय: सभी घरों में बनाकर रखे जाते हैं, लेकिन पटना में ऐसा नहीं होता। यहां के लोगों को छठ पर्व में मिट्टी का चूल्हा खरीदना पड़ता है।

पटना के वीरचंद पटेल मार्ग में मिट्टी के चूल्हे बनाकर बेचने वाली सनिजा खातून ने आईएएनएस से कहा, मेरे ससुर भी यह काम किया करते थे। मेरे घर में यह काम 40 साल से हो रहा है। ससुर के इंतकाल के बाद हमलोग छठ पर्व के लिए चूल्हे बनाते हैं।

पटना के आर ब्लॉक मुहल्ले में रहने वाले महताब ने कहा कि इस बार चूल्हा बनाने वालों को मिट्टी जुटाने में बड़ी दिक्कत हुई, क्योंकि पुनपुन, गंगा और सोन नदी में बाढ़ की वजह से मिट्टी आसानी से नहीं मिल पाई।

उन्होंने कहा, बाढ़ की वजह से मिट्टी दलदली हो गई, इसलिए मिट्टी मिलने में समस्या हुई। यही वजह है कि इस साल कम चूल्हे बन पाए। किल्लत की वजह से इस बार चूल्हे की कीमत बढ़ गई है।

महताब ने कहा कि पहले चूल्हा 45-50 रुपये में बेच दिया जाता था, लेकिन इस साल कीमत 100 रुपये तक पहुंच गई है।

दारोगा राय पथ की नसीमा बेगम ने बताया कि चूल्हे बनाने के दौरान पूरी सावधानी बरती जाती है। साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है और इसे पूरी तरह पाक रखा जाता है।

नसीमा ने कहा, चूल्हे बनाने में जितनी मेहनत होती है, उस हिसाब से कमाई नहीं होती है, लेकिन छठ हमारी श्रद्धा से जुड़ी हुई है, इसलिए हम हर साल चूल्हे बनाती हैं। इससे दिल को सुकून मिलता है।

छठव्रती भगवान भास्कर को अघ्र्य देने के लिए मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद तैयार करती हैं और खरना के दिन खीर, रोटी भी इसी चूल्हे पर बनाई जाती है। ऐसा नहीं कि बिहार में केवल हिंदू ही इस व्रत को करती हैं, बल्कि कुछ मुस्लिम परिवार की महिलाएं भी छठ पर्व मनाती हैं।

पटना, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर जिले के कई ऐसे गांव हैं, जहां की मुस्लिम महिलाएं भी पूरे धार्मिक रीति से यह पर्व करती हैं।

आइए, चलते हैं गोपालगंज के बरौली प्रखंड के रतनसराय गांव में। यहां इन दिनों छठ के गीत गूंज रहे हैं। इस गांव में कई मुस्लिम महिलाएं छठ व्रत कर रही हैं।

गांव के बाबुद्दीन मियां की बेगम नजीमा खातून कहती हैं कि वे पिछले पांच-छह साल से छठ करती आ रही हैं। उन्होंने दावे के साथ कहा, छठी मैया सबकी मनोकामना पूरी करती हैं। इस गांव में कई मुस्लिम महिलाएं हैं, जो पूरे नियम के साथ छठ करती हैं।

वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड के एतवारपुर गांव में भी कई मुस्लिम महिलाएं आस्था का पर्व छठ कर रही हैं। इस गांव की सकीना खातून कहती हैं कि गांव की एक वृद्ध महिला की सलाह पर उन्होंने छठ पर्व मनाना शुरू किया था और उसके बाद से उनके घर में शुभ हो रहा है, कोई अनहोनी नहीं हुई है। सकीना के मुताबिक, इस गांव की और भी कई मुस्लिम महिलाएं भी विधि-विधान से छठ पर्व मनाती हैं।

Created On :   31 Oct 2019 2:30 PM GMT

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