स्कालरशिप घोटाला : कुबडे समिति की रिपोर्ट को प्रतिवादियों ने बताया एकतरफा और ‘टेलरमेड’

CIIMC and Scholarship scandal exposed of 59 lakh rupees in nagpur university
स्कालरशिप घोटाला : कुबडे समिति की रिपोर्ट को प्रतिवादियों ने बताया एकतरफा और ‘टेलरमेड’
स्कालरशिप घोटाला : कुबडे समिति की रिपोर्ट को प्रतिवादियों ने बताया एकतरफा और ‘टेलरमेड’

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर यूनिवर्सिटी और सेंट्रल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (CIIMC) से जुड़े 59 लाख के स्कालरशिप घोटाले पर हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त कुबडे समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि, यह घोटाला यूनिवर्सिटी अधिकारी, समाजकल्याण अधिकारी और कॉलेज संचालक सुनील मिश्रा की साठ-गांठ से हुआ था, जिसमें स्कालरशिप के लाभार्थी स्टूडेंट्स के नाम पर मिश्रा को 59 लाख 26 हजार रुपए का फायदा पहुंचाया गया है। हाईकोर्ट के अादेश के मुताबिक मामले में प्रतिवादी मिश्रा और तत्कालीन कुलसचिव डॉ. अशोक गोमासे ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।

दोनों ने समिति की रिपोर्ट को बेबुनियाद और न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध तथा टेलरमेड करार दिया है। उनके अनुसार जांच के दौरान जांच अधिकारी से कई बार विरोधियों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जानकारी मांगी गई, ताकि वे उसके खिलाफ अपना पक्ष भी बता सके, लेकिन जांच अधिकारी ने बगैर उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराए यह जांच पूरी की। इसी वजह से जांच के दौरान वे दोनों अपना पक्ष ठीक से नहीं रख सके।

उप-कुलसचिव डॉ. हिरेखन पर आपत्ति
एक ओर जहां मिश्रा का दावा है कि, रिपोर्ट सच नहीं है। इसमें हितों के टकराव भी हो रहे हैं और  सबूतों के विरुद्ध जाकर निष्कर्ष निकाला गया है। तर्क है कि, उन्होंने इसी तरह 14 मार्च को रोजनामा की एक प्रति भी मांगी थी, जांच अधिकारी ने उन्हें प्रति देने से मना कर दिया, जबकि विवि के उप-कुलसचिव अनिल हिरेखन, जिनसे जुड़ी सुनील मिश्रा की कुछ याचिकाएं कोर्ट के विचाराधीन हैं, उन्हें राेजनामा की प्रति दे दी गई। मिश्रा का तो यह तक दावा है कि,  यूनिवर्सिटी ने जांच में हिरेखन को अपने प्रतिनिधि के रूप में शामिल ही नहीं किया था। ऐसे में अनिल हिरेखन की इस जांच के दौरान उपस्थिति ने रिपोर्ट की निष्पक्षता को प्रभावित किया है।

कुलगुरु से भी पूछताछ हो 
वहीं दूसरी ओर डॉ.गोमासे ने अपनी सफाई में कोर्ट को बताया है कि, वर्ष 2014 में शिक्षा शुल्क समिति अस्तित्व में नहीं होने के कारण उन्होंने बतौर कुलसचिव इस शुल्क वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यह फैसला तत्कालीन कुलगुरु की सलाह और जानकारी में लिया गया था। कुलगुरु ने ही शुल्क बढ़ोतरी को मंजूरी दी थी, लेकिन जांच अधिकारी ने कुलगुरु से कोई पूछताछ नहीं की। इधर उनके (डॉ.गोमासे) द्वारा निकाले गए शुल्क वृद्धि के पत्र को एकेडमिक और मैनेजमेंट काउंसिल की अनुमति नहीं मिलने से वह पत्र रद्द हो गया था, जिसकी सूचना भी उन्होंने संबंधित कॉलेज और समाज कल्यण विभाग को दी थी। ऐसे में इस प्रकरण में जांच समिति ने उनके लिप्त होने की जो बात कही है वह बेबुनियाद है। 

यूनिवर्सिटी कर सकता है कार्रवाई
इस मामले में नागपुर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अब तक कोई आपत्ति नहीं ली गई है। विवि के अधिवक्ता पी.सत्यनाथन के अनुसार वे इस रिपोर्ट से संतुष्ट हैं और कोर्ट आदेश दे तो विभागीय कार्रवाई के लिए भी तैयार हैं। इस मामले में जल्द ही हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। जिस पर नागपुर के शिक्षा जगत की निगाहेें टिकी हुई हैं।

Created On :   11 Sep 2018 5:58 AM GMT

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