1985 में शाहबानो से 2017 में सायरा बानो तक कितनी बदली कांग्रेस...

Congress stand on Shah Bano in 1985 and Saira Bano in 2017 case
1985 में शाहबानो से 2017 में सायरा बानो तक कितनी बदली कांग्रेस...
1985 में शाहबानो से 2017 में सायरा बानो तक कितनी बदली कांग्रेस...

डिजिटल डेस्क, भोपाल। क्या कांग्रेस वास्तव में सेक्युलर है? क्या कांग्रेस को कभी अल्पसंख्यकों की चिंता रही है? या इनका इस्तेमाल कांग्रेस हमेशा वोट बैंक के लिए करती आई है। इस बात की पड़ताल के लिए हमें तीन तलाक पर कांग्रेस की नीति और 1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए शाहबानो केस पर सरकार के फैसले को लेकर गौर करना होगा।

जानते हैं तीन तलाक बिल के बारे में 
2017 में सायरा बानो ने तलाक ए विद्दत पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला जीता। कोर्ट ने तीन तलाक (इंस्टेट) पर रोक लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक को लेकर कानून बनाने को कहा। लोकसभा में पिछले दिनों तीन तलाक पर सजा के लिए बना बिल लोकसभा में पास हो गया था। हालांकि कई पार्टियां इसके विरोध में थी लेकिन बीजेपी के पास बहुमत है। इस कारण बिल आसानी से पास हो गया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार के बिल का मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने शुरू से ही विरोध किया है। सरकार का दावा था कि इससे महिलाओं को समान अधिकार मिलेगा। यह मुस्लिम महिलाओं की समानता का विधेयक है। उन्होंने इसे राजनीति से नहीं जोड़ने और मजहब के तराजू पर नहीं तौलने की भी अपील की।

वहीं कांग्रेस ने राज्यसभा में इसका विरोध किया, कांग्रेस के साथ इस बिल के विरोध में एआईएमआईएम आरजेडी, टीएमसी, सपा समेत कई पार्टियां आ गईं जिसके चलते ये बिल पास नहीं हो पाया। कांग्रेस इस बिल में कुछ बदलाव चाहती है। स्पष्ट कर दें कि कांग्रेस तीन तलाक के आरोपी को तीन साल की सजा के पक्ष में नहीं है। उसका मानना है कि जब तीन तलाक वैध ही नहीं होगा तो सजा किस बात की। साथ ही कांग्रेस का सरकार से सवाल है कि इन तीन सालों में जब पति जेल में होगा तो पत्नी का गुजारा कैसे होगा।

सायराबानो ने जीती थी तीन तलाक के खिलाफ जंग...
पति से तीन तलाक मिलने के बाद सायरा बानो ने फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका में उन्होंने तीन तलाक पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की। साथ ही निकाह हलाला और बहु विवाह जैसी प्रथाओं को भी गैर-कानूनी ठहराए जाने की मांग सायरा बानो ने की थी। इस याचिका में शायरा बानो ने कहा कि "तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।" इस लड़ाई में सायरा बानो के साथ कई मुस्लिम महिलाएं भी थी। सायरा बानो की याचिका पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3:2 से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जहां एक तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया, वहीं मुस्लिम महिलाओं ने इसे ऐतिहासिक बताया। अगस्त महीने में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की प्रेसिडेंशियल वाली 5 जजों की बेंच ने इसे अवैध बताया। 5 में से जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने "तलाक-ए-बिद्दत" यानी तीन तलाक को अवैध करार दिया।

अब बात करते हैं 1985 की...
62 वर्षीय मुस्लिम महिला थी शाहबानो जिनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। जिसके बाद उन्होंने गुजारा भत्ते के लिए निचली अदालत में केस किया। वे केस जीत गईं। हाईकोर्ट ने  उनके पक्ष में फैसला सुनाया। 5 बच्चों की मां शाहबानो के पति इंदौर में वकालत करते थे। वे कोर्ट के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट गए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बैंच ने 23 अप्रैल 1985 को अपना फैसला सुनाया। जिसमें कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पते  500 रुपए मासिक भत्ता देने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मात्र मैहेर की रकम लौटा देने से ही पति का फर्ज पूरा नहीं हो जाता। साथ ही कोर्ट ने तत्कालीन सरकार से सिविल कोड बिल बनाने की बात भी कही।  

SC के फैसले के बाद बढ़ी राजीव सरकार की मुश्किल
मामले के बाद राजीव गांधी सरकार में काफी गहमागहमी चलने लगी। चूंकि राजीव गांधी युवा और नई सोच के माने जाते थे। मुस्लिम महिलाओं को उम्मीद थी कि वे इस पर कोई बड़ा फैसला लेंगे। इधर देश भर में मुस्लिम संगठन कोर्ट के इस फैसले का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि कोर्ट उनके शरियत कानून में दखल देने लगा है। मुस्लिम संगठन के विरोध के कारण, राजीव सरकार पशोपेश में थी। अगर सरकार कोई नया कानून बनाती तो इस विरोध के चलते उनकी सरकार को बड़ा नुकसान हो सकता था। सरकार के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान चाहते थे कि राजीव गांधी महिलाओं के हक के लिए कदम उठाएं। लेकिन राजनीति के आगे राजीव गांधी की नई सोच हार गई। तीन तलाक पर कानून बनाने के उलट उन्होंने 1986 में एक मुस्लिम मैरिज एक्ट (तलाक पर अधिकार संरक्षण) पास किया जिसमें महिलाओं को तीन माह तक भत्ता देने की बात कही। इस कानून के बाद अब महिलाएं कोर्ट में भी भत्ते को लेकर कोर्ट में केस नहीं कर सकती थीं। बिल पास होने के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा दे दिया था। 

Created On :   10 Jan 2018 5:46 PM GMT

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