समझौतेनामे को कोर्ट ने नहीं किया स्वीकृत- कहा कानूनी रूप से तलाक लेना जरूरी

Court did not approve agreement said necessary to legally divorce
समझौतेनामे को कोर्ट ने नहीं किया स्वीकृत- कहा कानूनी रूप से तलाक लेना जरूरी
समझौतेनामे को कोर्ट ने नहीं किया स्वीकृत- कहा कानूनी रूप से तलाक लेना जरूरी

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने साफ किया है कि कोई भी विवाह महज दो पक्षों के प्रतिनिधियों के समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता। कानूनन या फिर धार्मिक मान्यता के आधार पर तलाक लेना जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर कोर्ट समझौतानामा को ही तलाक के रूप में कतई स्वीकृत नहीं कर सकता। इसी निरीक्षण के साथ हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में दहेज प्रताड़ना के आरोपी की सजा रद्द कर दी।

यह है मामला 
हाईकोर्ट ने भंडारा सत्र न्यायालय के 30 सितंबर 2011 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें निचली अदालत ने आरोपी  निलेश काकोडे (निवासी कांडरी, तहसील रामटेक) को भादवि 498-ए और 306 के तहत दोषी मानकर साढ़े तीन साल की जेल और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। दरअसल याचिकाकर्ता पर अपनी पत्नी सुजाता को दहेज  के लिए प्रताड़ित करने आरोप था। दोनों का विवाह 10 जनवरी 2008 को हुआ था। विवाह के बाद से ही दोनों के संबंध अच्छे नहीं थे।

हाईकोर्ट में दी यह दलील
14 मार्च 2008 को समझौता नामा करके दोनों अलग रह रहे थे। 20 मार्च 2008 को सुजाता ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली। पीड़िता के परिजनों के अनुसार आरोपी ने  पीड़िता से 50 हजार रुपए की मांग की थी। जिसके कारण उनकी बेटी ने जहर पी लिया। उसके पिता तुकाराम पाटील ने दामाद व अन्य के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। निचली अदालत ने उसे दोषी करार दिया, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट की शरण ली थी। हाईकोर्ट ने आरोपी पति की सजा खारिज कर दी है। कोर्ट का मानना है कि बिना किसी कानूनी मशविरे के दोनों ने समझौता नामा तैयार किया। ऐसे किसी भी मामले में कानूनी रूप से पति-पत्नी के अलग होने का प्रमाण होना चाहिए न कि समझौतानामा को आधार मानकर  किसी भी निर्णय पर फैसला दे दिया जाए। मामले में आरोपी की ओर से एड.राजेंद्र डागा ने पक्ष रखा।
 

Created On :   3 Oct 2019 7:20 AM GMT

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