रेप केस: दस साल की सजा काटने के बाद हाईकोर्ट ने रद्द किया सजा का फैसला

Decision on sentence rejected by High Court after ten-year jail
रेप केस: दस साल की सजा काटने के बाद हाईकोर्ट ने रद्द किया सजा का फैसला
रेप केस: दस साल की सजा काटने के बाद हाईकोर्ट ने रद्द किया सजा का फैसला

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने रेप केस में मिली दस साल की सजा में से साढे नौ साल की सजा काटने के बाद आरोपी की सजा को रद्द करते हुए उसे मामले से बरी कर दिया है। आरोपी मधुकर बरोरा को कल्याण की कोर्ट ने दस साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। जिसके खिलाफ बरोरा ने हाईकोर्ट में अपील की थी। बरोरा को इस मामले में 20 अक्टूबर 2009 को गिरफ्तार किया गया था। तब से वह अब तक जेल में था।  

जस्टिस साधना जाधव के सामने बरोरा की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद जस्टिस ने पाया कि दुष्कर्म पीड़िता द्वारा मृत्यु से पहले पिता के सामने दिए गए मौखिक बयान के आधार पर आरोपी को सजा सुनाई गई थी, जिसके बारे में आरोपी को जानकारी नहीं थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता जब घर से पेशाब करने के लिए निकली तो आरोपी उसे धमकाकर नदी के किनारे जंगल में ले गया, जहां उसने चाकू की नोक पर दुष्कर्म किया।

इस घटना के बाद जब पीड़िता घर पर आयी तो उसने अपने शरीर में मिट्टी का तेल डालकर खुद को आग के हवाले कर दिया। घरवालों को जब पता चला तो वे उसे अस्पताल ले गए। इस दौरान उसके शरीर का 82 प्रतिशत हिस्सा जल गया था। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। लेकिन इससे पहले उसके दो बयान दर्ज किए गए।

मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद जस्टिस ने पाया कि एक बयान विशेष कार्यकारी मैजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया, जिसका अभियोजन पक्ष ने परीक्षण ही नहीं किया और ऐसा न करने के पीछे की कोई वजह भी नहीं दी गई। दूसरा बयान पीड़िता ने मरने से पहले अपने पिता के सामने दिया था। आरोपी के वकील ने दावा किया कि पीड़िता द्वारा पिता के सामने मौत से पहले मौखिक रुप से दिया गया बयान ऐसा नहीं जिस पर अदालत भरोसा कर सके। इसके अलावा मेरे मुवक्किल को इस बयान के बारे में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत जरुरी जानकारी नहीं दी गई। मेरे मुवक्किल पेश से बढ़ई व अशिक्षित था इसलिए वह अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए सबूत को चुनौती नहीं दे पाया। घटना के दिन मेरा मुवक्किल घर पर नहीं था। उसे इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है।

अभियोजन पक्ष पीड़िता द्वारा मौत से पहले दिए गए बयान में लिखी गई बातो को साबित नहीं कर पाया है। इसलिए मृत्यु से पूर्व दिए गए बयान के आधार पर मेरे मुवक्किल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस ने कहा कि आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल किए गए सबूत के बारे में उसे सही समय पर जानकारी न मिलने के चलते वह अपना बचाव नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को बरी किया जाता है। यह कहते हुए जस्टिस ने आरोपी को कल्याण कोर्ट द्वारा 3 जुलाई 2012 को दुष्कर्म अन्य आरोपों को लेकर सुनाई गई दस साल की सजा के फैसले को रद्द कर दिया। पर तब तक आरोपी जेल में साढे नौ साल बीता चुका था। 


 

Created On :   11 May 2019 12:43 PM GMT

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