चार नगरसेवकों के पद निलंबित करने का फैसला रद्द, फर्जी रेलवे पास के साथ पकड़े कर्मचारी की नौकरी बहाल नहीं - HC

Decision to suspend post of four corporators canceled - HC
चार नगरसेवकों के पद निलंबित करने का फैसला रद्द, फर्जी रेलवे पास के साथ पकड़े कर्मचारी की नौकरी बहाल नहीं - HC
चार नगरसेवकों के पद निलंबित करने का फैसला रद्द, फर्जी रेलवे पास के साथ पकड़े कर्मचारी की नौकरी बहाल नहीं - HC

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने नामित नगरसेवकों के पद निलंबित किए जाने के मामले में राज्य सरकार को झटका दिया है। चार नामित नगरसेवकों के पद को निलंबित करने के निर्णय को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार का यह निर्णय न सिर्फ नियमों के खिलाफ है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखल भी देता है। राज्य सरकार ने भारतीय जनता पार्टी के नगरसेवक की शिकायत पर भिवंडी महानगरपालिका के चार नामित नगरसेवकों के पद को निलंबित कर दिया था। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ नामित नगरसेवक सिद्धेश्वर कमुरथी,राहुल खटके, मोहम्मद साजिद, असफाक खान व देवानंद थाले सहित अन्य तीन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया था कि भिवंडी महानगरपालिका ने 12 जुलाई 2018 को प्रस्ताव पारित कर पांच लोगों को नामित नगरसेवक बनाया था। कार्पोरेशन अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के तहत महानगरपालिका को विशेषज्ञों का सहयोग मिल सके इसके लिए डाक्टर, वकील, इंजीनियर आर्किटेक्चर, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी व समाज कल्याण के कार्य करनेवालों को नगरसेवक रुप में नामित करने का अधिकार है। सुनवाई के दौरान भिंवडी महानगरपालिका के आयुक्त की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एनआर बूबना ने कहा कि मनपा आयुक्त ने कार्पोरेशन एक्ट की धारा 4 के तहत हर श्रेणी से नगरसेवक नामित करने की सिफारिश की थी लेकिन महानगरपालिका की आम सभा ने मनपा आयुक्त की सिफारिश के विपरीत जाकर सिर्फ एक शख्स को इंजीनियर की श्रेणी से नियुक्ति किया जबकि चार लोगों को समाज कल्याण के कार्य करनेवालों की श्रेणी से नियुक्त कर दिया। वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने अपने आदेश में साफ किया है कि यदि किसी उम्मीदवार को किसी के चुनाव से दिक्कत है तो वह इसके लिए कोर्ट में चुनावी याचिका दायर करे। नामित नगरसेवक के मामले में भी यह नियम लागू होता है। इसलिए राज्य सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। सरकार की मनमानी कार्रवाई के लिए उस पर जुर्माना लगाया जाए। क्योंकि सरकार ने नियमों के खिलाफ इस मामले में निष्पक्ष निर्णय नहीं लिया है। चारों नामित नगरसेवक कांग्रेस के हैं। वहीं सरकारी वकील ने कहा कि सरकार ने इस मामले में अभी अंतिम निर्णय नहीं किया है। सरकार ने सिर्फ महानगरपालिका की ओर से नगरसेवकों के नामित करने के निर्णय को निलंबित किया है। इसलिए सरकार को उचित फैसला लेने का वक्त दिया जाए। कोर्ट इस मामले में सरकार पर कोई जुर्माना न लगाए। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हम नगरसेवकों की योग्यता पर नहीं जा रहे हैं।  नियमों के तहत  यदि किसी को आपत्ति है तो उसे कोर्ट में चुनावी याचिका दायर करनी चाहिए थी। राजनीतिक विवाद से जुड़े इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। सरकार के पास सिर्फ जनहित में अथवा महानगरपालिका को वित्तीय नुकसान होने की स्थिति में उसके प्रस्ताव को निलंबित करने का अधिकार है। सरकार ने नामित नगरसेवक के पद को निलंबित करने को लेकर कोई कारण भी नहीं दिया है। सिर्फ इतना कहा है कि नगरसेवकों को नामित करने से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया गया है। इस आधार पर सरकार को इस प्रकरण में हस्तक्षेप कर शिकायत करनेवाले भाजपा के नगरसेवक को कृतार्थ नहीं करना चाहिए था। यह कहते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और नगरसेवकों को राहत प्रदान की। 

फर्जी रेलवे पास के साथ पकड़े गए कर्मचारी की नौकरी बहाल करने से हाईकोर्ट का इंकार 

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने रेलवे के फर्जी मासिक पास के साथ पकड़े गए मध्य रेलवे के कर्मचारी की नौकरी बहाल करने से इंकार कर दिया है। रेलवे अधिकारियों ने 11 मई 1996 को नई मुंबई के नेरुल स्थित बुकिंग कार्यालय में औचक निरक्षण की कार्रवाई की थी। इस कार्रवाई के दौरान बुकिंग कार्यालय से राजेश सोनवने नाम के कर्मचारी के पास से दो बंडल में 13898 फर्जी मासिक पास (सीजन टिकट) मिले थे। जिसकी कीमत एक लाख 89 हजार आठ सौ 47 रुपए थी। इस घटना के बाद सोनावने के खिलाफ विभागीय जांच की गई। विभागीय जांच के बाद दंड स्वरुप 17 मई 2004 को  सोनावने को नौकरी से निकाल दिया गया। यही नहीं इस मामले में सोनावाने के खिलाफ मैजिस्ट्रेट कोर्ट में मुकदमा भी चला। कोर्ट ने इस प्रकरण में सबूतों के अभाव में सोनावने को 14 अक्टूबर 2011 को बरी कर दिया। कोर्ट के फैसले के आधार पर सोनावने ने रेलवे अधिकारियों से दोबारा नौकरी बहाल करने का आग्रह किया। किंतु रेलवे अधिकारियों ने उसके इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। इस वजह से सोनावने ने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में आवेदन दायर किया। कैट ने सोनावने के आवेदन को इस आधार पर रद्द कर दिया कि उसने देरी से कैट में आवेदन दायर किया। 24 अप्रैल 2017 के कैट के फैसले के खिलाफ सोनावने ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस शंकलेचा की खंडपीठ के सामने सोनावने की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सोनावने के वकील ने दावा किया मेरे मुवक्किल को मिली गलत सलाह की वजह से वह कैट में समय से आवेदन नहीं दायर कर पाया है। नौकरी से निकाल कर मेरे मुवक्किल को काफी कड़ी सजा दी गई है। इसलिए इस सजा को रद्द कर दिया जाए। कोर्ट ने भी मेरे मुवक्किल को बरी कर दिया है। वहीं रेलवे की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि विभागीय जांच में याचिकाकर्ता पर लगे आरोप साबित हो गए हैं। ऐसे में उसे राहत देना उचित नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व याचिकाकर्ता के रिहाई से जुड़े फैसले पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि चुंकी अभियोजन पक्ष ने कई गवाह कोर्ट में पेश नहीं किए, इस वजह से याचिकाकर्ता को बरी किया गया है। इसे सम्मानजनक तरीके से बरी होना नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा कोर्ट के रिहाई के फैसले के चलते रेलवे की विभागीय जांच की अहमियत कम नहीं हो जाती है। यह कहते हुए खंडपीठ ने सोनावने की याचिका को खारिज कर दिया। 

अदालत का निर्देश न मानने पर क्यों न करें कार्रवाई- मनपा आयुक्त से पूछा 

इसके अलावा खस्ताहाल कोर्ट के लिए वैकल्पिक जगह की व्यवस्था न करने पर बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका आयुक्त के रुख पर नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने मनपा आयुक्त से जानना चाहा है कि अदालत के निर्देश का पालन न करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए? न्यायमूर्ति भूषण गवई व न्यायमूर्ति एसके शिंदे की खं़डपीठ ने मुंबई मनपा आयुक्त अजोय मेहता को नोटिस जारी किया है। इस संबंध में दादर बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ को बताया गया कि 13 मार्च 2019 को मुंबई मनपा आयुक्त को दादर कोर्ट के लिए अंशकालिक जगह उपलब्ध कराने के लिए विधि व न्याय विभाग के सचिव तथा सार्वजनिक निर्माण कार्य विभाग के प्रधान सचिव के साथ बैठक करने को कहा था। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने पाया कि इस मामले में मनपा आयुक्त का कृत्य कानून व न्याय की जरुरत के अनुरुप नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि मनपा राज्य सरकार का एक अंग है। ऐसे में हमें अपेक्षा थी कि वह इस दिशा में पहल करेगा। लेकिन उसकी तरफ से कुछ नहीं किया गया। खंडपीठ को बताया गया कि दादर कोर्ट के करीब एक स्कूल खाली है। यह जगह कुछ समय के लिए कोर्ट के लिए उपयुक्त हो सकती है। लेकिन स्कूल की जगह कोर्ट के लिए उपलब्ध कराने के लिए मनपा की ओर से पहल न किए जाने पर खंडपीठ ने मनपा आयुक्त के रुख पर नाराजगी जाहिर की और उन्हें नोटिस जारी किया। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 2 मई तक के लिए स्थगित कर दी है। 
 

Created On :   29 April 2019 4:35 PM GMT

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