जानिए कब-कब पीपल को जल नहीं चढ़ाना चाहिए ?

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जानिए कब-कब पीपल को जल नहीं चढ़ाना चाहिए ?
जानिए कब-कब पीपल को जल नहीं चढ़ाना चाहिए ?

 

डिजिटल डेस्क । सनातन धर्म में प्रकृति के बीच एक अनूठा ही रिश्ता है। जो एक दूसरे पर आश्रित है। सनातन धर्म से संबंधित कई ऐसे नियम और मान्यताएं हैं जो ये बताती हैं कि प्रकृति को किसी भी सनातन धर्म के अनुयायी के जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। सनातन धर्म में प्रकृति के ऐसे कई पेड़-पौधे, नदियां और पर्वत हैं जिसको धर्म से जोड़ा गया है, जिसको पवित्र माना गया है। इन्हीं में से एक है पीपल का वृक्ष, जिसे कभी प्रेत-आत्माओं का तो कभी शनि ग्रह, हनुमान जी,श्री हरी विष्णु और महादेव शिव का निवास माना जाता है। ऐसा माना जाता है शनिवार के दिन पीपल के सामने दीया जलाने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। इसे कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है जिसमें आत्मा, देवताओं के साथ-साथ पितरों का भी वास है।

 

 

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श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है -

“अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:”|| 

अर्थात, “मैं वृक्षों में पीपल हूं। जिसके मूल (जड़) में ब्रह्मा जी, मध्य (तना) में विष्णु जी तथा अग्र भाग (पत्तों) में भगवान शिव जी का साक्षात रूप विराजित है।

स्कंदपुराण के अनुसार भी पीपल के मूल में श्री विष्णु, तने में केशव यानि श्रीकृष्ण, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है”।

पीपल के वृक्ष से संबंधित कुछ नियम हैं, जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा मनुष्य को कष्ट प्रद परिणाम मिल सकते हे । 

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाना शुभ फल प्रदान करता है, किन्तु यही कार्य रविवार को किया जाए तो अशुभ होता है। यह दरिद्रता को आमंत्रण भी देता है।

 

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जो व्यक्ति पीपल की एक डाल भी तोड़ता या काटता है, उनके पितृ को कष्ट झेलने पड़ते और वंश वृद्धि करने में बाधा आती है। वेसे पूरे विधि-विधान और नियम के अनुसार पूजन या हवानादी करवाने के बाद क्षमा मांग कर पीपल की लकड़ी काटी काए तो दोष नहीं लगता। सुबह-सुबह मतलब ब्रह्ममुहुर्त में मंदिर जाना शुभ होता है किन्तु इस समय पीपल को जल ना चढ़ाएं क्योंकि ब्रह्म मुहुर्त में पीपल के वृक्ष में दरिद्रा का वास होता है। पीपल के वृक्ष पर जल सूर्योदय के बाद ही चढ़ाना चाहीए। जिससे आपके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा द्रष्टि सदा बनी रहे।

 

पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करता है उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साथ ही शत्रुओं का नाश भी होता है। पीपल के वृक्ष की पूजा करने से ग्रह दोष बाधा शांत होती है और काल सर्प दोष, पितृदोष शांत रहते है।

 

अमावस्या और शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीया जलाने और हनुमान चालीसा का पाठ करने से अनेक प्रकार के कष्टों से आराम मिलता है। ऐसा करने से परिवार में खुशहाली और समृद्धि भी आती है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष का रोपण करता है उसे भौतिक संसार से मुक्ति प्राप्त होती है। वह जीवन-मरण के चक्रों से मुक्त होकर मोक्ष धाम को प्राप्त करता है।

 

 

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पीपल के वृक्ष की कथा

 

पीपल के वृक्ष बारे में एक कथा प्रचलित है कि, एक बार माता लक्ष्मी और उनकी छोटी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली, सारे जगत के पालनहार कृपया हमें भी कही तो रहने का स्थान दो तब श्री विष्णु ने कहा,"आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। क्योकि पीपल को भी विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा।

रविवार को पीपल की पूजा नहीं की जाती क्योंकि जब विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने मना कर दिया था क्योंकि उनकी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। दरिद्रा के विवाह के उपरांत ही वह श्री हरी विष्णु से विवाह कर सकती थी। 

 

उन्होंने दरिद्रा से पूछा," वो कैसा वर पाना चाहती हैं।"तो वह बोली कि," वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे और उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। तब श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। 

अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान नही मिला। दरिद्रा उनकी प्रतीक्षा में विलाप करने लगी और यहाँ श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली," जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। 

 

धरा पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन साथ में यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना-छांटना बहुत ही आवश्यक हो तो उसे रविवार को ही काटा-छांटा जा सकता है।

Created On :   5 July 2018 4:07 AM GMT

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