जाप करने की माला में 108 ही मनके क्यों होते हैं?

dharm : To chant Why are the beads in chains to be 108 only?
जाप करने की माला में 108 ही मनके क्यों होते हैं?
जाप करने की माला में 108 ही मनके क्यों होते हैं?

डिजिटल डेस्क । प्राचीनकाल से ही जप करना भारतीय पूजा-उपासना पद्धति का एक अभिन्न अंग रहा है। जप करने के लिए माला होती है, जो रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, स्फटिक, मोतियों या रत्नों से बनी हो सकती है। इनमें से रुद्राक्ष और तुलसी की माला को जप के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि इनमें कीटाणुनाशक शक्ति के साथ ही विद्युतीय और चुंबकीय शक्ति भी पाई जाती है। अंगिरा स्मृति में माला का महत्त्व इस प्रकार बताया गया है।

 

विना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।1

असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फल भवेत्।।2


 

अर्थात - 

बिना कुश के अनुष्ठान, बिना माला के संख्याहीन जप निष्फल होता है। 

माला में 108 ही मनके क्यों होते हैं?  

इस विषय में योगचूड़ामणि उपनिषद में कहा गया है।

पद्शतानि दिवारात्रि सहस्त्राण्येकं विंशति।1
एतत् संख्यान्तिंत मंत्र जीवो जपति सर्वदा।।2

हमारी स्वासों की संख्या के आधार पर 108 मनको की माला को स्वीकृत कीया गया है। 24 घंटों में हर एक व्यक्ति 21,600 बार सांस लेता है। क्योकि 12 घंटे तो दिनचर्या में निकल जाते हैं और शेष 12 घंटे बचते हैं। अर्थात 10,800 सांसों का उपयोग अपने ईष्टदेव को स्मरण करने में व्यतीत करना चाहिए, लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता इसलिए इस संख्या में से अंतिम 2 शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु-स्मरण की मान्यता प्रदान की गई।

 

दूसरी मान्यता है 

भारतीय ऋषियों ने 27 नक्षत्रों की खोज की थी जिस पर यह आधारित है। की प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं जिनके गुणफल की संख्या 108 ही आती है, जो पवित्र मानी जाती है। इसमें श्री लगाकर ‘श्री 108’ हिन्दू धर्म में धर्माचार्यों, जगद्गुरुओं के नाम के आगे श्री लगाना अति सम्मान करने का सूचक माना जाता है। माला के 108 मनको से यह पता चल जाता है कि जप कितनी संख्या में हुआ। दूसरे माला के ऊपरी भाग में एक बड़ा मनका होता है जिसे "सुमेरु" कहते हैं। इसका विशेष महत्व माना जाता है। क्योकि माला की गिनती सुमेरु से शुरू कर माला समाप्ति पर इसे उलटकर फिर शुरू से 108 का चक्र प्रारंभ किया जाने का विधान बनाया गया है इसलिए सुमेरु को कभी लांघा नहीं जाता। एक बार माला जब पूर्ण हो जाती है तो अपने ईष्टदेव का स्मरण करते हुए सुमेरु को मस्तक से स्पर्श किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड में सुमेरु की स्थिति सर्वोच्च होती है।

 

माला में मनको की संख्या के महत्व पर शिवपुराण में कहा गया है-

अष्टोत्तरशतं माला तत्र स्यावृत्तमोत्तमम्।1
शतसंख्योत्तमा माला पञ्चाशद् मध्यमा।।2

 

अर्थार्थ 108 मानकों की माला सर्वश्रेष्ठ, 54  मनोकों की श्रेष्ठ तथा 27 मानकों की मध्यम होती है। शिवपुराण में ही इसके पूर्व श्लोक 28 में माला जप करने के संबंध में बताया गया है कि अंगूठे से जप करें तो मोक्ष, तर्जनी से शत्रुनाश, मध्यमा से धन प्राप्ति और अनामिका से शांति प्राप्त होती है।


तीसरी मान्यता है

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्त ब्रह्मांड को 12 भागों में बांटने पर आधारित है। इन 12 भागों को ‘राशि’ कहा गया है। हमारे शास्त्रों में प्रमुख रूप से नवग्रह माने जाते हैं। 
इस प्रकार 12 राशि और 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है। यह संख्या संपूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रसिद्ध हुई है।

 

चौथी मान्यता है

सूर्य पर आधारित 1 वर्ष में सूर्य 21,600 (2 लाख 12 हजार) कलाएं परिवर्तित करता है। क्योंकि सूर्य 6 महीने में उत्तरायण और 6 महीने दक्षिणायन रहता है, तो इस प्रकार 6 महीने में सूर्य की कुल कलाएं 1,08,000 (1 लाख 8 हजार) होती हैं। अंतिम 3 शून्य हटाने पर 108 अंकों की संख्या मिलती है इसलिए माला जप में 108  मनके सूर्य की एक-एक कलाओं के प्रतीक होते हैं।

Created On :   28 Dec 2018 11:03 AM GMT

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