नाम बदलने किन्नरों के लिए फार्म में बनाएं अलग कॉलम, सब्जियां उगाने नाले के पानी के इस्तेमाल पर भी हाईकोर्ट सख्त

Different column make in form for third genders to change name : High court
नाम बदलने किन्नरों के लिए फार्म में बनाएं अलग कॉलम, सब्जियां उगाने नाले के पानी के इस्तेमाल पर भी हाईकोर्ट सख्त
नाम बदलने किन्नरों के लिए फार्म में बनाएं अलग कॉलम, सब्जियां उगाने नाले के पानी के इस्तेमाल पर भी हाईकोर्ट सख्त

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार नाम परिवर्तित करने के आनलाइन फार्म में किन्नरों के लिए अलग से कॉलम बनाए। जिससे नाम परिवर्तन के आधिकारिक गजट में उनका नया नाम शामिल किया जा सके। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस शंकलेचा की खंडपीठ ने एक किन्नर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। याचिका में किन्नर ने मांग की है कि उसके नाम में परिवर्तन से जुड़े आवेदन को राज्य सरकार को  स्वीकार करने का निर्देश दिया जाए। याचिका में किन्नर ने कहा है कि उसने तीन बार नाम में परिवर्तन को लेकर आवेदन किया था जिसे अस्वीकार कर दिया गया है। याचिका में किन्नर ने कहा है कि उसका जन्म लड़की के रुप में हुआ था लेकिन साल 2014 से उसे किन्नर के रुप में पहचाना जाने लगा है। इसलिए मैंने अपना नाम बदलने की दिशा में कदम उठाया है। ताकी मैं अपनी नई पहचान के साथ आगे की शिक्षा हासिल कर सकू। याचिका में किन्नर ने कहा है कि उसने जब पहली बार नाम में बदलाव को लेकर आवेदन किया तो अधिकारियों ने दस्तावेज पूरे न होने के आधार पर आवेदन को अस्वीकार कर दिया। दूसरी व तीसरी बार कोई कारण भी नहीं बताया गया। एक बार फिर जब मैंने आवेदन किया तो मुझे कहा गया है कि नाम में परिवर्तन को लेकर यह किसी किन्नर की ओर से किया गया पहला आवेदन है। इसके अलावा लिंग में परिवर्तन को लेकर आनलाइन आवेदन नहीं स्वीकार किए जा रहे हैं। याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार नाम परिवर्तन को लेकर आनलाइन आवेदन में किन्नर के लिए अलग श्रेणी बनाने की दिशा में कदम उठाए। खंडपीठ ने कहा कि याचिका में व्यापक मुद्दों को उठाया गया है इसलिए इसे जनहित याचिका में परवर्तित किया जाता है। खंडपीठ ने फिलहाल याचिका पर सुनवाई 14 जून तक के लिए स्थगित कर दी है।  

सब्जियों की खेती के लिए नाले के पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाए रेलवे

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि रेलवे आश्वस्त करे की रेल पटरियों के किनारे उगाई जाने वाली सब्जियों की सिंचाई के लिए नाले के पानी का इस्तेमाल न किया जाए। यदि कोई इन सब्जियों की खेती की सिंचाई के लिए नाले के पानी का उपयोग करता पाया जाए तो उसे खेती के दिए गए लाइसेंस को रद्द कर दिया जाए। मंगलवार को हाईकोर्ट ने माझा भारत सामाजिक संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि रेलवे अपने चतुर्थ श्रेणियों को अपनी जमीन पर खेती के लिए लाइसेंस जारी करता है। लेकिन इन जगहों पर उगाई जाने वाली सब्जियों  की सिंचाई के लिए नाले के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। रेल पटरियों के किनारे उगाई गई सब्जियों को जब जांच के लिए भेजा गया तो उसमे कई विषाक्त रसायन पाए गए। यह मानव स्वास्थ्य के लिए काफी घातक हो सकते हैं। इसके अलावा नाले के पानी में काफी गंदगी होती है जिससे जमीन पर भी असर पड़ता है। इसलिए नाले के पानी से रेलवे की पटरियों के किनारे सब्जियों की खेती करने से रोका जाए। क्योंकि इन सब्जियों से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ सकता है। इस दौरान रेलवे की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुरेश कुमार ने कहा कि हमने जमीन आवंटित करने को लेकर एक नीति बनाई है। जिसके अंतर्गत रेलवे के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को खेती के लिए लाइसेंस के माध्यम से जमीन आवंटित की जाती है। इसके अलावा रेलवे ने रेलवे की जमीन पर खेती करने वालों को कहा है कि वे सब्जियों की सिंचाई के लिए नाले के पानी का इस्तेमाल न करे। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि रेलवे के महाप्रबंधक सुनिश्चित करें की रेल पटरी के किनारे पैदा की जाने वाली सब्जियों की खेती के लिए नाले के पानी का इस्तेमाल न हो।  यदि कोई नाले के पानी का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता है तो उसे खेती के लिए दिया गया लाइसेंस रद्द किया जाए। खंडपीठ ने कहा कि रेलवे पटरी के किनारे की जमीन पर फूल लगाए। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 

मनपा के रवैए पर हाईकोर्ट ने कहा -पर्यावरण का विनाश होता रहा तो कैसे सिखेंगे बच्चे

इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर मुंबई महानगरपालिका से कहा है कि यदि पर्यावरण का विनाश होता रहेगा तो बच्चे क्या सीखेगे और आप बच्चों को क्या पढाएगे? पेड, पंक्षी, गिलहरी, मधुमख्खी व अन्य जीव पर्यावरण में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हमने किताबों में पढा है कि कैसे मधुमख्खी पराग कण एकत्रित कर शहद तैयार करती है लेकिन यदि पर्यावरण का विनाश होता रहेगा तो बच्चे क्या सीखेंगे? यह पहला मौका नहीं है जब मनपा को पर्यावरण के मुद्दे को लेकर कोर्ट के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इससे पहले कोस्टल रोड को लेकर भी हाईकोर्ट ने मनपा के रवैए पर नाराजगी जाहिर की थी। हाईकोर्ट में अवैध रुप से पेड को काटने के मुद्दे को लेकर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में कहा गया है कि मनपा पेड़ों की छटाई के नाम पर कलानगर इलाके में पेड़ो को काट रही है। याचिका पर गौर करने के बाद मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग की खंडपीठ ने मुंबई मनपा के उद्दायान विभाग को याचिका में लगाए गए आरोपों की जांच करने को कहा है। 

दोहरे हत्याकांड में हाईकोर्ट ने रद्द की आरोपी की फांसी की सजा 

बांबे हाईकोर्ट ने एक महिला व बच्चे की हत्या के मामले फंासी की सजा पाए आरोपी को राहत प्रदान करते हुए उसे मिली फांसी की सजा को रद्द कर दिया है। नाशिक सत्र न्यायालय ने आरोपी रामदास शिंदे को महिला व बच्चे की हत्या के लिए धारा 302 के तहत फंासी की सजा सुनाई थी। शिंदे ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अधिवक्ता अनिकेत निकम के मार्फत हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति पीडी नाइक की खंडपीठ के सामने मामले  की सुनवाई हुई।  प्रकरण से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए उसे सुनाई गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को  साबित करने में विफल रहा है। सिर्फ परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर आरोपी की सजा को कायम नहीं रखा जा सका है। अभियोजन पक्ष मामले से जुड़ी घटना की सभी काडियों को जोड़ने में नाकाम रहा है। मामले के जांच अधिकारी ने सभी पहलूओं की जांच नहीं की है जो यह साफ करे की सिर्फ आरोपी ने ही महिला व बच्चे की हत्या की है।  सुनवाई के दौरान अधिवक्ता श्री निकम ने दावा किया कि आरोपी मेरे मुवक्किल के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा है। मौके ए वरदात पर कोई चश्मदीद गवाह नहीं मौजूद था। इस मामले में मेरे मुवक्किल की कोई भूमिका नहीं है। वहीं अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी जिस मकान का मालिक था वहां पर मृतक महिला अपने परिवार के साथ किराए पर रहती थी। आरोपी ने बेहद निर्मम तरीके से घर के भीतर चाकू से बच्चे व महिला की हत्या की थी। इसके बाद उसके पत्रकार पति ने पुलिस को जानकारी दी थी। आरोपी का कृत्य विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है। इस लिहाज से निचली अदालत का फैसला पूरी तरह से सही है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मामले के जांच अधिकारी ने सभी पहलूओं की जांच नहीं की है। अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को साबित नहीं कर पाया है। इसलिए आरोपी को मामले से बरी किया जाता है और फांसी की सजा रद्द की जाती है। 
 

Created On :   30 April 2019 3:13 PM GMT

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