संकट में अन्नदाता , विषबाधा के सैकड़ों शिकार, सरकार के दावों की खुल रही पाेल

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संकट में अन्नदाता , विषबाधा के सैकड़ों शिकार, सरकार के दावों की खुल रही पाेल
संकट में अन्नदाता , विषबाधा के सैकड़ों शिकार, सरकार के दावों की खुल रही पाेल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में कृषि  पर प्राकृतिक व कृत्रिम संकट का दौर जारी है। कहीं सूखे तो कहीं बाढ़ ने किसानों का बदहाल कर रखा है। वहीं किसान आत्महत्या के मामलों में कमी नहीं आ पा रही है। इस बीच यह खबर और भी चौँकानेवाली है कि कीटनाशक से किसानों को हाेने वाली विषबाधा के मामलों में कमी नहीं आ रही है। किसान हित में काम करने के दावे सरकार करती है। फडणवीस सरकार भी स्वयं को  किसान हितैषी बताती है, लेकिन किसानों की स्थिति में सुधार की स्थिति ही नहीं बन पा रही है। कीटनाशक से विषबाधा का सबसे अधिक प्रभाव पश्चिम विदर्भ में रहा है

विदर्भ के 11 में से 6 जिले इस क्षेत्र में आते हैं। इनमें 5 जिलों में 2018 से 2019 तक कीटनाशक के छिड़काव से 855 किसानों को विषबाधा हुई है। कीटनाशक छिड़काव के संबंध में जनजागृति के सरकार के सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। पिछले वर्ष पश्चिम विदर्भ के अकोला, वाशिम, बुलढाणा, अमरावती व यवतमाल जिले में कीटनाशक के छिड़काव से खेत मजदूरों को विषबाधा के प्रमाण में बढोतरी हुई है। छिड़काव से विषबाधा के कारण मृत्यु भी हुई है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 5 जिलों में अप्रैल 2018 से जून 2019 तक 855 किसानों को कीटनाशक छिड़काव से विषबाधा हुई। यवतमाल जिले में सर्वाधिक 282 व अकोला जिले में सबसे कम 46 विषबाधा की घटना हुई। फिलहाल कपास की फसल पर रोग बढ़ रहे हैं। 

विषबाधा के आंकड़े

सवा साल में पश्चिम विदर्भ के पांच जिले में कीटनाशक छिड़काव से विषबाधा के आंकड़े चाैंकानेवाले हैं। यवतमाल जिले में 282, वाशिम 132, बुलढाणा 209, अमरावती 194 व अकोला जिले में 46 किसानों को विषबाधा हुई है। यह भी जानकारी मिली है कि जुलाई अगस्त में विषबाधा के प्रकरणों में सर्वाधिक बढोतरी हुई है। इन महीनों में फसलों पर कीटों का प्रकोप अधिक रहता है। 

जिम्मेदार अधिकारी हैं कहां

कीटनाशक के छिड़काव से विषबाधा की घटना राज्य विधानमंडल में गूंज चुकी है। सरकार ने उपाययोजना के तौर पर जनजागृति फैलाने व ड्राेन से कीटनाशक छिड़काव कराने की योजना पर चर्चा की। कुछ अधिकारियों को इन कार्यों के लिए विशेष जिम्मेदारी दी गई। लेकिन जिम्मेदार अधिकारी कहीं नजर नहीं आते हैं। राज्य के राहत व पुनर्वास विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 3 वर्ष में विदर्भ में करीबन 13000 किसानों ने आत्महत्या की है। किसान आत्महत्या के साथ ही विषबाधा की घटनाएं बढ़ती ही जा रही है। विषबाधा नियंत्रण के लिए विविध विभागों के 9 अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है। इन अधिकारियों में कृषि विकास अधिकारी, जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी, प्रभारी जिला स्वास्थ्य अधिकारी, जिला शल्य चिकित्सक, प्राथमिक स्वास्थ्य अधिकारी, पुलिस स्टेशन के प्रभारी, प्रादेशिक वन अधिकारी, पशु शल्य चिकित्सक, गट विकास अधिकारी का समावेश है। 

क्या कहते हैं जानकार

जानकारों का कहना है कि कृषि संकट को दूर करने की उपाययोजनाओं पर सही अमल करने की आवश्यकता है। राज्य सरकार के शेतकरी स्वालंबन मिशन में अध्यक्ष किशोर तिवारी कहते हैं कि कृषि उपज संबंध खाद बीज की बिक्री प्रक्रिया पर ठोस नियंत्रण की आवश्यकता है। अन्य राज्यों में प्रतिबंधित खाद बीज राज्य में आसानी से बिक जाते हैं। इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कंपनियां काम कर रही है। मुनाफे के फेर में अधिकारी ही नहीं सरकार से जुड़े लोग भी आसानी से फंस जाते हैं। कीटनाशक छिड़काव के दुष्परिणाम नियंत्रण की जिम्मेदारी कीटनाशक उत्पादक कंपनियाों की भी है। कांग्रेस किसान मोर्चा के अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा है कि कीटनाशक के छिड़काव की उपाययोजना केवल घोषणा तक सीमित रह गई। कीटनाशक से मौत के आंकड़ों को छिपाया जाता है। विदर्भ विकास वैधानिक मंडल के अध्यक्ष चैनसुख संचेती ने कहा है कि किसानों को कृषि उपज बढ़ाने के साथ ही पूरक खेती के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। किसान आत्महत्या रोकने के लिए उपाययोजना की जा रही है। कीटनाशक से विषबाधा की घटनाओं पर सरकार गंभीर है। 


 

Created On :   19 Aug 2019 11:02 AM GMT

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