फ्रेंच मीडिया का दावा, डसॉल्ट की मजबूरी थी रिलायंस को पार्टनर बनाना

फ्रेंच मीडिया का दावा, डसॉल्ट की मजबूरी थी रिलायंस को पार्टनर बनाना
हाईलाइट
  • दसॉल्ट एविएशन के पास रिलायंस को अपना पार्टनर चुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
  • पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी इससे पहले कहा था कि रिलायंस का नाम भारत सरकार ने प्रस्तावित किया था।
  • राफेल डील को लेकर फ्रांस की इंवेस्टिगेटिव वेबसाइट मीडियापार्ट ने नया खुलासा किया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राफेल डील को लेकर अब एक और नया खुलासा हुआ है। फ्रांस की इंवेस्टिगेटिव वेबसाइट मीडियापार्ट में खुलासा किया गया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन के पास रिलायंस को अपना पार्टनर चुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था। मीडियापार्ट ने डसॉल्ट के इंटरनल डॉक्यूमेंट के आधार पर ये दावा किया है। फ्रांस मीडिया की ये रिपोर्ट फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के उस दावे को भी पुख्ता करती है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत सरकार ने रिलायंस का नाम ऑफसेट पार्टनर के लिए प्रस्तावित किया था। 

 

 

क्या कहा गया है रिपोर्ट में?
मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दस्तावेज बताते हैं कि डसॉल्ट के टॉप अधिकारी लोइक सेगलन ने 11 मई, 2017 को स्टाफ प्रतिनिधियों को समझाया था कि 59,000 करोड़ की 36 जेट राफेल डील को पाने के लिए यह जरूरी था कि वह रिलायंस को अपना पार्टनर बनाए। अगर वह रिलायंस को अपना पार्टनर नहीं बनाते तो डसॉल्ट को यह डील नहीं मिलती। हालांकि अब तक डसॉल्ट की तरफ से इस बारे में किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं की गई है। न ही डिफेंस मिनिस्ट्री की तरफ से अब तक किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया सामने आई है।

क्या कहा था फ्रांस्वा ओलांद ने? 
ओलांद ने कहा था कि भारत सरकार ने राफेल सौदे के लिए अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था। इसीलिए डसॉल्ट ने अनिल अंबानी से बातचीत की। उन्होंने कहा इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। फ्रांस ने उसी वार्ताकार को स्वीकार किया जो उन्हें दिया गया था। फ्रांस की एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में ओलांद ने ये खुलासा किया था। हालांकि जब इस पर विवाद बड़ा को ओलांद ने अपने बयान से यू टर्न लेते हुए कहा था कि रिलायंस को चुने जाने के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते। इस बारे में राफेल बनाने वाली डसॉल्ट कंपनी ही कुछ बता सकती है। बता दें कि ओलांद ने ही सितंबर 2016 में राफेल डील पर पीएम मोदी के साथ हस्ताक्षर किए थे।

क्या है राफेल डील? 
भारत ने 2010 में फ्रांस के साथ राफेल फाइटर जेट खरीदने की डील की थी। उस वक्त यूपीए की सरकार थी और 126 फाइटर जेट पर सहमित बनी थी। इस डील पर 2012 से लेकर 2015 तक सिर्फ बातचीत ही चलती रही। इस डील में 126 राफेल जेट खरीदने की बात चल रही थी और ये तय हुआ था कि 18 प्लेन भारत खरीदेगा, जबकि 108 जेट बेंगलुरु के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में असेंबल होंगे यानी इसे भारत में ही बनाया जाएगा। फिर अप्रैल 2015 में मोदी सरकार ने पेरिस में ये घोषणा की कि हम 126 राफेल फाइटर जेट को खरीदने की डील कैंसिल कर रहे हैं और इसके बदले 36 प्लेन सीधे फ्रांस से ही खरीद रहे हैं और एक भी राफेल भारत में नहीं बनाया जाएगा।
      

Created On :   10 Oct 2018 7:18 PM GMT

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