इस डॉग को सुनाया जा रहा गीता पाठ , जानिए क्या है इसकी खूबी

Geeta lesson being told to the dog in nagpur district of maharashtra
इस डॉग को सुनाया जा रहा गीता पाठ , जानिए क्या है इसकी खूबी
इस डॉग को सुनाया जा रहा गीता पाठ , जानिए क्या है इसकी खूबी

डिजिटल डेस्क, नागपुर । अंतिम क्षणों में आमतौर पर इंसानों को गीतापाठ सुनाया जाता है लेकिन आरपीएक के श्वान पथक के बेड़े में कभी सबसे होनहार समझा जाने वाला श्वान ‘सीजर’ के कर्मों का ही फल है कि, उसे जीवन के अंतिम क्षणों में गीता पाठ सुनने मिल रहा है। सेवानिवृत्ति के बाद उसे महल स्थित घाटे परिवार ने आसरा दिया। कष्टदायी मौत के मुहाने पर पहुंचे ‘सीजर’ को इस परिवार के सदस्य गीता सुनाते हैं, ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो।

दस साल रहा श्वान पथक का स्टार सदस्य
पशु कल्याण सेवी करिश्मा गलानी ने बताया कि आरपीएफ में दस साल तक ‘सीजर’ श्वान पथक का स्टार सदस्य था। उसने कई जटिल मसलों को हल करने में अहम भूमिका निभाई। 22 जून 2017 को वह आरपीएफ से सेवानिवृत्त हो गया। इसके बाद उसके हैंडलर ने उसे गोद लिया, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद ‘सीजर’ को भी आगे की देखरेख के लिए कोई पेंशन निधि नहीं मिल पायी। वह बीमार हो गया।

नहीं मिल पाई पेंशन निधि
इलाज का खर्च नहीं उठा पाने से हैंडलर ने उसे दोबारा लौटा दिया। इसके बाद उसे महल के घाटे परिवार ने अपने प्रतिष्ठान में पनाह दी। यहां भी तमाम सेवा के बाद भी उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा। पिछले कुछ दिनों से उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया है। पशु चिकित्सक डॉ. शिरीष उपाध्ये के अनुसार ‘सीजर’ की दोनों किडनियां फेल हो गई हैं। मौत के इंतजार के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लिहाजा घाटे दंपति विनोद व उषा घाटे और उनकी बेटी ने ‘सीजर’ के गले में तुलसी की माला डालकर उसके लिए गीता का पाठ पढ़ना शरू किया। 

करिश्मा ही है कि उसने कराहना बंद कर दिया
करिश्मा कहती हैं कि, तीसरे अध्याय तक पहुंचते-पहुंचते ‘सीजर’ ने कराहना बंद कर दिया और पहले जैसी बेचैनी भी उसकी खत्म हो गई है। हालांकि अब भी उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है, लेकिन वह पीड़ा से कराहना बंद कर चुका है। 

श्वानों के देख-रेख की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए
हालांकि करिश्मा इस रिवाज का विरोध भी करती हैं कि, सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के िलए जिन श्वानों को बेड़े में शामिल किया जाता है, उसके रिटायर होने के बाद उसे बेसहारा दिया जाता है। सेवानिवृत्ति के बाद वैसे भी आम तौर पर साल दो साल से अधिक श्वान जिंदा नहीं रह पाता। ऐसे में जिस हैंडलर के साथ वह भावनात्मक तौर पर जुड़ा रहता है, उसका साथ छूटने से वह टूट जाता है। खाना-पीना छोड़ देता है। उसके जीवन के आखरी दिन बेहद कष्टदायी होते हैं। ऐसे में सरकार को सुरक्षा बल का श्वान पथक हो या आरपीएफ, पुलिस, सेना या अन्य कोई सुरक्षा एजेंसी हो सभी पर ऐसे श्वानों की देख-रेख की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। 
 

Created On :   6 March 2018 10:33 AM GMT

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