अधिकारियों को बार-बार देनी पड़ रही अवमानना के प्रकरणों से निपटने की ट्रेनिंग

General administration again explained How to deal with the cases of contempt to govt officils
अधिकारियों को बार-बार देनी पड़ रही अवमानना के प्रकरणों से निपटने की ट्रेनिंग
अधिकारियों को बार-बार देनी पड़ रही अवमानना के प्रकरणों से निपटने की ट्रेनिंग

डिजिटल डेस्क, भोपाल। राज्य सरकार के उच्च अधिकारियों के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना प्रकरणों में दिये निर्णयों से निपटने के लिये सामान्य प्रशासन विभाग को छह साल में चौथी बार सोमवार को सभी विभाग प्रमुखों, संभागायुक्तों, जिला कलेक्टरों तथा जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को बताना पड़ा है कि वे कैसे अवमानना के प्रकरणों से निपटें। दरअसल राज्य के महाधिवक्ता कार्यालय ने सामान्य प्रशासन विभाग को अवगत कराया है कि अवमानना प्रकरणों में की जाने वाली कार्यवाही के संबंध में प्रभारी/सम्पर्क अधिकारियों एवं विभागीय नोडल अधिकरियों को पर्याप्त जानकारी न होने के कारण प्रकरण के निराकरण में कठिनाई होती है। इसलिये आगे से अवमानना प्रकरण दायर होने की सूचना प्राप्त होते ही संबंधित विभाग/कार्यालय द्वारा सम्पर्क अधिकारी की नियुक्ति की जाये। अवमानना प्रकरणों में प्रभारी अधिकारी की नहीं अपितु सम्पर्क अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। सम्पर्क अधिकारी द्वारा महाधिवक्ता कार्यालय से सम्पर्क कर उनके परामर्श के अनुसार उपयुक्त कार्यवाही की जाना चाहिये। उक्त के अलावा जीएडी ने कहा है कि अवमानना प्रकरणों में जवाबदावा प्रस्तुत नहीं किया जाता है अपितु पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है। अत: अवमानना प्रकरण में सुनवाई की तिथि के पूर्व ही बकालतनामा तथा उस न्यायालयीन आदेश के संबंध में पालन प्रतिवेदन व शपथ-पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिये जिसके संदर्भ  में वह अवमानना याचिका दायर की गई है। साथ ही अवमानना प्रकरण में संबंधित अधिकारी को उनके नाम से पक्षकार बनाया जाता है। अत: उस अधिकारी की ओर से न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले वकालतनामे, पालन प्रतिवेदन एवं शपथ-पत्र आदि पर सम्पर्क अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये जायें बल्कि ये सभी दस्तावेज प्रतिवादी अधिकारी के हस्ताक्षर से ही प्रस्तुत किये जायें।

पहले जारी तीन निर्देशों में यह कहा गया था
जीएडी ने 20 मार्च 2017 को कहा था कि अवमानना प्रकरणों में नोटिस की तामिली होने के बाद भी न्यायालय में जवाबदावा प्रस्तुत करने/अपनी उपस्थिति दर्ज कराने हेतु कार्यवाही नहीं की जाती है। इस पर उच्च न्यायालय ने अप्रसन्नता व्यक्त की तथा उसने अवमाननाकत्र्ता अधिकारी को जमानती वारंट के माध्यम से न्यायालय में बुलाने का विकल्प होते हुये भी इस विकल्प का प्रयोग करने के बजाये मामला मुख्य सचिव के ध्यान में लाये जाने का आदेश पारित किया है। इसीलिये समय-सीमा में अपील या रिवीजन की कार्यवाही की जाये जिससे प्रतिकूल परिणाम का सामना न करना पड़े। जीएडी ने 27 अगस्त 2012 को कहा था कि अवमानना प्रकरणों में प्रभारी अधिकारी की नहीं सम्पर्क अधिकारी की नियुक्ति की जाये तथा जवाबदावा व शपथ-पत्र सम्पर्क अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित न किया जाये। जीएडी ने 22 अगस्त 2012 को कहा था कि अवमानना की सूचना प्राप्त होते ही प्रकरण का प्रभारी अधिकारी तीन दिन के अंदर शासकीय अधिवक्ता/अधिवक्ता/महाधिवक्ता कार्यालय/अतिरिक्त महाधिवक्ता कार्यालय/स्थाई अधिवक्ता से सम्पर्क करेगा। जिन प्रकरणों में संबंधित अधिकारी का बचाव प्रतिरक्षण हेतु उपयुक्त नहीं पाया जाता है तो ऐसे प्रकरणों में संबंधित अधिकारी को अपना प्रतिरक्षण स्वयं के व्यय पर कोर्ट में करना होगा।

कोर्ट में पेश हो संबंधित अधिकारी
इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के अतिरिक्त महाधिवक्ता विशाल मिश्रा का कहना है कि ‘‘अवमानना के प्रकरण एक हजार से घटकर पचास प्रतिशत हो गये हैं। ऐसे मामलों में संबंधित अधिकारी को ही कोर्ट में पेश होना चाहिये। सम्पर्क अधिकारी की नियुक्ति तो एक सुविधा भर है। हाईकोर्ट के मामलों को देखने के लिये संयुक्त आयुक्त लिटिगेशन तो नियुक्त हैं परन्तु ये अवमानना के प्रकरण नहीं देखते हैं।’’

 

Created On :   18 Sep 2018 7:26 AM GMT

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