मोहम्मद रफी के 93वें बर्थडे पर गूगल ने दिया डूडल ट्रिब्यूट, 18 भाषाओं में गाए गाने

मोहम्मद रफी के 93वें बर्थडे पर गूगल ने दिया डूडल ट्रिब्यूट, 18 भाषाओं में गाए गाने

डिजिटल डेस्क, मुंबई। संगीत सम्राट, आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी साहब की आज 93वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको ट्रिब्यूट दिया है। रफी साहब बॉलीवुड के उन दिग्गज गायकों में एक थे, जिनकी आवाज का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। रफी साहब को साल 1949 में दुलारी फिल्म के गाने "सुहानी रात ढल चुकी" के जरिए पहचान मिली थी। मोहम्मद रफी के गुजर जाने के बाद लिए चार लाइनें बड़ी प्रसिद्ध हुई "न फनकार तुझसा तेरे बाद आया...मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया"।

मोहम्मद रफी का जन्म 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान में हुआ था। कहा जाता है कि रफी साहब को गाने की प्रेरणा उनके घर के आस-पास घूमने वाले एक फकीर से मिली थी। रफी साहब के पिता की लाहौर में एक नाई की दुकान थी, जिस कारण उनका पूरा दिन उसी दुकान पर गुजरता था, जहां वह गाने गाया करते थे और लोग उनकी आवाज को काफी पसंद करते थे। 

13 साल की उम्र में गाया पहला गाना

मोहम्मद रफी के इस हुनर को उनके बड़े भाई हमीद ने पहचान लिया था। संगीत के लिए उनकी दिलचस्पी को देखते हुए लाहौर में रफी साहब को संगीत की शिक्षा लेने के लिए उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास भेज दिया। इसके साथ ही गुलाम अलीखान से भी उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया। रफी ने पहली बार 13 साल की उम्र में अपना पहला गाना स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया। दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिए ऑफर दे दिया।

इस गाने से मिली पहचान

मोहम्मद रफी ने अपना पहला गाना, "सोनिये नी हिरीये नी" जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया। वर्ष 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना, "हिन्दुस्तान के हम है पहले आप के लिए गाया। रफी साहब को असली पहचान 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाए गीत "सुहानी रात ढल चुकी" के जरिए मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नही देखा। 

हिंदी के अलावा असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी मोहम्मद रफी ने गीत गाए हैं।

मोहम्मद रफी साहब ने हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के चलते अलग पहचान छोड़ी। वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाए गीत "सुहानी रात ढल चुकी" के जरिए वह सफलता की उंचाईयों पर पहुंच गए। 31 जुलाई 1980 को आवाज के महान जादूगर मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए, लेकिन वह आज भी अपने चाहने वालों के दिलों में पहले की तरह ही जीवित हैं। 

आखिरी समय में भी पूरा कर गए गाना

30 जुलाई, 1980 की देर शाम को फिल्म निर्माता-निर्देश जे ओम प्रकाश ने उन्हें एक गाने की रिकॉर्डिंग के लिए बुलाया, गाना लगभग पूरा हो चुका था, गाने की बस चार लाइनें बाकी थीं। बात हुई कि अगले दिन इसे पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद रफी साहब सीड़ियों से उतरे और गाड़ी में बैठ गए। थोड़ी ही देर में वे फिर से वापस आए और कहा "ओम जी गाने की चार लाइनें ही तो बाकी हैं। कल के लिए क्यों पेंडिंग रखूं,आज ही पूरा कर देता हूं।’

मोहम्मद रफी छह भाईयों में सबसे छोटे थे। बता दें कि रफी साहब ने जो गाना फकीर के मुंह से सुना था। वह गाना था "पागाह वालियों नाम जपो, मौला नाम जपो" ये 1924 का बंटवारे से पहले का भारत था। तब फकीर की आवाज सुन रफी उसके पीछे-पीछे चलने लगते थे। बता दें कि यह गाना फिल्म "आस-पास" म्यूजिक था एलपी का और बोल आनंद बख्शी के। ये चार लाइनें उन्होंने डब की नीचे आकर अपनी गाड़ी में। इसके बाद वह घर चले गए। उसी रात रफी को दिल का दौरा पड़ा और वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए। 

Created On :   24 Dec 2017 4:13 AM GMT

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